जयपुर : आमागढ़ क़िले से भगवा झण्डा उतारने के बाद मीणा और हिंदूवादी संगठन आमने -सामने !


जयपुर | राजस्थान की राजधानी जयपुर में गलता की पहाड़ियों पर स्थित आमागढ़ किला इन दिनों सुर्ख़ियों में हैं. हिंदूवादी संगठनों और आदिवासी मीणा समुदाय के बीच यह किला विवाद की वजह बना हुआ है.

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक विडियो वायरल हुआ जिसमें आदिवासी मीणा समुदाय के लोग आमागढ़ किले से लगभग 8 फिट लम्बे डंडे पर लगे भगवा झंडे को उतार रहे हैं. बताया जा रहा है कि यह झंडा हिन्दू संगठनों के लोगों ने लगाया था .

इसे 21 जुलाई को राजस्थान आदिवासी मीणा सेवा संघ के प्रदेशाध्यक्ष और गंगापुर सिटी से निर्दलीय विधायक रामकेश मीणा ने आदिवासी समुदाय के कुछ लोगों के साथ किले में जाकर झंडे को नीचे उतार दिया. जिससे विवाद की स्थिति पैदा हुई.

जनमानस से बात करते हुए विधायक रामकेश मीणा ने कहा की, “झण्डा गिराने की बात सरासर गलत है, जिन लोगों ने झण्डा लगाया था मैं उनको लेकर ही वहाँ गया था, और वही लोग झण्डा उतार रहे थे लेकिन उतारते समय उसकी लकड़ी टूट गई.”

रामकेश कहते हैं, “RSS के लोग हमारी आदिवासी संस्कृति को समाप्त करना चाहते हैं, वो हम पर हिंदू धर्म थोपना चाहते हैं. हम भगवा झण्डे को नहीं देश के तिरंगे झण्डे को मानते हैं. वहाँ या तो तिरंगा झण्डा लगेगा या फिर आदिवासियों का झण्डा.”

मीणा समुदाय का मानना है कि यह क़िला आदिवासी मीणा समुदाय के राजाओं का है जहां आदिवासियों के नागला गोत्र की कुल देवी अम्बा देवी का मंदिर है. जिसे कुछ लोगों ने नाम बदल कर अम्बिका भवानी कर दिया.

इस मामले में मुखर हो कर बोल रहे और स्वयं आदिवासी मीणा समुदाय से संबंध रखने वाले ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) की राजस्थान इकाई के कन्वीनर अर्जुन मेहर ने जनमानस से बात करते हुए कहा की, “हिंदूवादी लोग हमारा इतिहास बदल देना चाहते हैं. उन्हें यह अधिकार किसने दिया की पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आने वाली राष्ट्रीय धरोहरों पर धर्म विशेष का भगवा झण्डा लहराएँ? अगर लहराना है तो तिरंगा लहराया जाना चाहिए.”

इससे पहले 25 जून को क़िले में मौजूद आदिवासी मीणा समुदाय के मन्दिर की कुछ मूर्तियाँ खण्डित कर दी गईं थी, जिसका आरोप एक धर्म विशेष के लोगों पर लगाया गया था, लेकिन अर्जुन मेहर इन आरोपों को नकारते हैं,

उनका कहना है कि, “हमारी मूर्तियों को भी इन्हीं हिन्दुवादी संगठनों ने तोड़ा है, क्योंकि उन्हें खण्डित करने के बाद उन्होंने अपनी मूर्तियाँ वहाँ रख दी, जिन मूर्तियों से आदिवासी समुदाय का कोई लेना देना नहीं है.”

मूर्तियाँ खण्डित करने की बात पर विधायक रामकेश मीणा ने जनमानस से बात करते हुए कहा कि, “RSS का काम ही हिन्दू मुसलमान करना है, वो जानबूझ कर इसे सांप्रदायिक रंग देना चाहते हैं. आख़िर वो जिस विधायक रफ़ीक ख़ान पर आरोप लगा रहे हैं, उनका वहाँ क्या काम, वो आमागढ़ क्यूँ जाएँगे, मूर्तियाँ उन्हीं लोगों ने खण्डित की हैं जिन्होंने वहाँ बाद में अपनी मूर्तियाँ रखी हैं.”

मामला बढ़ने के साथ ही सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई, सोशल मीडिया पर भड़काऊ भाषण देने वाले उपदेश राणा ने फ़ेसबुक पर एक पोस्ट करते हुए लिखा की वो 23 जुलाई को आमागढ़ क़िले में भगवा झण्डा फहराने आएगा, लेकिन वो नहीं आया.

सुदर्शन चैनल के संपादक सुरेश चव्हाणके ने पूरे मामले पर कार्यक्रम किया और चुनौती दी है की वो 1 अगस्त को आमागढ़ क़िले में जाकर भगवा ध्वज फहराएँगे, जिस पर राजस्थान का मीणा समुदाय अपने लोगों को 1 अगस्त को आमागढ़ पहुँचने की अपील कर कर रहा है.

अर्जुन मेहर का कहना है कि, “अपनी विरासत और ज़मीन बचाने के लिए राजस्थान का आदिवासी समुदाय 1 अगस्त को जयपुर में इखट्टा होगा.”

आदिवासी नेता छोटूभाई वसावा ने ट्वीट करते हुए लिखा, “आबागढ़ पर 2 ही झंडे लहराएंगे, तिरंगा और आदिवासी समुदाय का, मुग़लो अंग्रेज़ों के गुलाम बनकर अपने घर चलाने वाले लोगों के वंशज अब आदिवासियों को देशभक्ति और झंडे का ज्ञान देंगे, रामकेश जी का विरोध करने वाले जो भी मीणा है वह ST सर्टिफ़िकेट त्याग दें.”

भीम आर्मी के संयोजक चंद्रशेख़र आज़ाद ने भी मामले में ट्वीट किया है

चंद्रेशखर ने ट्विट कर ख़ह है, “भगवा झंडे का सहारा लेकर अंबागढ़ किले को कब्जाने की कोशिश करना RSS की शर्मनाक साज़िश है. भले ही अंबागढ़ किला औरों के लिए महज़ एक खंडहर होगा लेकिन आदिवासियों के लिए उनके बलिदान की निशानी है. आदिवासी अपना झंडा लगाएंगे. RSS हस्तक्षेप करना बंद करे.”

पिछले साल उदयपुर के सलूम्बर में भी हुआ था ऐसा विवाद

इससे पहले भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं. पिछले साल उदयपुर के सलूम्बर में भी इसी तरह की घटना हुई थी जहां सोनारपहाड़ी पर सोनारमाता मन्दिर पर भगवा ध्वज को लेकर विवाद हो गया था.

डूंगरपुर ज़िले की चौरासी विधानसभा से भारतीय ट्राइबल्स पार्टी के विधायक राजकुमार रौत ने जनमानस से बात करते हुए कहा कि, “सलूम्बर में भी ऐसा ही किया गया था, सोनार की पहाड़ियों पर आदिवासी भील समुदाय के दायमा गोत्र का लाल झण्डा हर साल लगाया जाता है.”

उन्होंने कहा, “लेकिन हिन्दूवादी संगठनों में वहाँ भगवा झण्डा फहरा दिया, हमने प्रशासन की मदद से वहाँ हमारा लाल झण्डा लगाया लेकिन हमारे कई लोगों पर भगवा झण्डे के अपमान में मुक़दमे दर्ज किए.”

सलूम्बर के सोनार माता मंदिर में हुई घटना में भाजपा ने भारतीय ट्राइबल्स पार्टी पर आरोप लगाया था की उन्होंने वहाँ भगवा झण्डे हटा कर अपनी पार्टी के झण्डे लगा दिए.

रौत कहते हैं, “आमागढ़ आदिवासी मीणाओं का स्थान है और मीणा समूह राजनैतिक और प्रशासनिक तौर पर मज़बूत है इस लिए वो लड़ रहे हैं, लेकिन अन्य कमज़ोर जनजातियों को नक्सली कह कर दबा दिया जाता है.”

आदिवासी बनाम हिंदू धर्म

कई सालों से आदिवासी ये माँग करते आए हैं की उन्हें हिंदू धर्म से अलग किया जाए, क्योंकि उनका रहन सहन भाषा पहनावे और आस्थाएँ सब हिन्दू धर्म से अलग हैं.

इसी साल मार्च में राजस्थान यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और डूंगरपुर से कांग्रेस के आदिवासी विधायक गणेश गोघरा ने विधानसभा में आदिवासियों को हिन्दू धर्म से अलग बताते हुए अलग कोड की माँग कर दी थी.

गोघरा ने कहा था कि, “हमारा आदिवासी धर्म अलग है, हमारी संस्कृति अलग है, हम प्रकृति को पूजते हैं! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग कहते हैं आदिवासी हिंदू हैं, जबकि हिंदू के नाम पर हमारा शोषण हो रहा है! हमारा आदिवासी धर्म कोड अलग होना चाहिए, हम पर हिंदू धर्म थोपना बंद किया जाए, हम हिंदू नहीं हैं, हम अपने आप को हिंदू नहीं मानते!”

विधायक रामकेश मीणा कहते हैं, “आदिवासी हिंदू नहीं हैं, हम प्रकर्ति के पूजक हैं, हमारी अलग संस्कृति है लेकिन RSS हम पर हिन्दू धर्म थौपना चाहती है.”

विधायक राजकुमार रौत कहते हैं, “आदिवासी हिन्दू नहीं हैं, क्योंकि वो हिन्दू धर्म के चारों वर्णों में से किसी में शामिल नहीं हैं, और ना ही आदिवासियों पर हिन्दू विवाह अधिनियम लागू होता है.”

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