मैं अगर बेगुसराय में होता तो ईद पर गिरिराज सिंह जी से ज़रूर गले मिलता!

ईद आप के बिना अधूरी है..!
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दुनिया भर के मुसलमान ईद के दिन नमाज़ पढ़ते हैं और फ़िर अपने लोगों में ईद की खुशियाँ मनाते हैं। मगर हिंदुस्तान में ईद का रंग सारी दुनिया से बिल्कुल अलग है। यूँ तो मुसलमान ईद की नमाज़ पढ़ते हैं और उनकी ईद हो जाती है लेकिन हिंदुस्तान में मुसलमानों की ईद तब तक मुकम्मल नहीं होती जब तक कोई हिन्दू भाई, कोई सिख या ईसाई, कोई आस्तिक या नास्तिक दोस्त घर आकर गले लग के ईद मुबारक न कह दे और सेवइयाँ न खाए. हिंदुस्तान की हजारों ख़ूबियों में से ये भी एक ख़ूबी है कि यहाँ त्योहारों पर जब तक दूसरे धर्म, आस्था के लोग शामिल न हों ख़ुशियाँ अधूरी ही रहती हैं।

मैं अक्सर सोचता हूँ कि उन सभी मुस्लिम बाहुल्य देशों में लोगों को ईद की ख़ुशी तो स्वाभाविक रूप से होती होगी लेकिन वो लोग इस खूबसूरत एहसास से महरूम रहते होंगें जो हिन्दुस्तानी मुसलमानों को हासिल है, जो सुकून किसी हिन्दू भाई के ईद मुबारक कहने से मिलता है, जो दूसरे धर्म और आस्था के लोगों के गले मिलने से होता है। ये खूबसूरत एहसास ही तो हैं जो ईद की ख़ुशी को चार चाँद लगा देते हैं।

हिंदुस्तान की इसी ख़ूबसूरती को बरक़रार रखने के लिए जब आप ईदगाह से घर की तरफ़ जाइए तो रास्ते में पड़ने वाले सभी धर्मों के लोगों को घर आमंत्रित करते हुए जाइए… और उनसे ये कहिए कि अगर आप मेरे घर नहीं आए तो मेरी ईद अधूरी रह जाएगी। और हाँ, रास्ते में मंदिर और गुरुद्वारा पड़े तो वहाँ भी जाकर धर्मगुरुओं को आदर पूर्वक अपने घर आमंत्रित करिए। ईदगाह के बाहर सुरक्षा में तैनात जो पुलिस वाले हैं उन्हें भी आमंत्रित करना ना भूलें। उनसे कहिए कि भैया ड्यूटी ख़त्म हो जाए तो वो पास में मेरा घर है वहाँ आकर सेंवईं ज़रूर खाते जाएँ.. हमें बहुत ख़ुशी होगी।

मैं अगर बिहार के बेगुसराय में होता तो ईद पर गिरिराज सिंह जी से ज़रूर गले मिलता। वो भले ही NDA की इफ़्तार पार्टी पर बेजा टिप्पणी करते हों लेकिन ईद के दिन गले मिलकर ये ज़रूर आभास कराता कि प्रेम का कोई विकल्प नहीं। संख्याबल की विजय प्रेम को पराजित नहीं कर सकती।

मैं अगर बंगाल में होता तो TMC और BJP के कार्यकर्ताओं को सामूहिक रूप से अपने घर आमंत्रित करता। ईद के पावन अवसर पर दोनों पार्टियों के हिंसक प्रदर्शन को सेंवईयों की मिठास से कम करने की भरपूर कोशिश करता।

मैं अगर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में होता तो तमाम पूर्वाग्रह को दर्किनार कर ईद के दिन योगी जी के पास जाता और गले मिल के ये बताने का प्रयास करता कि हमारी क्रिया और प्रतिक्रिया सभी कुछ बस प्रेम ही है.. इसके सिवा और कुछ नहीं। कोई व्यक्ति ईद मनाए या ना मनाए मगर गले मिलकर ये संदेश तो दे ही सकता है कि देश के पास भाजपा और कांग्रेस का विकल्प तो हो सकता है मगर प्रेम और शांति का कोई विकल्प नहीं हो सकता।

आज फ़िर ईद आई है और हिंदुस्तान के सारे मुसलमान अपनी चौखट पर आप सभी भारतवासियों के इस्तक़बाल के लिए खड़े हैं। आज फ़िर हमारे घरों में आइये, आज फ़िर गले लगेंगे, आज फ़िर मिलकर सेवइयाँ खायेंगें, इस मुबारक मौक़े पर मिलकर मोहब्बत और भाईचारे की नयी इबारत लिखेंगें।

मैं इस देश के सभी हिन्दू, सिख, ईसाई और दूसरी आस्था के लोगों का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जो ईद के मुबारक मौक़े पर हमारी खुशियों में हमेशा शामिल होते हैं, हमें मोहब्बतों से नवाज़ते हैं और एक मज़बूत ‘जम्हूरियत’ के रौशन मुस्तक़्बिल के ख़्वाब की ताबीर बन जाते हैं।

आप सभी को ईद मुबारक…!

आप का भाई…

-Masihuzzama Ansari

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