।अशफाक कायमखानी।
राजस्थान मे तकरीबन 18-प्रतिशत जाट, 7-प्रतिशत गूर्जर व करीब बीस प्रतिशत दलित समुदाय ने बहुतायत मे कांग्रेस के पक्ष मे मतदान करके भाजपा की चुले हिलाने व कांग्रेस को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने मे अहम किरदार अदा किया है। उक्त बिरादरियों के अलावा कांग्रेस के परम्परागत मुस्लिम मतदाताओं ने भी भाजपा के खिलाफ अलग अलग जगह अलग अलग दलो के पक्ष मे मतदान करके अपना रुख जरा धुंधला सा दिखाया है।
हालांकि गूर्जर भाजपा का परम्परागत मतदाता होने के बावजूद उन्होंने इतिहास मे पहली दफा अपने भाजपा के सभी गूर्जर उम्मीदवारों को हराकर केवल कांग्रेस के पक्ष मे मतदान करने एक तरह से नया इतिहास रचने के साथ यह पहली विधानसभा होगी जिसमे भाजपा की तरफ से एक भी गूर्जर विधायक नही होगा।
एससी एसटी कानून मे संसोधन व छेड़छाड़ को लेकर 2- अप्रैल 2018 को दलितों की तरफ से भारत बंद के बाद से दलित बिरादरी भाजपा के खिलाफ पूरी तरह लामबंद होती नजर आने लगी थी। जिसका असर 7-दिसंबर को मतदान के दिन साफ दिखाई दिया।
उपरोक्त बिरादरियों के अलावा अन्य बिरादरियों ने भी भाजपा को सत्ता से दूर रखने की कोशिश मे कम ज्यादा अपना रोल चुपचाप अदा किया। लेकिन उनकी आवाज मे वो कड़क नजर नही आई जो उक्त बिरादरियों की गुंजायमान आवाज मे नजर आ रही थी।
राजस्थान मे जाट व ब्राह्मण विधायकों की तादात मे भारी इजाफा हुआ तो 2008 के मुकाबले मुस्लिम विधायक चार कम यानि सात कांग्रेस व एक बसपा से विधायक बनने मे कामयाब रहे है। जिनमे कांमा से कांग्रेस की जाहिदा खान व नगर से बसपा के विधायक वाजिब अली खासे तालीम याफ्ता विधायक माने जा रहे है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान मे 99- सीट जीतने वाली कांग्रेस पार्टी के अनुभवी नेता अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी को सम्भाल लिया है। उनके सामने अनेक चुनोतियो के अलावा पांच माह बाद होने वाले आम लोकसभा चुनावो मे प्रदेश की 25-मे से अधिकतम सीटे जीतना खास चुनौती मानी जा रही है। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय अफराजुल , रकबर व पहलू खा सहित अन्य मामलों मे इंसाफ मिलने की उम्मीद भी मुख्यमंत्री से जता रहा है।