कांवड़ का नाम सुनते ही मन में एक तपस्वी की छवि उभरती थी, अब विपरीत प्रतिकृतियां उभर रही हैं

बचपन में सुनते थे कांवड़ यात्रा एक प्रकार की तपस्या होती है. कांवड़ यात्रा करने वाले लोग कंधे पर सजाए हुए बांस के डंडे के दोनों तरफ बर्तन में गंगाजल लेकर आते हैं और फिर अपनी मान्यतानुसार किसी शिव मंदिर में जलाभिषेक करते हैं। कांवड़ का नाम सुनते ही मन में एक तपस्वी की छवि उभर जाती थी. लेकिन अब 2018 आते-आते मन में तपस्वी की छवि के विपरीत प्रतिकृतियां उभर रही हैं।
सैंकड़ों किलोमीटर यात्रा पैदल और नंगे पांव की जाती थी. कुछ लोग अकेले यत्रा करते और कुछ टोलियां बना कर करते. यात्रा के दौरान अपना भोजन स्वयं पकाते और पूरी की पूरी यात्रा मुख़्तलिफ़ कष्ट सहन करते हुए बहुत ही शांतिपूर्ण तरीके से मुकम्मल करते. यह तीर्थ यात्रा का ही एक विविध व अनूठा स्वरूप था। समय बदला और समय के साथ-साथ यात्रा के रंग-ढंग में भी तबदीली आई। यात्रा की शुरुआत नंगे पांव हुई और साईकिल, मोटरसाईकिल से होते हुए ट्रक-ट्रैकटर भी कांवड़ियों के काफिले में शामिल हो गए. धीरे-धीरे ट्रकों में बेसबॉल, हॉकी व त्रिशूल शामिल हुए और अब इस फेहरिस्त में विशालकाय डीजे व चमचमाती डिस्को लाइट्स भी शामिल हो गई हैं।
अब इस यात्रा का स्वरूप पूर्णतया बदल चुका है. असामाजिक तत्व प्रत्येक वर्ष इस यात्रा में हुड़दंग मचाते हैं और पिछले कुछ वर्षों से ऐसी खबरें ज़्यादा तादाद में आ रही हैं। पिछले वर्ष इलाहाबाद-वाराणसी राजमार्ग कई घंटे जाम किया गया और गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई, पुलिस चौकी में घुस कर दस्तावेज़ फाड़े गए. इस वर्ष भी अनेक प्रकार के वीडियो सामने आए जिसमें सबसे प्रसिद्ध थे- दिल्ली में एक महिला की गाड़ी पर कांवड़ियों का हमला जिसमें कार बहुत बुरी तरह से क्षतिग्रस्त की गई, शराब पीते कांवड़ियों का वीडियो और बुलंदशहर में पुलिस की जीप पर कांवड़ियों का हमला। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में ज़िला बरेली के एक गांव से लोग कांवड़ यात्रा होने तक अपने घर छोड़कर चले गए क्योंकि बीते साल वहां पर यात्रा के दौरान कई हिंसक घटनाएं हुई। ये सब खबरें तो मीडिया ने रिपोर्ट की और संभवतः इनके अलावा और घटनाएं भी घटित हुई हो जो रिपोर्ट न हो सकी।
पिछले वर्ष के आंकड़ों के अनुसार लगभग तीन करोड़ लोगों के द्वारा कांवड़ यात्रा की गई. आजकल कांवड़ मेले भी बहुत प्रसिद्ध हो गए हैं. लगभग तीन दशक पहले तक कांवड़ मेलों का कहीं कोई ज़िक्र नहीं मिलता. एक आंकड़े के मुताबिक इन मेलों में हज़ार करोड़ से ज़्यादा का कारोबार हो रहा है. ज़ाहिर सी बात है अगर कारोबार इतने बड़े स्तर पर हो रहा है तो बहुत से लोगों की आजीविका भी इस पर निर्भर करती होगी और दूसरी तरफ प्रशासन भी राजस्व इकट्ठा करता है।
इन सभी धार्मिक और आर्थिक बातों को ध्यान में रखते हुए अब समय आ गया है कि कांवड़ यात्रा को प्रशासन विनियमित करे. यात्रा के दौरान हुड़दंग मचने-मचाने वाली खबरें हर वर्ष सामने आ रही हैं और इस वर्ष तो सर्वोच्च न्यायालय को कहना पड़ा की पुलिस कार्रवाई करे। मतलब साफ है कि भक्ति का चोला ओढ़े इन असामाजिक तत्वों पर पुलिस भी कार्रवाई करने से बचती है। इससे पहले कोई और घटना घटे प्रशासन को कदम उठाना चाहिए. सभी यात्रियों का पंजिकरण हो या फिर औपचारिक तरीके से दस्तावेज़ बनाए जाएं और यात्रियों की पहचान सुनिश्चित की जाए. आपराधिक रिकॉर्ड वालों को चिन्हित किया जाए. इससे प्रशासन को काफी हद तक प्रबंधन में मदद मिलेगी और कानून-व्यवस्था भी सही तरीके से बनी रहेगी. भीड़तंत्र पर भी नकेल कसने में मदद मिलेगी। एक अच्छी नीति प्रभावी तरीके से लागू होनी चाहिए. भक्ति के नाम पर समाज विरोधी गतिविधियों को मान्यता बिल्कुल नहीं दी जा सकती।
आगम
(लेेेखक हिमाचल प्रदेश में विधिवक्ता और लिंबिक मूवमेंट के सदस्य है)

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