अर्बन मीडिल और अपर मीडिल क्लास को न तो बच्चों की मौत से फर्क पड़ता है, ना ही जवानों के शहीद होने से।
ये तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी को ही वोट करेंगे और अपने वातानुकूलित आफिसों में बैठकर अंजना, अरणब और सुधीर वाली घटिया पत्रकारिता देखेंगे।
अपने बच्चों को हाई-फाई कोन्वेंट स्कूलों में पढ़ने भेजेंगे और उन्हें ज़रा सी खंरोच मात्र आने पर हाथोंहाथ अपने फैमीली डाक्टर को बुलावा भेज देंगे।
पड़ोसी के घर में आग भी लग जाए तो “हमें क्या मतलब है” कहकर खिसक लेंगे या ज्यादा से ज्यादा एक वीडियों बना लेंगे।
यह वही लोग हैं जो बिहार में हो रही मासूम बच्चों की मौत का कारण लीची को बता रहे हैं। इनके लिए कुपोषण, भुखमरी जैसा कुछ होता ही नहीं क्योंकि इन जैसा कोई ना कोई दानवीर भूखे बच्चों को दस-बीस रुपए देकर उन पर एहसान जो कर देता है।
सरकार चाहे जिसकी भी हो, उसका बीच बचाव करने के लिए ये सबसे पहले आ जाते हैं। तर्क देते हैं कि, अगर बच्चे बीमारी से मर रहे हैं तो इसमें सरकार की क्या गलती, डॉक्टर इसके लिए जिम्मेदार हैं, आरक्षण ख़त्म होना चाहिए, तभी अच्छे डॉक्टर आ पाऐंगे।
यही लोग फिर एंकर अंजना कश्यप की ‘क्रांतिकारी पत्रकारिता’ पर तालियाँ पीटते हैं।
अपने कंफर्ट जो़न में जीने वाले इन लोगों से कोई भी उम्मीद करना बेकार है। गरीब की गरीबी को उनका निकम्मापन करार देने वाले लोगों के बारे में क्या ही बात की जाए।
–ख़ुशबू शर्मा