बिहार के विद्यालयों में शिक्षकों की कमी से किसी को इंकार नहीं है यहाँ तक कि बिहार के माननीय शिक्षा मंत्री ने भी इस हकीकत को स्वीकार करते हुए कहा था कि शीघ्र ही इस ओर ध्यान दिया जाएगा।
बेरोजगार युवाओं की ओर से जब भी शिक्षकों की नियुक्ति की मांग रखी गई तो माननीय सुप्रीम कोर्ट में “समान काम के लिए समान वेतन “के लंबित मामले को नियोजन के राह में रोड़ा बताया गया तो वहीं लोकसभा चुनाव के समय आचार संहिता की दुहाई देकर उन्हें शांत रखा गया .
ऐसे समय जबकि लोकसभा चुनाव भी सम्पन्न हो गए और “समान काम के बदले समान वेतन मामले” का फैसला भी आ गया! लोक सभा चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए को प्रचंड बहुमत भी मिला और समान काम के लिए समान वेतन मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक बिहार सरकार की ही जीत हुई!
बावजूद इसके बिहार की सत्तारूढ़ एनडीए सरकार, बेरोजगारी का दंश झेल रहे टीईटी एसटीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की मांगों को नजरअंदाज कर रही है। शिक्षकों की बहाली की मांग को लेकर अभ्यर्थियों का आंदोलन निरंतर जारी है!
गत दिनों आंदोलनकारियों पर पुलिस द्वारा बर्बरतापूर्ण तरीक़े से लाठीचार्ज किया गया जिसमें न सिर्फ युवाओं ब्लकि महिला अभ्यर्थियों को भी पीटने की खबर आई है!
सत्तारूढ़ एनडीए सरकार के इस निरंकुश व्यवहार से टीईटी एसटीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की उम्मीदों को गहरा धक्का लगा है! बेरोजगारी से जुझ रहे शिक्षित युवाओं द्वारा आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल के विरुद्ध अपने मत-प्रयोग की मंशा जाहिर की जा रही है।
गौरतलब है कि शिक्षा,स्वास्थ्य,सड़क, महंगाई,सुरक्षा, बेरोजगारी जैसे मुद्दे चुनाव को प्रभावित नहीं कर पाते हैं। यदि आमजनों के बीच ऐसे मुद्दे विचारणीय होते और जन सरोकार के मुद्दे पर चुनाव होते तो फिर लोकसभा चुनाव2019के परिणाम चौंकाने वाले होते। एनडीए को मिले प्रचंड बहुमत से स्पष्ट है कि जनता उनके कार्यों से संतुष्ट है या फिर शिक्षा बेरोजगारी कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों से ईतर तात्कालिक मुद्दों पर चुनाव हुआ है। तात्कालिक मुद्दे बेरोजगारी के आँकड़े पर भारी पड़ जाते हैं . अगर यह कहें कि इनमें से ही अधिकांश बेरोजगार युवा चुनाव के समय राजनीतिक दलों की चाकरी करते रहते हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. ऐसे में क्या यह संभव है कि टीईटी, एसटीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थी सरकार पर दबाव बना पाएंगे?
बेरोजगारी का अंदाजा तो इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब “समान काम के लिए समान वेतन” के मुद्दे पर माननीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिहार सरकार के पक्ष में और बिहार के नियोजित शिक्षकों के विरुद्ध आया था तो टीईटी एसटीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों के गुट ने सोशल मीडिया पर जमकर खुशी जाहिर की थी !
उनका मानना था कि अब हमलोगों की नियुक्ति के राह में जो रोड़ा था वह खत्म हो गया है. उन्हें समुचित वेतनमान जिसकी मांग कार्यरत नियोजित शिक्षक कर रहे थे,की तनिक भी चिंता नहीं थी और वे निर्धारित वेतन में ही अपनी नियुक्ति को बहुत बड़ी कामयाबी मान रहे थे साथ ही चुनाव के समय सरकार के विरुद्ध जाना उचित नहीं समझते थे!
वैसे धरना प्रदर्शन लाठीचार्ज आदि तो संघर्ष का हिस्सा है! इसमें डटे रहना भी कम बड़ी बात नहीं है क्योंकि उन्हें अभी लम्बा फासला तय करना है।
वैसे बिहार सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए क्योंकि बिहार की शैक्षणिक स्थिति में सुधार लाने के लिए व्यापक तौर पर शिक्षकों की आवश्यकता है और स्मरण रहे कि सरकारी विद्यालयों में अधिकांशतःआर्थिक रूप से पिछड़े समाज के बच्चे ही तालीम हासिल करने आते हैं!
-मंजर आलम
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और इनके लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं)