पहले 10 % सवर्ण आरक्षण दिया गया। जबकि इसकी कभी कोई मांग नहीं की गई। इसके लिए कभी कोई आंदोलन नहीं हुआ। किसी ने लड़ाई में अपनी जान नहीं गंवाई। इस तरह इतनी जल्दी, बिना बहस के संविधान संशोधन हो गया जबकि आरक्षण इतना सरल मामला नहीं है। इससे पहले गुर्जरों और जाटों ने आरक्षण के लिए अपनी जाने दी है। सरकार ने दबाव में आकर लागू भी किया तो कोर्ट ने खारिज कर दिया। आरक्षण की लड़ाई में उन सरकारी हत्याओं का कोई मूल्य नहीं। यहाँ संरचनागत शोषण व्यवस्था को पुख्ता किया गया है।
आरक्षण की मूल भावना के खिलाफ विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर नियुक्ति के लिए 200 पॉइंट रोस्टर हटाकर 13 पॉइंट रोस्टर यूजीसी द्वारा लागू किया गया। सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ दायर याचिका खारिज हो गई। 200 पाइंट रोस्टर को फिर से बहाल करने के लिए सबसे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के तदर्थं नियुक्त शिक्षकों ने सड़क पर आकर लड़ाई आरम्भ की। आक्रोश मार्च निकाला। उसके बाद देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के बहुजन शिक्षक और छात्र भी इसमें शामिल हो गए। आंदोलन चल रहा है।
राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय 13P रोस्टर व्यवस्था का पहला शिकार है। पहले से निकाली गई 33 प्रोफेसर की भर्ती रोस्टर वाला मामला कोर्ट में होने के कारण रुकी हुई थी। कोर्ट का फैसला आते ही पुनः विज्ञप्ति जारी कर दी। मजेदार बात यह है कि पूरे 33 पद जनरल के हैं। पर यहाँ के शिक्षक, छात्र और शोधार्थी किसी की हिम्मत नहीं कि इस व्यवस्था के खिलाफ एक प्रतिरोध मार्च भी निकाल दें? जबकि इसी को लेकर देश भर के लोग सड़कों पर है। आज दिल्ली में प्रतिरोध मार्च निकाला जा रहा है।क्या यहाँ बहुजन शिक्षक नहीं? क्या यहाँ बहुजन छात्र नहीं? क्या यहाँ बहुजन शोधार्थी नहीं? बहुत दुःखद है ये। अपने अधिकारों के प्रति इतना अनभिज्ञ होना।
बहुजन समाज के लोग अभी अभी उच्च शिक्षा में आने लगे हैं। इससे पहले कोई कॉलेज से आगे नहीं बढ़ पाता था। उनके लिए सरकारी नौकरियाँ पुलिस और फौज तक सीमित थी। और जो आगे आ जाता था वो खुद ब्राह्मणवादी व्यवस्था का शिकार जो उसी का हिस्सा बन जाता है। आज जब बहुजन समाज के लोग शोषण व्यवस्था को समझकर उसके खिलाफ आवाज बुलंद करने की कोशिशों में है तो सरकार ने नई लड़ाई दे दी जनता को। उच्च जातिओं को लगता है कि ये लोग हमारे खिलाफ लड़ थे हैं जबकि लड़ाई मानसिकता से है। फ़्यूडल माइंड के खिलाफ इस संघर्ष में राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के शिक्षित बहुजनों की ये चुप्पी बहुत खतरनाक साबित हो सकती है।
-ओमप्रकाश सुंडा
(लेखक राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में शोधार्थी हैं, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनके लेख छपते रहते हैं)
बहुत ही सटीक लिखा है ओमप्रकाश सुण्डा जी ने।
एक संतोष है, पैरो बल न सही कलम के बल ही सही कोई तो खड़ा है। सुंडा जी आपका लेख पढ़ कर अच्छा लगा। जिस curaj को बाहर क्रांतिकारी विश्वविद्यालय माना जाता है उसका यूँ ही मुर्दा हो जाना, इसके सतत विकास की कहानी बयां करती है। गुड़ लक सुंडा जी।
Bahut acha lekh likha h sunda ji ne. ???
Raheem ji apka b bht acha sehyog rha h .. ummid krta hu aage b aap iss ladai m sath Ee maur isse related news ka updates dete rhe .. thank you ?