किसी भी सरकार का रिपोर्ट कार्ड उसके द्वारा किए गए वादों और लागू की गई योजनाओं के कागजों से जमीन पर उतरने का एक जीता-जागता सबूत होता है। चुनाव के वक्त ऐसे कई रिपोर्ट कार्ड हवा में उड़ते हैं जो आंकड़ों की स्याही में लिपटे होते हैं,
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लेकिन इस बीच कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी पीड़ा इन आंकड़ों की गणित से बता पाना संभव नहीं होता है। आदर्श गांव की हकीकत जानने जब जनमानस की टीम सांगानेर के भापुरा गांव पहुंची तो एक ऐसे ही शख्स से हमारी मुलाकात हुई जो सरकारी योजनाओं के सितम की जीती-जागती मिसाल है।
पुरुषोत्तम रैगर, छोटा-मोटा प्राइवेट काम कर 2 बच्चों का परिवार चलाने वाले इस ग्रामीण ने बताया कैसे “सांसद आदर्श ग्राम पंचायत योजना” ने इनकी ज़िन्दगी उथलपुथल कर दी।
योजना लागू होने के बाद मिला घर खाली करने का सरकारी नोटिस
दरअसल, योजना के तहत जिस तलाई को मॉडल तालाब बनाने की बात कही गई, उसके किनारे पुरुषोत्तम का 300 गज का मकान था। लिहाजा, तथाकथित मॉडल की आड़ में घर खाली करने का सरकारी नोटिस घर पे चस्पा हो गया।
सदमे में पुरुषोत्तम के पिता की ब्रेन हेमरेज से मौत
अपनी पुरानी जमीन खाली करने का फरमान पुरुषोत्तम के पिता गंगाराम रैगर को ऐसा सदमा दे गया कि पहले वो अस्तपाल के बिस्तर पर पहुंचे जिसके बाद 29 सितंबर 2015 को आई मौत ने बेटे के सामने सरकारी तंत्र को हत्यारा बना दिया।
पुनर्वास के नाम पर मिली एक खंडहर स्कूल की इमारत
घर की जमीन मॉडल तालाब के नाम कुर्बान करने के बाद पुनर्वास के नाम पर पुरुषोत्तम को सरकार ने एक पुरानी स्कूल में रहने के लिए जगह दी, जिसकी इमारत कब पुरुषोत्तम के परिवार की जान ले ले इसका कोई भरोसा नहीं है।
हालांकि दूसरी जमीन के आश्वासन में पुरुषोत्तम ने पूरे 5 साल सरकारी दफ्तर और रामचरण बोहरा के घर के खूब चक्कर लगाए, लेकिन आज भी वो इसी स्कूल में रहने को मजबूर है।
जनमानस से बातचीत के दौरान पुरुषोत्तम सरकारी तंत्र को खोखला बताते हुए कहते हैं, साहब, इस देश में एक गरीब और कमजोर आदमी का कोई नहीं है। सामाजिक संस्थाओं से भी पुरुषोत्तम को कोई सहायता नहीं मिली है।
– अवधेश पारीक