राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार चलाने की नीतियों के चलते मात्र कुछ कांग्रेस विधायक व आधा दर्जन नजदीकी नेताओं को ही सरकारी कामकाज मे अहमियत मिलने के अलावा बाकी सभी तरह के कांग्रेस नेताओं को किसी भी रुप मे अहमियत नही मिलने के चलते अंदर ही अंदर पनप रहे आक्रोश को देखते हुये लगता है कि हाल ही मे केरल के दिग्गज नेता पीसी चाको की तरह राजस्थान के भी अनेक नेता कांग्रेस को अलविदा कह सकते है।
इसके विपरीत पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा नेता वसुंधरा राजे द्वारा अपने निजी कार्यक्रम के बहाने भरतपुर मे पार्टी नेताओं को जमा करके अपनी ताकत दिखाकर दवाब बनाने की चेष्टा को आगे चलकर धीरे धीरे उनके कमजोर होना माना जा रहा है। भरतपुर मे राजे के कार्यक्रम मे शामिल होने वाले नेताओं की सूची सार्वजनिक होने के बाद राजनीतिक चर्चा भी चरम पर पहुंच चुकी है।मानो अब पार्टी मे राजे की उल्टी गिनती शुरू।
गहलोत के सरकार चलाने के तरीको को लेकर विधानसभा मे व विधानसभा के बाहर कांग्रेस के विधायक खुलकर उनके खिलाफ बोलने लगे है। मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा वित्तमंत्री की हेसियत से रखे गये बजट को लेकर भी कांग्रेस की बैकबोन माने जाने वाले अनुसूचित जाति , जनजाति एवं अल्पसंख्यक मतदाता खुलकर विरोध जताने मे चुक नही कर रहे है।
अनुसूचित जनजाति के कांग्रेस विधायक व पूर्व मंत्री रमेश मीणा, विधायक मुरारीलाल मीणा व अनुसूचित जाति विधायक वैदप्रकाश सोलंकी ने खुलकर अपना विरोध जताते हुये राहुल गांधी से मिलकर बात रखने की बात कही है। अगर फिर भी रास्ता नही निकला तो त्याग पत्र देने को भी कहा है।
गहलोत की राजनीति पर नजर रखने वाले बताते है कि गहलोत अपने मुख्यमंत्री काल मे हमेशा से दलित, अल्पसंख्यक व पिछड़ा वर्ग को दरकिनार रखते हुये स्वर्ण को अहमियत देते आये है।गहलोत अपने वर्तमान कार्यकाल मे मानवाधिकार आयोग, लोकायुक्त, कर्मचारी चयन आयोग सहित विभिन्न संवेधानिक संस्थाओं के चेयरमैन की नियुक्तियां की है। जिनमे एक भी अनुसूचित जाति , जन जाति व अल्पसंख्यक समुदाय को प्रतिनिधित्व नही दिया है।
कुल मिलाकर यह है कि विधानसभा मे विधायक संयम लोढा ने मेन स्ट्रीम वाले विभागो का प्रभारी मंत्री दलित विधायकों को नही बनाने की आवाज उठाई। वही विधायक रमेश मीणा ने अनुसूचित जाति व जनजाति एवं अल्पसंख्यक विधायको के विधानसभा मे सिटिंग अरेजमेंट मे उनके सामने माईक नही होने का मुद्दा उठाया है।
वहीं कुछ विधायकों ने उक्त तबके के विधायकों को सत्र मे बोलने का मोका नही देने का मुद्दा उठाकर राजनीति को गरमा दिया है। साथ ही जानकारी अनुसार गहलोत की नितियों के कारण उपेक्षित महसूस करने वाले अनेक दिग्गज नेता जल्द कांग्रेस छोड़ना शुरू कर सकते है।
– अशफ़ाक कायमखानी