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कोटा। कहते हैं कि सच्ची मेहनत और मजबूत इरादे किसी भी मुश्किल हालात में इंसान को आगे बढ़ने की ताकत देते हैं। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है राजस्थान के कोटा निवासी आयशा ने। अपने पिता के इंतकाल के कुछ दिन बाद ही आयशा ने उड़ीसा (भुवनेश्वर) में आयोजित 39वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप – 2024 के 200 मीटर रेस में सिल्वर मेडल जीतकर न केवल कोटा बल्कि पूरे राजस्थान को गौरवान्वित किया है।
आयशा के पिता, मरहूम अब्दुल रहीम का निधन 27 नवम्बर को टायर फटने से हुए हादसे में हो गया था। अचानक पिता के चले जाने का गम सीने में दबाए, आयशा ने अपनी भावनाओं को अपनी दौड़ की ताकत में बदल दिया। अपनी लगन और समर्पण के जरिए, उन्होंने अपने पिता को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की। मां ने बेटी को उसका जुनून याद दिलाया और बेटी अपने पिता को श्रद्धांजलि देने में जुट गई।
आयशा ने इस जीत से साबित कर दिया कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर हौसला बुलंद हो तो कोई भी मंजिल पाई जा सकती है। सिल्वर मेडल जीतने के बाद आयशा ने कहा, “यह मेडल मेरे पिता के नाम है। उन्होंने हमेशा मुझे अपने सपनों का पीछा करने और कभी हार न मानने की सीख दी।”
परिवार के लोगों ने कहा कि आयशा की यह उपलब्धि उन सभी लड़कियों और युवाओं के लिए प्रेरणा है जो कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी कहानी न केवल मेहनत का महत्व बताती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ा जा सकता है। परिवार ने कहा कि सिर्फ कोटा ही नहीं पूरे राजस्थान को आयशा की सफलता पर गर्व जताया है। हर कोई उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना कर रहा है। उनके पिता की याद और उनकी मेहनत ने उन्हें हर कदम पर मजबूती दी।आयशा ने ओडिशा में आयोजित हुई 39 वीं राष्ट्रीय जूनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में 200 मीटर रेस के फाइनल में जगह बनाते हुए सिल्वर मेडल हासिल किया है। आयशा के पिता पंचर की दुकान लगाते थे। 27 नवंबर को दुकान पर ट्रक का टायर फटने से उनकी मौत हो गई थी। उसके बाद भी पिता अब्दुल रहीम के सपने को पूरा करने के लिए उनकी बेटी नेशनल एथेलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए ओडिशा गई थी।
पहल फाउंडेशन के राष्ट्रीय सचिव फारुख राणा ने बताया कि पिता के सपनों को साकार करने के लिए बेटी आयशा ने पिता की मौत के गम के बावजूद सफलता हासिल की। समाज के लोग आगे आए और परिवार की आर्थिक मदद के साथ ही उनके साथ खडे रहे। जिस कारण बच्चों का हौंसला बढा और वह एक बार फिर पिता के सपने को पूरा करने के लिए निकल पडे। पिता ने बच्चों को पंचर की दुकान लगाकर बडा खिलाड़ी बनाने का सपना लिया था। अब्दुल रहीम ने दिन रात एक कर सपना तो पूरा कर गए लेकिन उस सपने की जीत का उत्साह नहीं देख सके। आयशा की छोटी बहन शाजिया और भाई जूनेद अली भी जिला स्तरीय व राज्य स्तरीय प्रतियोगिता खेल चुके है। बेटा तीन बार से जिला चैंपियन है।
नेशनल हाईवे 27 के नजदीक टायर रिपेयर की शॉप लगाने वाले शहर के छावनी इलाके के रहने वाले अब्दुल रहीम की मौत दो सप्ताह पहले ट्रक का टायर फटने के चलते हुई थी. उसके कुछ दिन बाद ही उसकी बेटी आयशा खानम को नेशनल एथलेटिक्स में खेलने के लिए जाना था, लेकिन परिवार में गमगीन माहौल था. ऐसे में आयशा को परिवार के अन्य जनों और कोच ने हिम्मत दी. जिसके बाद वह उड़ीसा के भुवनेश्वर में आयोजित 39वीं जूनियर नेशनल एथलेटिक्स अंडर 20 में 200 मीटर दौड़ में रजत पदक जीत पाई है. उसने 24.73 सेकंड में यह दौड़ पूरी की है. आयशा ने अपनी यह जीत पिता को समर्पित की है.आयशा का कहना है कि एक बार जब वह दौड़ रही थी, तब स्कूल के टीचर ने उसके पिता से कहा कि यह एथलेटिक्स की अच्छी खिलाड़ी हो सकती है. जिसके बाद उसकी प्रैक्टिस अब्दुल रहीम ने शुरू करवा दी. आयशा के साथ-साथ उसकी बहन शाजिया और भाई जुनैद भी इसमें जुट गया था. तीनों ही एथलेटिक्स के अच्छे खिलाड़ी बन गए. आयशा को कोच विशाल ने ही उसे हिम्मत दी और पिता की मौत के बाद गमगीन माहौल होने पर भी वह 5 दिसंबर को नेशनल टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए उड़ीसा रवाना हो गई, जहां पर उसके हाथ रजत पदक लगा है. उसकी भाई बहन शाजिया और भाई जुनैद के पास भी कई पदक हैं.
हादसे में पिता की हुई थी मौत : यह हादसा 27 नवंबर को कैथून थाना इलाके में झालीपुरा के नजदीक हुआ. जिसमें अब्दुल रहीम अपनी दुकान पर थे, तभी एक ट्रक आया जिसके चालक ने खुद ही टायर में काफी ज्यादा हवा भर ली. चेक करने के लिए अब्दुल रहमान जैसे ही नजदीक पहुंचा वह ब्लास्ट हो गया. जिसके चलते अब्दुल रहीम गंभीर रूप से घायल हो गए, जिसे कोटा के एमबीएस अस्पताल लाया गया, लेकिन तब तक उसने दम तोड़ दिया.