राजस्थान मे जाट प्रभावित सीटों में से भरतपुर, श्रीगंगानगर व बीकानेर के आरक्षित होने के बाद चूरु, झूंझुनू, सीकर, नागौर, पाली व बाडमेर लोकसभा क्षेत्रों में जातीय समीकरणों के बनने से भाजपा व कांग्रेस के मध्य हो रहे कड़े मुकाबले में कांग्रेस उम्मीदवार इक्कीस नज़र आ रहे हैं!
राजस्थान मे राजनीतिक तौर पर काफी जागरुक माने जाने वाली जाट बिरादरी जब जब अंगड़ाई लेती है तब-तब परिणाम चौंकाने वाले आये हैं!
प्रदेश की सत्ता में आने वाले बदलाव के साथ जाट समुदाय का गहरा रिशता रहता आया है!
हमेशा की तरह इस दफा भी प्रदेश मे सत्ता परिवर्तन के बाद जाट समुदाय का रुख लोकसभा चुनाव मे सत्ताधारी दल की तरफ बनता दिखाई दे रहा है!
इसके अलावा भाजपा ने जाट नेता विधायक हनुमान बेनीवाल की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को नागौर सीट देकर गठबंधन किया है!
जाट प्रभावित झूंझुनू व नागौर से कांग्रेस उम्मीदवारों के खि़लाफ विधायक नरेन्द्र खीचड़ व विधायक हनुमान बेनीवाल के आने के बाद अण्डर करंट चल रहा है कि एक जाट को पटखनी देकर दूसरे लीडर को पनपाने के बजाय दो दो लीडर पनपाये जाये!
विधायक खीचड़ व विधायक बेनीवाल तो पहले से विधायक बने हुये हैं, तो इन दोनों के सामने चुनाव लड़ने वाले श्रवण कुमार व ज्योति मिर्धा अगर चुनाव जीतती है तो दो लीडर ओर पनपते है!
पीछली दफा अलवर लोकसभा उपचुनाव मे यादवो की इसी भावना ने जसवंत यादव के मुकाबले डा.कर्णसिंह यादव को चुनाव जीतवा दिया था!
सीकर मे भाजपा के उम्मीदवार हरियाणा के बाबा सुमेदानंद सरस्वती का मुकाबला कांग्रेस के सुभाष महरिया की मतदाताओं पर मजबूत पकड़ है!
जबकि आरक्षित सीट बीकानेर पर मुकाबला व आरक्षित सीट भरतपुर मे कांग्रेस की मजबूत स्थिति आंकी जा रही है!
बाडमेर में कांग्रेस ने राजपूत बीरादरी से ताल्लुक रखने वाले मानवेंद्र सिंह का मुकाबला जाट जाती से ताल्लुक़ रखने वाले कैलाश चौधरी से है!
लेकिन वर्तमान भाजपा सांसद कर्नल सोनाराम के कांग्रेस में आने की अटकलो से कांग्रेस को बडा़ फायदा मिल सकता है!
पाली मे कांग्रेस के बद्री जाखड़ व भाजपा के उम्मीदवार पीपी चौधरी में असल जाट का मुद्दा छाया हुवा है!चूरु मे भाजपा के राहुल कस्वां कांग्रेस के रफीक मण्डेलीया पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं!
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान के चुनाव मे जाट समुदाय विशेष महत्व रखता आया है!
जिस तरफ जाट समुदाय के अधिकांश मतदाताओं का रख होता है। उसी तरफ सत्ता की कुर्सी खींची चली आती है।
-Ashfaq Kayamkhani
(लेखक एक राजनीतिक विश्लेषक है)