होली पर आज भी निकलती है यंहा बादशाह की सवारी

राजस्थान में अजमेर जिले के ब्यावर शहर में बादशाह टोड़रमल ने लुटाया खुशियों का खजाना और शान से निकली ब्यावर में बादशाह की सवारी।

ब्यावर में वर्षाे से चली आ रही धुलण्डी के दूसरे दिन आयोजित होने वाले बादशाह मेले की परंपरा शनिवार को धूमधाम के साथ पूरी की गई। विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बादशाह मेले की सवारी धूमधाम के निकाली गई।
अग्रवाल समाज की ओर से अकबर बादशाह द्वारा टोरडमल अग्रवाल को एक दिन का बादशाह बनाने की खुशी में हर वर्ष की भांति निकाली जाने वाली यह सवारी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच शनिवार को पारंपरिक रिति-रिवाज एवं हर्षोल्लास के साथ निकाली गई। शनिवार की शाम बादशाह की सवारी एकता सर्किल से महादेव की छत्री, अजमेरी गेट, सुभाष चौक होते हुए उपखंड अधिकारी कार्यालय पहुंची। जहां पर बादशाह ने एसडीएम पीयुष समारिया (उपखंड प्रशासन) के साथ जमकर गुलाल खेली। इसके बाद प्रशासन की ओर से बादशाह की सवारी का स्वागत किया। बादशाह ने एसडीएम समारिया को शहर के समुचित विकास सहित सुशासन का फरमान दिया। बादशाह मेले के दौरान भैरु खजेड़े से अजमेरी गेट तक का पूरा रास्ता गुलाल के लाल रंग से सरोबार हो गया। मेले के दौरान अपार जन सैलाब, आओ बादशाह-आओ बादशाह के गूंजते स्वर, भीड के बीच ढोल व चंग की थाप पर थिरकते बीरबल के कदम और उनके पीछे बादशाह टोडरमल की सवारी, दोनो हाथो से गुलाल उड़ाते बादशाह और गुलाल (धन) को लूटने के लिए इमारतो एवं झरोखो पर खड़े लोग अपने आप में अनूठा आभास करा रही थी।


यह है परम्परा..
पौराणिक कथानुसार एक कहानी प्रचलित है। कहानी के अनुसार एक बार बादशाह अकबर शिकार के लिए जंगल में गया तो उसका सामना खूंखार डाकुओं से हो गया। डाकू अकबर पर भारी पड़े और अकबर संकट में फंस गया। लेकिन तभी अकबर के साथ चल रहे सेठ टोडरमल अग्रवाल ने अपनी समझदारी से अकबर को डाकुओं से बचा लिया। टोडरमल ने न केवल अकबर की जान बचाई बल्कि माल भी लुटने नहीं दिया। टोडरमल के इस काम से खुश होकर अकबर ने ढाई दिन के लिए सेठ टोडरमल अग्रवाल को मुगल सल्तनत का बादशाह बना दिया। टोडरमल को ढाई दिन के लिए बादशाह बनाने की खबर जब बीरबल को मिली तो वह खुशी से झूम उठे। इसलिए बादशाह की सवारी के आगे बीरबल के प्रतीक के तौर पर ब्राह्मण समुदाय के व्यक्ति को रखा जाता है। सवारी शुरू होने से पहले बीरबल बादशाह को सलाम करता है और उनकी सवारी के आगे नृत्य करता है। इस कहानी के अनुरूप पहली बार 1851 में ब्यावर में बादशाह की सवारी को निकाली गई। तभी से यह परम्परा चली आ रही है।

इस दिन ब्यावर विशेष होली खेली जाती है जिसमें रंग लगाने पर देवर को भाभी की मार पड़ती है, इसे ब्यावर की प्रसिद्ध देवर भाभी की कोड़ा मार होली भी कहा जाता है।

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