अंदरुनी राजनीतिक उठा पठक से उभरकर क्या कांग्रेस फिर से करेगी सत्ता में वापसी !


कभी देश को आजादी दिलाने के लिये संघर्ष करने वाली कांग्रेस के आजाद भारत मे राजनीतिक दल का रुप धारण करने के बाद चुनावी प्रक्रिया शुरु होने के करीब पच्चीस साल तक केन्द्र मे कांग्रेस का एक तरफा राज रहने के बाद 1977 मे पहली दफा भारत मे गैर कांग्रेस सरकार गठित होने के बाद फिर से 1979 मे कांग्रेस के सत्ता मे आने पर कांग्रेस मे बदलाव आने लगा कि जो गांधी परिवार को भाये वो नेता बाकी अन्य सब पावर की धूरी के बाहर।

चलो पिछले कुछ समय को भूलकर चंद महीनो की राजनीति को सामने रखकर देखते है कि दो दफा लोकसभा का चुनाव हारने वाले और 2019 का लोकसभा चुनाव पार्टी आदेश के बावजूद नही लड़ने वाले केरल निवासी केसी वेणुगोपाल जब राहुल गांधी के करीब क्या लगे कि उनको पार्टी का संगठन महामंत्री बनाकर राजस्थान से राज्य सभा का सदस्य भी बनाकर इनाम पर इनाम दिया जाता है।

इसके विपरीत जब कांग्रेस के सीनियर नेताओं का एक समुह लोकतंत्र मजबूती के लिये सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी का पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने का मुद्दा अनेक सुझावों के साथ उठाते है तो कुछ तथाकथित नेता उन्हें नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाना बता कर अजीब अजीब बोल बोलकर उनको कांग्रेस का मुखालिफ साबित करने की कोशिशे की जाती है।

भारत के अन्य राज्यों को जरा अलग रखकर राजस्थान की राजनीति मे दो महीने मे घटे घटनाक्रमों पर नजर दोड़ाये तो फिर साबित होता नजर आता है कि जो गांधी परिवार के नजदीक है उनकी बल्ले बल्ले बाकी सब को पावर की धूरी से बाहर।

 

चुनाव लड़ने पर असफलता का हरदम मजा चखने वाले पूर्व प्रदेश प्रभारी महामंत्री अविनाश पाण्डे को हटाकर जिन अजय माकन को प्रभारी महामंत्री बनाया गया गया है। वो माकन स्वयं दो दफा लगातार लोकसभा चुनाव हार चुके है। एवं हाल ही मे माकन के नेतृत्व मे दिल्ली विधानसभा का आम विधानसभा चुनाव लड़ने पर कांग्रेस की फजीहत होने के साथ साथ एक भी कांग्रेस उम्मीदवार जीत नही पाया। साथ ही तीन उम्मीदवारों को छोड़कर बाकी सभी कांग्रेस उम्मीदवारों की दिल्ली चुनावों मे जमानत तक जब्त हुई थी।

उसके बाद भी जो अजय माकन स्वयं के प्रदेश दिल्ली मे कांग्रेस को मजबूत कर नही पाए ओर अब उन्हें भेजा राजस्थान मे कांग्रेस को मजबूत करने। वाह कांग्रेस तेरे भी खेल निराले है।

1979 के बाद से कांग्रेस मे अजीब खेल खेला जाने लगा है और हमेशा जनधार वाले नेता को दरकिनार करके गांधी परिवार से नजदीकी का लाभ देकर मुख्यमंत्री बना दिया जाता है। जब जब अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते राजस्थान मे आम विधानसभा चुनाव हुये तब तब कांग्रेस ओंधे मुह गिरते रहने के बावजूद जब भी जनता ने कांग्रेस को सरकार बनाने का मोका दिया तो फिर उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाकर जनता पर थोप दिया जाता रहा है।

इसी तरह गोविंद सिंह डोटासरा के अचानक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद आल इण्डिया कांग्रेस कमेटी के आह्वान पर नीट व जेईई परीक्षा कराने पर केंद्र सरकार के अड़े रहने के खिलाफ पूरे भारत के साथ साथ राजस्थान मे भी कांग्रेस के धरना प्रदर्शन हुये तो पाया कि राजस्थान के अनेक जिलो मे तो उक्त कार्यक्रम हुये ही नही। जयपुर के प्रोग्राम मे डोटासरा गये नही ओर डोटासरा के ग्रह जिला सीकर मे प्रदर्शन मे मुश्किल से एक दर्जन लोग ही जुट पाये।

कुल मिलाकर यह है कि कांग्रेस की राजनीति मे चुनाव हारने या चुनाव लड़ने से दूर भागने वाले के संगठन के महत्वपूर्ण पदो पर बैठाकर उनको राज्यसभा सदस्य एवं मोका आने पर अन्य पदाधिकारी तक बनाकर मजबूत किया जाता है।

स्वयं के अध्यक्ष रहते दिल्ली प्रदेश मे हुये विधानसभा व लोकसभा चुनावों मे कांग्रेस के ओंधे मुहं गिरने पर इनाम के तौर पर उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री बनाकर दुसरे प्रदेश मे संगठन को मजबूत करने भेज दिया जाता है। जिस मुख्यमंत्री के नेतृत्व मे आम चुनाव होने पर कांग्रेस हाशिए पर चली जाये और जनता द्वारा फिर से कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका देने पर फिर उसी नेता को मुख्यमंत्री बनाकर जनता पर थोप दिया जाता है।

अशफ़ाक कायमखानी

 

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