सचिन पायलट सिर्फ अशोक गहलोत के लिए खतरा नहीं हैं. जैसा कि भारतीयों की आदत होती है, वे वर्तमान में नहीं जीते, सात पीढ़ियों के बारे में सोचते हैं. कांग्रेस के पुराने चावल गहलोत भी यही सोच रहे होंगे कि उनके बाद उनके बेटे के लिए रास्ता साफ रहे. सचिन पायलट के रहते शायद यह संभव न हो.
सरकार गिराने की साजिश को लेकर पायलट को नोटिस भिजवाना इसी सोच और षडयंत्र का हिस्सा हो सकता है कि पायलट को निपटा दिया जाए. जैसे कांग्रेस परिवार सोचता है कि परिवार के अलावा कोई बड़ा नेता न उभरने पाए, गहलोत भी सोच रहे होंगे कि उनके अलावा कोई दूसरा न टिके.
मुसीबत ये है कि मोदी-शाह जैसा करिश्माई नेतृत्व कभी-कभी होता है, जब जनता केंद्र में किसी चेहरे को देखकर वोट करती है और राज्य का नेतृत्व मायने नहीं रखता. कांग्रेस में ऐसी स्थिति नहीं है. कम से कम राहुल गांधी अभी वह चेहरा नहीं हैं, जिसके नाम पर जनता वोट दे दे.
इसीलिए जिन राज्यों में कांग्रेस का नेतृत्व मजबूत रहा, वहां उसने वापसी की, लेकिन गुटबाजी में सामंजस्य न बना पाने की अयोग्यता ने मध्य प्रदेश छीन लिया. अब राजस्थान में भी ग्रहण लगा हुआ है.
राहुल गांधी शायद अपने नेतृत्व को लेकर दुविधा में हैं. लोकसभा के बाद से उन्होंने अध्यक्ष पद त्याग दिया. वे परिवारवाद के बोझ से मुक्त होना चाहते हैं, लेकिन नेतृत्व किसी और को देना भी नहीं चाहते. एक साल से ज्यादा हो गया, अध्यक्ष पद खाली है. केंद्रीय स्तर पर आज भी सहयोगी हैं, लेकिन फ्रंट रनर नहीं हैं. जिन युवा नेताओं में संभावना थी, उन्हें मौका नहीं मिला.
इंदिरा कांग्रेस में भी गैर-गांधी परिवार के लोग अध्यक्ष बनाए गए थे, लेकिन पिछले 20 से ऐसा होता नहीं दिखा. नेतृत्व की पहली परीक्षा तो यही होती है कि अपना कुनबा, परिवार, पार्टी वगैरह एकजुट रहे. विजय तो इसके बाद की चीज है, जिसके लिए आपको लड़ना भी होता है।
– कृष्णकांत (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं। )