उदयपुर फिल्म फेस्टिवल में विवाद, हिंदूवादी संगठनों ने फिलीस्तीन में मारे गए बच्चों को श्रद्धांजलि देने का किया विरोध, पीयूसीएल ने की निंदा

जयपुर। उदयपुर में आयोजित नौवें उदयपुर फिल्म फेस्टिवल को  हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं के विरोध तथा दबाव के कारण  प्रशासन द्वारा आयोजकों को आयोजन स्थल बदलने के लिए विवश करने तथा चलते कार्यक्रम में कबीर भजन को रुकवाने की पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने निंदा की है तथा इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर आक्रमण बतलाया है । पी यू सी एल ने इस बात पर खेद व्यक्त किया है कि प्रशासनिक रूप से स्वीकृत कार्यक्रम को  बिना किसी बाधा के संपन्न करवाने की जिम्मेदारी को पूरा करने की बजाय प्रशासन ने उपद्रवियों का साथ दिया।

पीयूसीएल का आरोप है कि उदयपुर में 15 से 17  नवंबर  तक  आर एन टी मेडिकल कॉलेज के सभागार में आयोजित इस फेस्टिवल के दूसरे दिन हिंदूवादी संगठनों और आर एस एस के कार्यकर्ता वहां पहुंच गए और फिल्म प्रदर्शन रुकवाने की मांग करने लगे। उस समय सुप्रसिद्ध कबीर गायिका शबनम विरमानी की भजनों पर आधारित फिल्म हद अनहद का प्रदर्शन चल रहा था। उनके हंगामे को देखकर प्रशासन ने फिल्म का प्रदर्शन रुकवा दिया। इस समय सभागार में कई महत्त्वपूर्ण निदेशक, तकनीशियन और अभिनेता मौजूद थे और बड़ी संख्या में स्थानीय दर्शक भी फ़िल्में देखने के मौजूद थे। 

पीयूसीएल ने आरोप लगाया कि यह आश्चर्यजनक है कि आर एस एस के कायकर्ताओं की मुख्य आपत्ति फिल्मोत्सव का समर्पण डॉ जी एन साईबाबा और फिलिस्तीन के जनसंहार में मारे गए मासूम बच्चों के नाम किये जाने से थी । और यहां तक की वे फिलीस्तीन के युद्ध में  मारे गए  मासूम बच्चों को दी गयी श्रद्धांजलि को भी वापिस लेने की मांग करने लगे। आर एस एस कार्यकर्ताओं ने प्रोफ़ेसर जी एन साईबाबा के लिए भी अपमानजनक भाषा का उपयोग करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देने का भी विरोध कर रहे थे। पी यू  सी एल  को खेद और आश्चर्य है कि भारतीय संस्कृति में  परम विरोधियों तथा शत्रुओं  की मृत्यु होने पर संवेदना व्यक्त  करने की परंपरा होने के बावजूद आर एस एस कार्यकर्ता मृतकों के  लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल  करते रहे। 

पी यू सी एल का कहना है कि भारत की आधिकारिक  विदेश नीति  सदैव फिलिस्तीन  के समर्थन की रही है किंतु स्वयं को राष्ट्रवादी कहने वाले देश की नीति का विरोध कर रहे थे। विडंबना की बात है कि कॉलेज प्रशासन ने  पूरा शुल्क जमा होने के  बाद भी आयोजन को बीच में बंद करवा दिया और कलेक्टर की स्वीकृति मांगने लगा तो वहीं कलेक्टर ने  इसे कॉलेज  और फिल्म सोसाइटी का अंदरूनी मामला बताकर हाथ झटकने की कोशिश की। 

जिला  प्रशासन तथा पुलिस का दायित्व था कि वे  अभिव्यक्ति  की आजादी की रक्षा करने का अपना दायित्व निभाते  और  व्यवधान उत्पन्न करने वाले के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करते । जिला कलेक्टर की टालमटोल और पुलिस की निष्क्रियता की पी यू सी एल निंदा करता है।  यह वही उदयपुर का पुलिस और प्रशासन है जिसने  एक कथित  अभियुक्त के घर पर बुलडोजर चलाकर अपने आपको अत्यंत सक्षम और सक्रिय बताया था। हंगामा  करने वाले के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करना,प्रशासन और पुलिस की आर एस एस के लोगों के आगे  लाचारी को प्रकट करती है।

पी यू सी एल के भंवर मेघवंशी (राज्य अध्यक्ष), अनंत भटनागर (राज्य महासचिव), अरुण व्यास (उदयपुर जिला अध्यक्ष), मो याकूब (उदयपुर जिला महासचिव) ने बताया कि कला,साहित्य और फिल्म अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है। कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी रोक कर भय का वातावरण खड़ा करना चाहते हैं तथा सद्भावना और एकता को नष्ट करना चाहते हैं। प्रशासन द्वारा ऐसे तत्वों को प्रश्रय देना चिंताजनक है। 

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