भारत के दक्षिण भाग के केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु व पांडीचेरी को छोड़कर बाकी प्रदेशों मे कांग्रेस के अड़ीयल पन व ज़िद का रवैया अपनाने के चलते सेक्यूलर राजनीतिक ताकतों से गठबंधन नहीं होने से मतों का विभाजन होने के कारण देश की कमान 2019 मे एक दफा फिर भाजपा गठबंधन के हाथो मे आ सकती है!
भारत के पश्चिमी बंगाल मे कांग्रेस का तृणमूल व वामपंथी दलों से समझोता नहीं है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार होने व कांग्रेस की पतली हालत होने के बावजूद कांग्रेस की मात्र ज़िद के कारण गठबंधन नहीं हो पाया!
तो भारत भर में वामदलो व बसपा ने किसी तरह से कांग्रेस से गठबंधन होने से साफ मना कर दिया है। जबकि आंध्रप्रदेश व आसाम मे भी अब हालत बन चुके है कि कांग्रेस से किसी दल से गठबंधन नहीं हो पा रहा है!
जबकि इसके विपरीत आसाम व आंध्रप्रदेश मे भाजपा ने स्थानीय कुछ दलो से गठबंधन करने का रास्ता निकाल लिया है!
इसी तरह राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उतराखंड, गुजरात, हरियाणा , उडीसा व पंजाब सहित अन्य प्रदेशों मे भी कांग्रेस के अड़ीयलपन के कारण स्थानीय व भारतीय स्तर के दलों से कांग्रेस का गठबंधन ना होना सेक्यूलर मतों में बंटवारा होने के चलते भाजपा गठबंधन को ताकत मिलना माना जा रहा है!
कांग्रेस की सेक्यूलर दलों की हैसियत मिटाकर उन्हें उचित हिस्सेदारी ना देने की चाल चलने के बावजूद वो जनता मे गलत रुप से धारणा फैलाकर यह कोशिश करने का दिखावा करती नजर आ रही है कि वो तो सेक्यूलर मतों को इखट्टा करने की कोशिशें लगातार करती है!
लेकिन अन्य छोटे छोटे दल उनसे गठबंधन करने से दूर भागते है। जबकि असल हालात यह है कि सच मे कांग्रेस भाजपा गठबंधन को सरकार बनाने के लिये रोकना चाहती है तो उसको बडा दिल दिखाते हुये कमोबेश छोटे छोटे दलों की हैसियत को Consider करते हुये उनको सीट देने को आगे बढकर गठबंधन करने पर विचार करना चाहिए!
कांग्रेस की हमेशा से कोशिश रहती आई है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर केवल मात्र वो ज़िन्दा रहे बाकी छोटे छोटे दल जो वास्तव मे धर्मनिरपेक्षता पर चलते हुये भाजपा के लिये चुनौती बनकर उभर रहे है वो उभरने के साथ ही मिट जाये!
ताकि उनकी ताकत व संघर्ष के कारण बने हालात शून्य होकर भारत मे दो दलीय व्यवस्था कायम रह सके। उदाहरण के तौर पर राजस्थान मे अगर कांग्रेस का बीटीपी, रालोपा, वामदलो व बसपा से किसी भी रुप मे गठबंधन हो जाता है तो कांग्रेस दो अंको मे सीट आसानी से जीत सकती है!
Photo-Kejriwal
वरना अपने दम पर कांग्रेस का एक अंक तक सीट जीत पाने तक सीमित रहना तय है। इसी तरह दिल्ली में आप व कांग्रेस के अलग अलग लड़ने से भाजपा को फायदा मिलना निश्चित है!
कांग्रेस की हमेशा रही एक नीति कि सेक्यूलरवाद पर या तो हम रहे या फिर कोई दूसरी ताकत भारत मे ना पनप पाये। इसी नीति के कारण जनता मे कांग्रेस की अलग तरह की छवि बनने के कारण भाजपा का विस्तार व कांग्रेस का सिंकूड़न होता जा रहा है!
-अश्फ़ाक क़यामखनी
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)