भारतीय राजनीति में वंशवाद!
इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारत मे वंशवाद भरपूर है, इस पर सोशल मीडिया और टीवी डिबेट में खूब चर्चे होते हैं। भारतीय राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद पर जब बहस होती है तो लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और सोनिया गांधी का नाम हर किसी के जुबान से सुनने को मिल जाता है! परंतु देश में बहुत से ऐसे नेता है जिनके पुत्र, भाई व बहन राजनीती में हैं जिनकी जानकारी लोगो को नही दी जाती! मीडिया और विपक्ष इन तथ्यों को छुपाकर कुछ खास नेताओं को बदनाम करने का काम करती है!
भाजपा परिवारवाद पर बड़े-बड़े बयान देती है। उनके नेता अपने भाषणों में देश से परिवारवाद की राजनीति को उखाड़ फेंकने की बात करते हैं। बिहार में महागठबंधन से अलग होने में नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के साथ परिवारवाद को एक बड़ी वजह बताया!
क्या वंशवाद और परिवारवाद लोकतंत्र के लिए खतरनाक है? क्या संविधान में वंशवाद और परिवारवाद के लिए कोई गुंजाईश नही है? इस मुद्दे पर सार्थक बहस होनी चाहिए! काबिलियत के बल पर अगर कोई राजनीति में आता है तो इसमें बुरा क्या है? हाँ, अगर वंशवाद और परिवावाद लोकतंत्र के लिए खतरनाक ही है तो संविधान में संशोधन कर ऐसा बिल पास किया जाना चाहिए कि किसी नेता के पुत्र या रिश्तेदारों का राजनीति में प्रवेश वर्जित हो, हालांकि यह सरासर लोकतंत्र के खिलाफ होगा।
इनसब के बीच ऐसे किस्से भी सुनने को मिलते हैं कि कोई नेता परिवारवाद के खिलाफ है तो उसका पालन भी करता है। किस्सा यूँ है कि एक बार कर्पूरी ठाकुर के कुछ सहयोगी नेताओं ने उनके पुत्र को चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव दिया तब कर्पूरी ठाकुर ने अपने सहयोगियों से कहा कि अगर उन्हें चुनाव लड़ाना है तो मुझे राजनीति से हट जाना चाहिए, क्योंकि मेरे रहते परिवार का कोई व्यक्ति राजनीति में आए यह ठीक नही, इससे परिवारवाद को बढ़ावा मिलेगा। ऐसे उदाहरण बिरले ही मिलते हैं।
आज परिवारवाद और वंशवाद पर ज्ञान बांटने वाले ये नहीं देख रहे कि उनकी पार्टियों में कितने नेता अपने पिता और भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में हैं और सत्ता की मलाई चाट रहे हैं।
हाल में ही प्रियंका गांधी के राजनीति में प्रवेश के बाद कई टिप्पणियां आयीं, विपक्षी नेताओं के बौखलाहट भरे बयान और व्यंग्यात्मक प्रहार सुनने को मिले। ऐसा लगा कि उनके आगमन से एक तूफान सा आ गया हो। विपक्षी नेताओं के अभद्र भाषायुक्त बयान से प्रतीत होता है कि जरूर प्रियंका गांधी के आने से सबको परेशानी है। जहां तक वंशवाद और परिवारवाद की बात की जाए तो यह सभी पार्टियों में है। अगर कोई इस पर टिप्पणी करता है तो यह जनता को सरासर गुमराह करने जैसा है।
भाजपा के राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह नोएडा से विधायक हैं, भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा के पुत्र जयंत सिन्हा मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं, वसुन्धरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह सांसद हैं तो उनकी बहन यशोधरा राजे शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा मुंडे मंत्री हैं, भाजपा के नवीन किशोर प्र० सिन्हा के पुत्र नितिन नवीन बांकीपुर के विधायक हैं, मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी सांसद हैं, अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में मंत्री रहे वेद प्रकाश गोयल के पुत्र पियूष गोयल वर्तमान में मोदी सरकार में मंत्री हैं, बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के नेता हैं,राज ठाकरे उनके चचेरे भाई भी राजनीति में हैं। चंद्रबाबू नायडू के पुत्र भी राजनीती में हैं! हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पीके धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर भाजपा सांसद हैं। कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह सांसद हैं तो पोते संदीप सिंह योगी सरकार में मंत्री हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह छत्तीसगढ़ के भाजपा सांसद हैं। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा पश्चिमी दिल्ली से भाजपा के सांसद हैं। दिवंगत भाजपा नेता प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन मुंबई नॉर्थ सेंट्रल से लोकसभा सांसद हैं! बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे कीर्ति आजाद भाजपा सांसद हैं। रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस एमएलए या एमएलसी न रहते हुए भी नीतीश सरकार में मंत्री बनाए गए। भाई रामचंद्र पासवान और बेटे चिराग पासवान भी सांसद हैं! दिग्गज भाजपा नेता ठाकुर प्रसाद के बेटे रविशंकर प्रसाद मोदी सरकार में मंत्री हैं। लालजी टंडन के बेटे गोपालजी टंडन देवरिया से भाजपा विधायक हैं और योगी सरकार में मंत्री हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर सिंह बादल पंजाब के उप-मुख्यमंत्री रह चुके हैं! हरसिमरत कौर बादल सांसद हैं जो सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हैं। बहुत से नेताओं की कुंडली खंगाली जाय तो उनका तार परिवारवाद से अवश्य जुड़ा होगा। किसी भी पार्टी को परिवारवाद और वंशवाद पर बोलने से पहले अपने गिरेबान में अवश्य झांकना चाहिए।
-ज़फर अहमद, बिहार
(विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनके लेख छपते रहते हैं)