देश के प्रधानमंत्री की नजर में पुलवामा में सेना पर हुआ आतंकवादी हमला कोई बड़ा हमला नहीं। वे कहते हैं कि मेरे कार्यकाल में कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ? जबकि दो दिन पहले ही वो पुलवामा के शहीदों के नाम पर वोट मांग रहे थे। क्या वो हमला वर्षों पुरानी बात है? अब कह रहे हैं कि किसानों की मौत पर राजनीति हो सकती है तो सैनिकों पर क्यों नहीं? सही है सैनिक देश की सुरक्षा के लिए शहीद हो रहे हैं और किसान भी आपके हिसाब से देश हित मे ही आत्महत्या कर रहे होंगे? देश की सेना को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मोदी की सेना कहते हैं। राजनैतिक पतन की पराकाष्ठा को पार कर नाली नाली में नाक रगड़ना इसी को कहते हैं। जो सरकार की नीतियों के खिलाफ बोला वो देशद्रोही हो गया…टुकड़े-टुकड़े गैंग हो गया…प्रधानमंत्री सार्वजनिक मंचों से टुकड़े- टुकड़े गैंग जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं। अपने घोषणापत्र में वामपंथी राजनीति को वामपंथी आतंकवाद बता दिया।
मीडिया घुटनों पर रेंग रहा है। सुधीर चौधरी, रोहित सरदाना, अर्णव, अंजना ओम कश्यप, अमिश जैसे बीजेपी प्रवक्ता टाइप एंकरों ने चिल्ला चिल्ला कर मोदी के झूठ को खूब प्रचारित किया। देश के प्रधानमंत्री ने 5 साल के कार्यकाल में एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की । जो दो चार इंटरव्यू दिए सब के सब स्क्रिप्टेड इंटरव्यू थे। एक भी ढंग का सवाल पूछने की हिम्मत किसी मीडियाकर्मी में नहीं हुई। ABP न्यूज पर एक इंटरव्यू में राफेल पर पूछे गए सवाल पर तिलमिला गए और ABP को ही बायस्ड न्यूज चैनल बताने लगे जबकि वे बिचारे पाँच साल से मोदी जी की ही टाट खुजा रहे हैं। चैनल ने पहले तो मूल इंटरव्यू में इसको नहीं दिखाया पर पता नहीं कैसे सद्बुद्धि आई और दिखा दिया? चुनाव आचार सहिंता की धज्जियाँ उड़ाते हुए नमो टीवी लांच कर दिया। बायोपिक चला दी। फिल्में बना दी। चुनाव आयोग देखता रहा। सुप्रीम कोर्ट की फटकार पड़ी तो प्रतिबंध लगाया।
सारी दुनिया को आतंकवादी बताने वालों ने भोपाल की लोकसभा सीट से साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार बना दिया जिस पर आतंक फैलाने का आपराधिक मामला चल रहा है।
“साध्वी प्रज्ञा दक्षिणपंथी अतिवाद का उस समय चेहरा बन कर उभरीं जब महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते ने साल 2008 में उन्हें मालेगांव बम धमाके मामले में हथकड़ियां पहना दीं थीं। 9 साल जेल में रहने के बाद इस बहुर्चिचत मामले में वह इन दिनों जमानत पर चल रही है।”(जनसत्ता)
क्या साध्वी प्रज्ञा के नाम पर दंगों की राजनीति की जाएगी? मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में शहीद हुए हेमंत करकरे के बारे में कह रही है कि वो कुटिल था। उसने फंसा दिया । प्रज्ञा ठाकुर का ये बयान कि उन्हें हिरासत में यातनाएं दी जाती थीं, गलियां दी जाती थीं ‘इतनी यातनाएं दीं, इतनी गंदी गालियां दीं जो असहनीय थी मेरे लिए. और मेरे लिए नहीं किसी के लिए भी।मैंने कहा तेरा सर्वनाश होगा। ठीक सवा महीने में सूतक लगता है। जब किसी के यहां मृत्यु होती है या जन्म होता है, सूतक लगता है जिस दिन मैं गई थी उस दिन इसके सूतक लग गया था। ठीक सवा महीने में जिस दिन इसको आतंकवादियों ने मारा उस दिन सूतक का अंत हो गया। जिस पार्टी ने पिछले 5 साल से देशभक्ति के सर्टिफिकेट बाँटने का धंधा लगा रखा है उसकी एक लोकसभा उम्मीदवार उनकी शहादत को श्राप से मरना बताती है। क्या इसमें भी कोई साजिश तो नहीं थी ?
