देश और दुनिया में एक ओर कोरोना का कहर जारी है. वायरस के फैलाव को रोकने के लिए देश भर में पिछले 2 महीने से तालाबंदी है, करोड़ों लोग घरों की चारदीवारी में कैद हैं तो दूसरी ओर देश की आधी आबादी एक अन्य वायरस से जूझ रही है। जी हां, देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से महिलाएं घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से घरों में कैद होकर लड़ रही है। इन मामलों में देश के कई हिस्सों में बढ़ोतरी देखी गई है।
जहां राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं पर होने वाली इन घटनाओं को लेकर चिंतित है वहीं राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार में महिलाओं को एक स्याह हकीकत का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि प्रदेश में गहलोत सरकार के डेढ़ साल बीत जाने बाद भी राज्य महिला आयोग का नया ढ़ांचा तक नहीं बना है।
अक्टूबर 2018 में सूबे की जनता ने नई सरकार चुनी लेकिन अभी तक राज्य महिला आयोग का दुबारा गठन नहीं किया गया है, आयोग के अध्यक्ष और बाकी सदस्यों के पद खाली पड़े हैं। बीजेपी सरकार में आयोग की पिछली अध्यक्ष सुमन शर्मा रहीं जिनका कार्यकाल 19 अक्टूबर 2018 को समाप्त हो गया।
लॉकडाउन के इस दौर में ऐसी संस्था का नहीं होना एक चिंता का विषय है, क्योंकि हाल में राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में क्वारंटीन के दौरान एक स्कूल में 40 वर्षीय महिला से गैंगरेप का मामला सामने आया जिसके बाद राष्ट्रीय महिला आयोग को इस पर खुद संज्ञान लेना पड़ा।
आयोग ने राजस्थान पुलिस के महानिदेशक भूपेंद्र सिंह यादव को पत्र लिखकर कहा था कि वह इस मामले की तत्काल जांच कर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करें।
वहीं एक अन्य मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन में सीकर राजस्थान के एक पिता की ओर से राष्ट्रीय महिला आयोग को शिकायत मिली, जिसमें पिता ने कहा कि उनकी बेटी की ससुराल में बेरहमी से पिटाई की जा रही है और उनके शिक्षक दामाद ने लॉकडाउन के बाद से उनकी बेटी को खाना तक नहीं दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसे कई मामले राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रहे हैं।
लॉकडाउन से घरेलू हिंसा की शिकायतों में बढ़ोतरी : राष्ट्रीय महिला आयोग
राष्ट्रीय महिला आयोग को कोरोना वायरस महामारी के बाद लगाए गए देशव्यापी तालाबंदी के दौरान अप्रैल में घरेलू हिंसा की 315 शिकायतें मिली हैं। ये सभी शिकायतें ऑनलाइन और व्हाट्सएप के जरिए मिली हैं।
आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है कि, 24 मार्च से अब तक सिर्फ घरेलू हिंसा से जुड़ी 69 शिकायतें हमारे पास आई हैं. वहीं रेप या रेप की कोशिश की 13, सम्मान के साथ जीने के अधिकार के संबंध में 77 शिकायतें देशभर से मिली है।
इसके अलावा आयोग का यह भी कहना है कि सभी शिकायतें ईमेल के ज़रिए ज्यादातर शहरी इलाकों से मिली हैं लेकिन हमें आशंका है कि लॉकडाउन खुलने के बाद यह आंकड़ा तेजी से बढ़ेगा क्योंकि तब डाक सेवा से भी शिकायतें मिलेंगी।
वहीं आयोग ने अप्रैल के महीने में साइबर अपराध के मामलों में भी खासी बढ़ोतरी दर्ज की है। आंकड़ों के लिहाज से अप्रैल में 54 साइबर शिकायतें मिली है।
राजस्थान में मार्च और अप्रैल में महिला अत्याचार के 3000 से अधिक मामले दर्ज : राजस्थान पुलिस
राजस्थान पुलिस विभाग के माहवार आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में यदि विशेषतौर पर कोरोना कालखंड के दौरान दर्ज मामलों पर नजर डालें तो मार्च 2020 में महिला उत्पीड़न (498-ए के तहत) के 1047 मामले दर्ज किए गए तो इसके अलावा दहेज मामले, बलात्कार, छेड़छाड़ की घटनाएं मिलाकर 2674 मामले दर्ज हुए।
वहीं इन्हीं मामलों में अप्रैल महीने में हालांकि कुछ कमी देखी गई लेकिन इस महीने प्रदेश में 879 मामले महिला अत्याचार के दर्ज हुए। इसके अलावा राजस्थान में पुलिस विभाग की 2019 वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल (2018) के मुकाबले 2019 के जनवरी से जुलाई के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 66% की बढ़ोतरी देखी गई है।
आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कुल 66.78% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले साल (2018) में इस दौरान 15,242 मामले दर्ज किए गए थे जो 2019 में जनवरी और जुलाई के बीच 25,420 तक पहुंच गए।
वहीं यदि हम जुलाई 2019 में दर्ज महिला अत्याचार के मामलों की तुलना करते हैं, तो आंकड़े 4,898 हैं, जबकि जुलाई 2018 में यह आंकड़ा 2614 था।
मुख्यमंत्री गहलोत को पत्र लिख चुका है राष्ट्रीय महिला आयोग
राज्यों में महिला आयोग अहमियत को समझते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कुछ समय पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखा।
शर्मा ने मध्यप्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री से लिखते हुए कहा कि “हम यह देखकर हैरान है कि राज्य महिला आयोग का नए सिरे से गठन नहीं किया गया है”। राज्य महिला आयोग समाज में महिलाओं की स्थिति और गरिमा को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शर्मा ने पत्र में ही दोनों मुख्यमंत्रियों से दोनों राज्यों के राज्य आयोगों के पुनर्गठन में तेजी लाने का अनुरोध भी किया।
लॉकडाउन के बाद घरेलू हिंसा पर क्या बोले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने बीते अप्रैल में कहा कि, कोरोना संकट के इस दौर में भी राज्य सरकार महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा रोकने एवं उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के पूरी तरह संकल्पित है।
गहलोत ने एक उच्चस्तरीय बैठक में आगे कहा कि महिलाएं अपने खिलाफ होने वाले किसी भी तरह के अत्याचार और घरेलू हिंसा की शिकायत गरिमा हेल्पलाइन 1090 पर दर्ज करवा सकती है।
भाजपा-कांग्रेस सरकारों के भंवर में महिला आयोग !
अगर हम राज्य महिला आयोग के गठन के बाद से इसके इतिहास को देखें तो यह साफ दिखाई देता है कि सरकारों के आवागमन में हर बार नई सरकार नए सिरे से गठन करने 5-6 महीनों का वक्त लेती है, लेकिन गहलोत सरकार का पैटर्न इससे पहले भी चिंताजनक रहा है।
उदाहरण के तौर पर 2009 में आयोग अध्यक्ष तारा भंडारी का कार्यकाल खत्म होने के बाद नई महिला आयोग अध्यक्ष प्रो लाड कुमारी जैन को मनोनीत करने में राज्य सरकार ने करीब ढ़ाई साल का समय लिया था। मालूम हो कि राज्य में 2008 में अशोक गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री चुने गए थे। इसके अलावा 2014 के बाद तत्कालीन राजे सरकार ने अध्यक्ष मनोनीत करने में करीब 10 महीने का समय लगाया। मालूम हो कि आयोग की अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल का होता है।
सरकारों की इस लेटलतीफी पर पूर्व महिला आयोग अध्यक्ष सुमन शर्मा कहती हैं कि, लॉकडाउन के इन दो महीनों के दौरान पूरे देशभर में महिला अत्याचार की बहुत सी घटनाएं हुई है इसके अलावा सबसे बड़ी विडंबना यह है कि कितने ही मामले इस दौरान रजिस्टर तक नहीं हो पाए हैं।
बकौल शर्मा, “लॉकडाउन के बाद से मेरे पास बहुत महिलाओं के फोन आए हैं क्योंकि अधिकांश महिलाएं या जनमानस के बीच अभी तक यही जानकारी है कि वर्तमान में मैं राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष हूं”।
आयोग के गठन को लेकर पूछने पर वह कहती हैं कि, भगवान जाने सरकारें ऐसे जरूरी संस्थाओं में यह लेटलतीफी क्यों करती हैं, जबकि ऐसे दौर में हमारे समाज में तो इन संस्थाओं की जरूरत बढ़ जाती है।
वहीं कांग्रेस की राज्य उपाध्यक्ष अर्चना शर्मा इस पूरे मसले पर एकदम सीमित जवाब देते हुए कहती हैं कि, “हमारी सरकार बने कुछ ही समय हुआ है और अब ये कोरोना संकट आ गया, ऐसे में सरकार अभी आयोग के गठन पर फैसला कैसे ले पाएगी, हां परिस्थितियां जब भी सामान्य होगी सरकार इस पर तुरंत फैसला लेने के लिए प्रतिबद्ध है”।
इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारहठ इसे किसी पार्टी विशेष का नाम ना लेकर राजनैतिक विफलताओं का उदाहरण बताते हुए कहते हैं कि, “राजनैतिक दलों के साथ ये समस्या रही है कि सरकारों में आने के बाद वो लंबे समय तक अपनी प्राथमिकताएं तय नहीं कर पाते हैं, जिसका नतीजा समाज के एक तबके को भुगतना पड़ता है”।
इसी परिदृश्य में भीलवाड़ा में बाल व महिला चेतना समिति की अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता तारा अहलूवालिया सीधे कांग्रेस सरकार को निशाने पर लेते हुए कहती हैं कि, अक्सर हमनें देखा है कि संस्थाओं के गठन में कांग्रेस सरकार की नींद 4 सालों बाद खुलती है, चुनावी साल में सारी गायब संस्थाएं कागजों में उतार दी जाती हैं।
इसके साथ ही लॉकडाउन में महिलाओं की स्थिति पर वह जोड़ती हैं कि पुलिस तंत्र का महिलाओं को लेकर पूर्वाग्रह ग्रसित रवैया और फिलहाल महामारी रोकथाम में व्यस्तता के बीच महिलाओं की सुनवाई कहां होगी। अब तक राज्य में महिला आयोग जैसी संस्था का नहीं होना राजस्थान कांग्रेस सरकार की ढांचागत कमियों को उजागर करता है।
तो उधर लॉक़डाउन में राजस्थान में काम करने वाले महिला संगठन कैसी परिस्थितियां देख रहे हैं इसके लिए हमनें महिला मुद्दों पर काम करने वाले संगठन “विशाखा” के भरत कुमार से बात की, उन्होंने लॉकडाउन के समय को महिलाओं पर त्रासदी बताते हुए कहा कि, हम पिछले 2 महीनों से राजस्थान में अतिरिक्त टीम के साथ काम कर रहे हैं क्योंकि पिछले 2 महीनों में बीकानेर, डूंगरपुर, उदयपुर जैसे जिलों से हमारे पास करीब 50 से 60 शिकायतें रोज ही आयी हैं, जिनकी हम काउंसलिंग कर रहे हैं।
राज्य महिला आयोग के सवाल पर वह कहते हैं कि जब राजस्थान में गहलोत सरकार दुबारा आयी थी तो हमनें सोचा था कि जल्द ही महिला आयोग का गठन किया जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
वहीं अजमेर में काम करने वाले एक अन्य संगठन राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान से डॉ एस एन शर्मा बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान हमें अजमेर के अलावा कई हिस्सों से 200 से अधिक महिलाओं ने संपर्क किया है। हमारी 7 लोगों को टीम लगातार उन महिलाओं से संपर्क बनाकर उनकी समस्या की काउंसलिंग कर रही है।
महिला आयोग पर बकौल शर्मा जब सरकार बनी तो कई संगठनों ने मिलकर महिला आयोग के गठन को लेकर कहा था लेकिन करीब 2 साल बाद हालात वही है।
आखिर में अब थोड़ा राज्य महिला आयोग के बारे में भी जान लेते हैं –
23 अप्रैल 1999 को, राज्य सरकार ने राजस्थान विधानसभा में महिला अधिनियम (1999) के तहत राजस्थान राज्य आयोग का प्रस्ताव पारित किया जिसके बाद 15 मई 1999 को महिलाओं के लिए यह आयोग अस्तित्व में आया। आयोग के अध्यक्ष को राज्य सरकार मनोनीत करती है जिसका कार्यकाल तीन साल का होता है। इसके अलावा आयोग में 3 सदस्य होते हैं और एक राज्य सरकार द्वारा पदस्थापित अधिकारी होता है।
नियम के मुताबिक आयोग की सिफारिशें मिलने की तारीख से तीन महीने के भीतर वहां की राज्य सरकार कार्यवाही और उसकी सूचना देने के लिए प्रतिबद्ध है।
राज्य महिला आयोग की आखिरी वार्षिक रिपोर्ट 2018
विदित हो कि अशोक गहलोत के सत्ता में आने के बाद से राज्य महिला आयोग बना ही नहीं है इसलिए आयोग की अधिकारिक वेबसाइट पर आखिरी रिपोर्ट साल 2018 की है जिसके मुताबिक, 1 अप्रैल 2018 से लेकर 31 दिसंबर 2018 तक आयोग को कई तरह की शिकायतें जनसुनवाई व व्यक्तिगत तरीके से प्राप्त हुई जिनमें दहेज क्रूरता, दहेज हत्या, भरण-पोषण, हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, बलात्कार का प्रयास, अपहरण, यौन उत्पीड़न, भूमि विवाद व घरेलू हिंसा की शिकायतें शामिल थी।
वहीं रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े कहते हैं कि इस दौरान आयोग को कुल 3188 शिकायतें मिली जिनमें से 1523 मामले निपटा दिए गए वहीं 1665 अभी प्रक्रियाधीन है। वहीं महिला आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, कोई भी महिला ऑनलाइन, 24 घंटे हेल्पलाइन और लिखित में शिकायत कर सकती है।
– अवधेश पारीक, जयपुर (यह रिपोर्ट मूलत: जनज्वार डॉट कॉम पर प्रकाशित हुई है)