–अवधेश पारीक
पिछले कुछ समय से किसी को याद करने, उनके बारे में बात करने के लिए कैलेंडर में कुछ दिन फिक्स कर दिए गए हैं, अब जैसे आज इंजीनियर डे है तो हम इंजीनियर-इंजीनियर कर रहे हैं लेकिन इंजीनियरिंग या इंजीनियर पर बात करने के लिए कोई एक दिन विरोधाभासी सा लगता है, क्योंकि आज चाहें हम कैसे भी बात करें पर साल के हर दिन इंजीनियरों पर कुछ ना कुछ करते ही रहते हैं।
इंजीनियरिंग की सबसे बड़ी खास बात यही है कि जो इसे नहीं कर रहा वो भी इसमें दिलचस्पी लेता है। आज कागजों में भले ही इंजीनियरिंग की दुर्दशा दिखाई पड़ती है, हर इंजीनियरिंग किया हुआ लौंडा समाज में जॉब को लेकर हज़ार बातें सुनता है लेकिन 4 साल गुजारने वाले उस नौसिखिए से कभी पूछना कि वो क्या-क्या करने के सपने देख लेता है।
इंजीनियरिंग करने के बाद आप कुछ भी करने का साहस कर सकते हैं, चाहे उसके लिए आपकी डॉक्यूमेंट वाली फ़ाइल में वो डिग्री हो या नहीं।
इंजीनियर सवाल करता है हर उस सरकार से, उस समाज से, उस रूढ़िवादी ताकत से, उस परम्परा से, उस नियम से जो जड़ कर चुके हैं। इंजीनियरिंग के 4 साल निकालने के बाद अपने आप को देखना ही असल मायनों में एक जीत है।
इंजीनियर सपने बुनता है, उन्हें सजाता है, साकार करने का दमखम रखता है, जश्न मनाता है, खुशियां बांटता है, यही तो ज़िन्दगी का फलसफा है। दिन सबके मनते हैं पर साल का हर दिन कुछ एक के लिए ही मनाया जाता है, अब वो चाहे ट्रोल करके मनाएं या मजाक उड़ाकर।।
– (लेखक अवधेश पारीक, 2013-2017 बैच के मैकेनिकल इंजीनियर है और फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार के रूप में आवाज़ न्यूज़ पोर्टल से जुड़े हुए हैं)