प्रियंका गांधी को राजनीति में उतारने का उद्देश्य सिर्फ़ लोकसभा चुनाव नहीं हैं

अब क्यों उतरी हैं प्रियंका गांधी राजनीति में:

कोई दस साल से कांग्रेस के कार्यकर्ता और कई नेता लगातार ये मांग कर रहे थे कि सोनिया गांधी प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतारें. इस तरह की मांग करने वाले पार्टी के कुछ बड़े नेता भी थे.

फिर क्यों इस फैसले में इतनी देरी हुई और अब क्यों लिया गया प्रियंका को राजनीति में उतारने का फैसला. कारण कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं की मांग के पीछे ही छुपा है.

इस फैसले की टाइमिंग की वजह मोदी या गठबंधन की राजनीति कम और कांग्रेस के अंदर की दक्षिणपंथी कोटरी और अंदरूनी खेमेबाजी ज्यादा है. कॉर्पोरेट की हिमायती एक ताकतवर कोटरी राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौपने के खिलाफ रही है. इस कोटरी का मानना रहा है कि राहुल गांधी पार्टी को उस रास्ते से हटा देंगे जिस रास्ते पर नरसिम्हा राव और उनके बाद मनमोहन सिंह ने चलाया. कोटरी का ये डर गलत भी नहीं है. राहुल गांधी कांग्रेस को वापस लेफ्ट टू सेंटर की तरफ ले जा रहे हैं जहां पार्टी इंदिरा गांधी के समय पर थी.

राजीव गांधी के समय से कांग्रेस आर्थिक और राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में दक्षिण की तरफ मुड़ी जिस वजह से पार्टी का आधार खिसकता चला गया. सोनिया गांधी भी चाहते हुये भी इस कोटरी से नहीं लड़ पायीं और उन्हे मनरेगा, आरटीआई, शिक्षा और भोजन के अधिकार जैसे कानून पास करने के लिए NAC का गठन करना पड़ा.

इसी कोटरी की वजह से राहुल गांधी के अध्यक्ष पद का कार्यभार दिये जाने की तारीख आगे खिसकती रही. जब भी राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने संभावना होती इस कोटरी के नेता प्रियंका गांधी का नाम मीडिया में उछाल देते थे. ऐसा कोई आधा दर्जन बार हुआ. ऐसा लगता है कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस का इतिहास ठीक से पढ़ा है और इंदिरा गांधी के खिलाफ काम करने वाले कॉर्पोरेट समर्थित सिंडीकेट के नए अवतार तो वो पहचाने में कोई गलती नहीं कर रहीं थी.

प्रियंका गांधी को राजनीति में उतारने का फैसला तब ही हुआ जब राहुल गांधी अध्यक्ष बन गये, कांग्रेस के भीतर की कॉर्पोरेट लॉबी और बीजेपी की गढ़ी गई पप्पू की इमेज से वो बाहर आ गाये और उत्तर भारत की तीन बड़े राज्य बीजेपी से छीन कर पूरी तरह से स्थापित चुके हैं.

प्रशांत टंडन

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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