तीन घंटे से लगातार कजोड़ी चल रही है। हर बढ़ते कदम के साथ वह एक छड़ी के सहारे झुकते हुए सैकड़ों किलोमीटर लंबे सफर में खुद को धकेलती जा रही है। लेकिन उसे चलते रहना है। किसी को कजोड़ी की उम्र का अंदाजा नहीं है, कोई कहता है वह 90 बरस से ऊपर है तो किसी ने दावा किया कि वह 100 पार है। इसके साथ चले परिवार के लोग इससे आगे चल रहे हैं। ये सब नोएडा के सेक्टर 15 में रहते थे जिनमें अधिकांश दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफिक लाइट पर खिलौने बेचने वाले हैं और अब लगभग 400 किमी दूर राजस्थान के सवाई माधोपुर में अपने गांव वापस लौट रहे हैं।
नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे इस एतिहासिक त्रासदी की किताब के एक पन्ने की तरह लगता है, जिनमें उन लोगों की कहानी है जो अपने घरों की ओर वापस जा रहे हैं, जिनमें से किसी के कंधे पर भारी भरकम थैले तो किसी की गोद में दुधमुंहे बच्चे हैं। ना भूख का कोई ठिकाना है, ना किसी को प्यास का पता है…बस एक बात दिमाग में है कि किसी भी तरह घर जाना है।
केंद्र सरकार ने कोरोनावायरस के फैलाव को रोकने के लिए 25 मार्च से तीन हफ्ते के राष्ट्रव्यापी बंद (लॉकडाउन) की घोषणा के बाद हजारों प्रवासी श्रमिक और दिहाड़ी मजदूर अपनी आमदनी वाले शहरों को छोड़ गावों की ओर लौट रहे हैं। किसी भी तरह की बस या ट्रेन का साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण वे पैदल ही निकल पड़े हैं।
छड़ी के सहारे हाइवे के किनारे चलती कजोड़ी कुछ पूछने के लिए अपना सिर उठाती है, “परी चौक कितनी दूर है?”। घर पहुंचने की आस लगाए इन लोगों की आंखों में परी चौक किसी मंजिल से कम नहीं दिखाई देता है। अचानक किसी ने बोला “वो तो अभी भी 20 किमी दूर है”।
कजोड़ी अपने टखनों के चारों ओर लोहे की चूडि़यों के साथ एक भूरे स्वेटर से शरीर को ढ़के हैं, लटके सिर के साथ अपनी आँखों से पैरों को ताकते हुए चलती जा रही है, क्योंकि उनका मानना है कि उन्हें परी चौक से आगरा तक एक वाहन मिलेगा जिसकी मदद से वो मथुरा और फिर सवाई माधोपुर जाएंगे। लेकिन सब कुछ बंद है।
कुछ दूर और चलने के बाद सांस लेने के लिए ये समूह सड़क किनारे बैठ जाता है, कजोड़ी भी सड़क के किनारे पर बैठ जाती है और प्लास्टिक की छोटी बोतल से पानी निकाल पीने लगती है।
थोड़ी ही देर हुई बैठे कि एक ट्रैफिक कांस्टेबल आता है और उन्हें एक दूसरे से अलग बैठने के लिए कहता है। उनसे थोड़ी दूरी पर बैठे दो 18 साल के बच्चे हैं – विकास और आकाश – जो पिछले चार दिनों से घूम रहे हैं। वे लुधियाना से आ रहे हैं और यूपी के फर्रुखाबाद में अपने गाँव में रहते हैं। उन्होंने कुछ 250 किमी को कवर किया है और जाने के लिए अभी 400 किमी की दूरी तय करनी है।
एक 45 साल के सब्जी बेचने वाले, मोहम्मद शफ़ीक भी चल रहे हैं। उसके साथ प्रदीप और अशोक नामक दो युवा लड़के थे, जिनसे वह रास्ते में मिले। शाम होने को है, ढलते दिन के साथ हाइवे और स्ट्रीट लाइट चमक बिखरती है, और ये काफिला चलता जा रहा है।
(स्टोरी मूलत: आउटलुक मैग्जीन के वेब पोर्टल पर अंग्रेजी में छपी है हमने उसका अनुवाद किया है।)