हम सबने मिलकर चौहटन के प्रतापराम की जान ले ली…!
प्रतापराम जी के साथ जो हुआ इसके लिए मैं शर्मिंदा होकर मेरी माफी दर्ज करवाना चाहता हूं.
कभी-कभी लगता है हम बातें बहुत बड़ी करते हैं..आदर्शों, सिद्धांतों, संस्कारों का एक अलग ही लेवल सेट कर रखा है जहां इतनी ऊंचाई है कि हमारी हरकतें उनसे अक्सर विरोधाभासी हो जाती है!
बाड़मेर में चौहटन के रहने वाले बुजुर्ग प्रतापराम जिनके पास एक ठेला था, वो उसी में रहते थे और रास्ते में चलते हुए प्लास्टिक की बोतल और कचरा बीनते थे.
बीते कुछ दिनों पहले “भंगार लेवणो है काईं” इस लाइन के एक वीडियो से वो समाज की नजरों में आए, ताजा भाषा में कहें तो वायरल हुए! मोबाइल स्क्रीन में उतरे लेकिन इसी समाज ने उन्हें फांसी के फंदे तक पहुंचा दिया।
दरअसल 2-3 महीने पहले एक जापानी टूरिस्ट ठेला खींचते बुजुर्ग से टकराई, मदद के लिए कहा तो बुजुर्ग बोले आपको क्या करना है, भंगार लेना है क्या?
कुछ नौजवानों ने इस लाइन का वीडियो सोशल मीडिया पर डाला, वायरल हुआ और उसी दिन से प्रतापराम का जीवन नर्क हो गया!
इसके बाद बुजुर्ग जहां कहीं दिखते तो युवक उनका मजाक बनाते, रील बनाते…वो लाइन फिर से बोलने की डिमांड करते.
देखते ही देखते एक शख्स के पूरे अस्तित्व को एक मीम की शक्ल में उतार दिया गया और ठेले पर गुजर रहे जीवन की सड़क में अचानक इतने ब्रेकर देखकर प्रतापराम व्यथित हो गए.
इसके बाद जब कोई वीडियो बनाने या वो लाइन बोलने की कहता तो वो उन्हें पत्थर मारते, उनका संतुलन भी जवाब दे गया.
वहीं कल एक पेड़ से फंदा लगाकर उन्होंने अपने जीवनलीला समाप्त कर ली, क्या इस मौत के लिए किसी को गुनहगार ये कानून साबित कर पाएगा?
क्या मीम और रील बनाने का ये नशा इस तरह प्रताड़ित कर किसी की जान तक ले लेगा और सब चुप रहेंगे ?
एक इंसान जो शायद किसी के लिए तकलीफ नहीं था उसकी जान इसी समाज ने बिना हमला किए, बिना कोई जहर दिए ऐसे ही ले ली.
प्रतापराम जी के साथ जो हुआ इसके लिए मैं शर्मिंदा होकर मेरी माफी दर्ज करवाना चाहता हूं.
– अवधेश पारीक