ब्राह्मणवाद और साम्प्रदायिकता की कलई खोल कर रख देने वाले नेता लालू यादव का जन्मदिन !


ब्राह्मणवाद और साम्प्रदायिकता की कलई खोल कर रख देने वाले लालू

11 जून को उन्हीं लालू प्रसाद यादव का जन्मदिन है. वे बेहद बीमार होने के बावजूद जमानत नहीं दिए जाने के चलते जेल में है, उनको ये सजा कुछ लाख के चारा घोटाले के मामले में हुई थी, उसी भारत में जहाँ करोड़ों के घोटालेबाज राजनेता आज तक एक दिन भी जेल नहीं गए और उसी चारा घोटाले के सूत्रधार जग्गनाथ मिश्र कब के मामले से बरी होकर निकल लिए.

भारतीय न्यायपालिका कमाल करती है, काले कोट के नीचे जनेऊ छिपाकर न्याय करती है, इसीलिए तो आंकड़े बताते हैं की अंतिम सजा सुनाये जाने के मामले में ही नहीं बल्कि विचाराधीन कैदियों के मामले में भी “सवर्ण” और “अवर्ण” (ST/SC/OBC/माइनॉरिटीज) का आनुपातिक हिस्सा बेहद असंतुलित है. न्याय प्रक्रिया से जुड़े लोग इसे हर रोज़ देखते और झेलते है.

खैर, अभी बात लालू जी और उनकी राजनीति की

सामजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के मामले में ज़ीरो टोलरेंस रखने वाले लालू यादव को ब्राह्मणवादी मिडिया ने कभी जातिवादी, कभी जंगलराज चलाने वाले, कभी अपराध को शरण देने वाले बताने में कभी कोई कसर नहीं रखी.

लेकिन बिहार के गरीब, गुरबा, पिछड़ा, मजदूर को आवाज देने वाला ये शख्स कभी झुका नहीं. मंडल लाने में सारथि की भूमिका भी निभाई तो कमंडल के रथ को रोककर साम्प्रदायिकता फैलाने में अग्रदूत बने आडवाणी को जेल की हवा भी खिलाई.

इस बात और तमाम मुश्किलों के बावजूद समझौता नहीं करने का फल है की आज वो गंभीर बीमार होते हुए भी जेल में है.

प्रगतिशील लोगों का एक तबका उन पर सवाल उठाता रहता है लेकिन पता नहीं क्यों वो इस पहलू को छोड़ देते है.

ऐसी ही एक दूसरी धारणा उनके खिलाफ गढ़ी गयी की उन्होंने राज्य की शिक्षा व्यवस्था को तार-तार किया, जबकि सच तो ये है की शिक्षकों की खुली प्रतियोगिता के जरिये सबसे बड़ी भर्ती उन्होंने करवाई, चरवाहा विद्यालय तक खोले और बिहार में सबसे ज्यादा विश्विद्यालय खोलने का श्रेय उनको जाता है.

हाल ही में मैंने बिहार रहकर उसी शिक्षा व्यवस्था में शोध किया तो जाना की आज अगर बिहार की शिक्षा में थोड़ी भी मजबूती बाकी रही है तो उनकी बनाई उस नींव के दम पर ही है नहीं तो पहले और बाद के काम तो सिर्फ मिडिया को ही अच्छे लगे होंगे.

सच में तो शिक्षा का मजाक बना दिया गया है, यकीन नहीं होगा लेकिन सच ये है की नीतीश राज में मुखिया तक ने अपनी मर्जी से फ़र्ज़ी दस्तावेज के आधार पर भी शिक्षक नियुक्त कर डाले थे.

मुझे आज के हालात देखकर तो कोई विजन नितीश सरकार का शिक्षा व्यवस्था को लेकर नजर नहीं आया बल्कि पंद्रह साल से ज्यादा समय से काम कर रहे शिक्षक भी निविदा शिक्षक ही बने हुए है.

बाकी शिक्षा के दर्शन की बात करें तो लालू को जब बिहार में हाल ही में और यूँ कहें की हमेशा से होती आ रही नक़ल पर लगाम लगाने के उनके उपाय पूछे गए तो वे अपने उसी देसी अंदाज़ में बोलते हैं की हम ओपन-बुक एग्ज़ाम के हिमायती हैं और हम इस से निपटने के लिए ओपन-बुक परीक्षा लेंगे.

इसे भी आप अपने तरीके से विश्लेषित कर सकते हैं लेकिन शिक्षा पर सबसे प्रगतिशील विचार मूल्यांकन के लिए ओपन-बुक एक्जाम की ही हिमायत करता है.

लालू जी आपको जन्मदिन बहुत मुबारक, कामना करता हूँ की आप स्वस्थ रहें और जल्दी बाहर आएं….. अभी बहुत लम्बी लड़ाई है. आपके जैसे योद्धा चाहिए ही.

कहने वाले कुछ भी कहें लेकिन आप मेरे लिए ना सिर्फ सामजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के लड़ाका हैं बल्कि प्रगतिशीलता और क्रांतिकारी सोच के मजबूत वाहक भी है.

– महेश चौधरी

(स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता)


 

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