मोदी जी के कार्यकाल में सार्वजनिक क्षेत्रों के लगभग संस्थानों को बर्बाद किया गया। इस सरकार के पहले ही बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य पर बजट राशि कम कर दी गई। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के लगभग 50 प्रतिशत बच्चें कुपोषण के शिकार हैं फिर भी सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट कम कर दिया। शिक्षा क्षेत्र की तो हालत ही खराब कर दी। JNU जैसी टॉप यूनिवर्सिटी तक को नहीं छोड़ा तो और यूनिवर्सिटियो से तो क्या उम्मीद की जा सकती है? ऐसे-ऐसे वाइस चांसलर की नियुक्ति की जिनको विश्वविद्यालय चलाने की रत्ती भर भी योग्यता नहीं। जेट एयरवेज बन्द हो गई और उसके 22000 हजार कर्मचारी जो नौकरी जाने की वजह से सड़क पर गए उनके परिवारों का क्या होगा? वे कहाँ खोजेंगे दुबारा नौकरी जबकि पहले ही बेरोजगारी सातवें आसमान पर है। BSNL, भारतीय डाक विभाग जैसे संस्थान खत्म होने के कगार पर खड़े हैं। जिनके कर्मचारी कहाँ जाएँगे? सब कुछ का प्राइवेटाइजेशन किया जा रहा है तो नौकरियाँ कहाँ से दोगे? सरकार द्वारा चलाई जा रही रोजगार स्कीमों से कितने लोगों ने अपने रोजगार आरम्भ किये? सरकार के पास कोई आँकड़ा नहीं है। अगर होता तो चुनाव में इन उपलब्धियों को गिनाया जाता। पर मोदी जी रैली में शहीदों के नाम पर वोट माँग रहे हैं। राष्ट्रवाद के नाम पर भोली भाली जनता को ठगा जा रहा है। भारतीय राजनीति में चारित्रिक हनन के धब्बे का रंग दिन प्रतिदिन और काला पड़ता जा रहा है। राजनीति मुद्दो से भटकर गाली गलौज की भाषा तक पहुंच गई है ताकि असली मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सकें। भाजपा के अध्यक्ष सार्वजनिक मंच से कहते हैं हिन्दू, बौद्ध और सिक्ख ही देश मे रहेंगे? संविधान में तो धर्मनिरपेक्षता की बात की गई है। पहली बार संसद में पैर रखने से पहले माथा रगड़ कर जाने वाले प्रधानमंत्री क्या संविधान के प्रति ली गई शपथ को भूल गए?
GST को मुद्दा क्यों नहीं बनाया जा रहा? नोटबन्दी को क्यों नहीं सरकार चुनावों में अपनी उपलब्धि बता रही? सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लागू करने पर संसद ठप कर देने वाली पार्टी सत्ता में आते ही उसको लागू कर देती है। अब वो चुनावी मुद्धा क्यों नहीं ?
पिछले दिनों बेमौसम की बारिश के कारण किसानों की खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो गई। जिन किसानों ने निकाल कर मंडी में पहुंचा दिया वो छत के अभाव में पानी मे बह गई। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में 2014 की तरह ही वादा किया है कि हाइवे के किनारे अनाज को सुरक्षित एकत्रित करने के लिए स्टोरेज बनाएंगे? 5 साल तक क्या कर रहे थे? यूपीए सरकार के समय भूमि अधिग्रहण बिल लागू किया गया जिसको भाजपा सरकार ने अध्यादेश के जरिये पलटने की कोशिश की परन्तु उनके मंसूबे संसद में कामयाब नहीं हो सके। किसानों के बड़े मुद्दें स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का वादा करके पाँच साल पहले सत्ता में आये मोदी जी उसको अब भूल गये। किसानों की आय दोगुनी करने की मियाद 2022 कर दी। देश मे हर आधे घण्टे पर एक किसान आत्महत्या कर रहा है। किसान आत्महत्या के आँकड़ों को सरकार ने दबा लिया। फिर भी अरुण जेटली कहते हैं कि किसानों और बेरोजगारों को समस्या होती तो वे आंदोलन करते। आँख के अंधे मंत्री को नहीं सूझता। दिल्ली से लेकर मुंबई तक खूब किसान आंदोलन हुए। दिल्ली में घुसने से रोका तक गया। सारी मुंबई किसानों के हुजूम से अटी पड़ी थी। जेटली जी को वीडियो निकालकर दिखाना चाहिए हो सकता है सत्ता के गुरुर में अंधे इन पर किसानों की पीड़ा असर कर जाएं?
स्मार्ट सिटी तो भाड़ में गई। सांसद गाँव को भी स्मार्ट तो दूर की बात बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध न करवा सके। गाँवों तक जियो के फ्री इंटरनेट ने धार्मिक उन्माद और फेक न्यूज के कारोबार को आसान बनाने के खूब सहायता की।
-ओम प्रकाश सुंडा
(लेखक राजस्थान सेंट्रल यूनिवर्सिटी में हिंदी के शोधार्थी छात्र हैं)