ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की लखनऊ में हुई एग्जिक्यूटिव की मीटिंग में यह तय हुआ है कि राम मंदिर बाबरी मस्जिद मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ रिव्यू पिटिशन डाली जाएगी यह बाद मीटिंग के बाद हुई प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में की गई!
Syed Qasim Rasool Ilyas, All India Muslim Personal Law Board (AIMPLB): The Board has decided to file a review petition regarding Supreme Court's verdict on Ayodhya case. pic.twitter.com/fV6M2Lifhc
— ANI UP (@ANINewsUP) November 17, 2019
बोर्ड ने ये भी कहा की पाँच एकड़ ज़मीन नहीं लेंगे क्यूँकि मस्जिद के बदले कहीं ओर ज़मीन लेना ग़ैर शरयीअ है!
उन्होंने कहा, बोर्ड का मानना है कि मस्जिद की जमीन अल्लाह की है और शरई कानून के मुताबिक वह किसी और को नहीं दी जा सकती। उस जमीन के लिये आखिरी दम तक कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी।
बोर्ड ने जिन क़ानूनी पहलुओं पर याचिका दायर करने की बात कही है वो इस तरह हैं!
• सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि बाबर के सेनापति मीरबाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया गया था.
• 1857 से 1949 तक बाबरी मस्जिद की तीन गुंबदों वाली इमारत और अंदरुनी हिस्सा मुस्लिमों के कब्जे में माना गया है. फिर फैसले में मंदिर के लिए जमीन क्यों दी गई.
•कोर्ट ने माना है कि बाबरी मस्जिद में आखिरी नमाज 16 दिसंबर, 1949 को पढ़ी गई थी, यानी वह मस्जिद के रूप में थी. फिर भी इस पर मंदिर का दावा क्यों मान लिया गया.
• सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 22-23 दिसंबर, 1949 की रात को चोरी से या फिर जबरदस्ती मूर्तियां रखी गई थीं. इसके बाद इन मूर्तियों को देवता नहीं माना जा सकता.
• गुंबद के नीचे कथित रामजन्मभूमि पर पूजा की बात नहीं कही गई है. ऐसे में यह जमीन फिर रामलला विराजमान के पक्ष में क्यों दी गई.
• सुप्रीम कोर्ट ने खुद अपने फैसले में कहा है कि रामजन्मभूमि को पक्षकार नहीं माना जा सकता. फिर उसके आधार पर ही फैसला क्यों दिया गया.
• सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 6 दिसंबर, 1992 में मस्जिद को गिराया जाना गलत था. इसके बाद भी मंदिर के लिए फैसला क्यों दिया गया.
• कोर्ट ने फैसले में कहा कि हिंदू सैकड़ों साल से पूजा करते रहे हैं, इसलिए पूरी जमीन रामलला को दी जाती है, जबकि मुस्लिम भी तो वहां इबादत करते रहे हैं.
• सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए कहा है कि जमीन हिंदुओं को दी गई है. इसलिए 5 एकड़ जमीन दूसरे पक्ष को दी जाती है. इसमें वक्फ ऐक्ट का ध्यान नहीं रखा गया, उसके मुताबिक मस्जिद की जमीन कभी बदली नहीं जा सकती.
• एएसआई के आधार पर ही कोर्ट ने यह माना कि किसी मंदिर को तोड़ कर मस्जिद का निर्माण नहीं हुआ था. ऐसे में कोर्ट का यह फैसला समझ से परे है.