राजनीतिक दबाव व माता-पुत्री की ठण्डी निगाहों के कारण राजस्थान विधानसभा चुनाव परिणाम में सौ से एक कम सीट जीतने के बाद रस्साकशी में आखिरकार अशोक गहलोत ने प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को मात देकर स्वयं मुख्यमंत्री पद पाने में कामयाब रहे !
लेकिन गहलोत के लाख जतन करने के बावजूद ना सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष पद से अभी तक हटा पाये है और ना ही कैबिनेट में पायलट समर्थक मंत्रियों की परवान चढती वाणी विरोध को ही रोक पाये हैं।
ऊपरी तौर पर राजस्थान की कांग्रेस सरकार व पार्टी संगठन में सबकुछ ठीक ठाक नज़र आ रहा है लेकिन अंदर ही अंदर पानी उबाल खा रहा है।
असंतुष्ट खेमा अपनी रणनीति के तहत काम कर रहा है। कोराना काल व लाॅक डाउन अशोक गहलोत के लिये राहत लेकर आया है वरना आपसी टनटनाहट की खनक राजनीति के गलियारों से बाहर भी सुनाई देने लग जाती।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस छोड़ भाजपा में गये ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिलने वाले सम्मान व उनके साथ भाजपा में गये विधायकों को उपचुनाव में भाजपा से टिकट मिलने या नहीं मिलने के बाद होने वाले आंकलन का राजस्थान की सरकार के भविष्य पर प्रभाव पड़ता साफ नज़र आयेगा।
असंतुष्ट खेमे को मंत्री भंवरलाल मेघवाल की बीमारी से धक्का लगा है लेकिन दूसरे मंत्री द्वारा भाजपा सरकार के केन्द्रीय मंत्री द्वारा मिर्ची बड़ा सियासत करने की मंशा जाहिर करने के अलावा राजगढ़ थानेदार आत्महत्या मामले की सरकार की नीति के विपरीत सीबीआई से जांच करवाने की मांग करने को अलग रुप में देखा जा रहा है!
मंत्री रमेश मीणा द्वारा उपभोक्ता न्यायालय सदस्यों की मुख्यमंत्री की बिना औपचारिक स्वीकृति के अपने स्तर पर मनोनयन करने को हल्के में नहीं लिया जा सकता!
ad
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्यशैली से अनेक असंतुष्ट नेताओं द्वारा बार बार किसी ना किसी रुप में दिल्ली हाईकमान को बताने का सिलसिला आज भी जारी है !
लेकिन माँ-पुत्री के आशीर्वाद के कारण अंसतुष्ट ख़ेमे को ताकत नहीं मिल पाई।
वहीं कोराना वायरस काल में अंसतुष्ट ख़ेमे को एक दफा शांत रहने को मजबूर जरुर होना पड़ा जिससे वो कुछ उदासीन जरुर हुआ है लेकिन अभी वो जीवित हालत में मौजूद है।
राजनीतिक हलकों में कभी कभार कयास लगाये जाते रहे हैं कि सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ पाला बदल सकते है लेकिन शायद ऐसा नहीं होगा।
पायलट स्वयं राजनीतिक गणित को बहुत बारीकी से समझते हैं एवं मध्यप्रदेश में सिंधीया के पाला बदलने के बाद उनके साथ हो रहे बर्ताव को नज़दीकी से देख भी रहे होंगे!
पायलट दवाब की राजनीति का खेल ज़रुर खेल सकते हैं क्योंकि उनके पास 38-40 विधायकों का समर्थन बताते हैं जो सभी विधायक राजस्थान स्तर पर पायलट को नेता मानते हैं!
कुल मिलाकर यह है कि लाॅक डाउन-5 में आवागमन की काफी छूट मिलने के बाद से लगता है कि नेताओं की आपसी टकराव की टनटनाहट के चलते अंसतुष्ट गतिविधियों को गति मिलने की सम्भावना प्रबल होती जा रही है।
इसमें एक खेमा प्रदेश अध्यक्ष को बदलने व दूसरा खेमा मुख्यमंत्री के कार्यशक्ति को सीमित करने की कोशिश में लगा है!
-अश्फ़ाक क़ायमख़ानी
(विचार लेखक के स्वयं के है ! इससे संस्था का सहमत होना ज़रूरी नहीं है)