सवाल पूछो, कि पीएम मोदी, गृहमंत्री राजनाथ, सुरक्षा सलाहकार डाभोल और काश्मीर के राज्यपाल मलिक में से किसी ने सुरक्षा में चूक की जिम्मेदारी क्यों नहीं ली ?
सवाल पूछो, कि शहीद सैनिकों के सम्मान में राष्ट्रीय शोक क्या सिर्फ इसलिए नहीं रखा गया कि ऐसा करने पर पीएम मोदी और अन्य बीजेपी नेताओं की तयशुदा रैलियां रद्द करनी पड़तीं ?
सवाल पूछो, कि सर्वदलीय बैठक से नदारत रहकर पीएम मोदी चुनाव सभा क्यों करने गए ?
सवाल पूछो, कि अब तक आरडीएक्स लेकर काफिले तक आतंकी की पहुँच से जुडी जाँच पूरी क्यों नहीं हुई ? क्यों कोई अफसर नहीं नपा ?
सवाल पूछो, कि नरेंद्र मोदी ने राजनैतिक निर्णय लेने की बजाय कार्यवाही का निर्णय सेना पर क्यों टाला ?
सवाल पूछो, कि मोदी के कार्यकाल में सुरक्षाबलों के लोग ज्यादा क्यों शहीद हुए ? क्यों #नोटबन्दी का कोई असर आतंकवाद पर नहीं हुआ जिसका वायदा मोदी जी ने किया था ?
संयम रखो, युद्धोन्माद से बचो, साम्प्रदायिक सद्भाव बनाये रखकर देश की एकता का संदेश दो ।
आतंकवाद से निबटने के लिए सैन्य उपायों पर निर्भर होने, उनका दुरूपयोग करने और काश्मीर में नागरिक अधिकारों का हनन करके शासक और शासित के बीच अविश्वास को बढाने के तरीके पर सवाल कीजिये ।
शहीद हुए सैनिकों के परिजनों के आंसू पोंछने के लिए तन मन धन से तत्पर रहिये, उनके लिए हर संभव सहायता का विश्वास दीजिये । युद्ध युद्ध की रट लगाकर और ज्यादा शहादतों की पृष्ठभूमि तैयार न कीजिये । युद्ध बहुत बड़ा निर्णय है , उसपर सरकार को सोचने दीजिये कि देश की माली हालत क्या है और युद्ध कहाँ तक जा सकता है । याद रखिए मोदी सरकार रिजर्ब बैंक के सुरक्षित फण्ड से धन लेने के लिए उर्जित पटेल को हटाकर चुकी है ।
जागरूक नागरिक बनिए, उन्मादी भक्त नहीं । शहादत का चुनावी इस्तेमाल करने की हर कोशिश को धिक्कारिये, हतोत्साहित कीजिये और खुद की देशभक्ति को किसी के चुनावी फायदे के लिए प्रयोग न होने दीजिए । सरकार का मूल्यांकन उसके 5 साल से न होकर वर्तमान उन्माद से हो , ऐसा कौन चाहेगा, ये ध्यान रखिए!
–अनिल गोस्वामी