“हर्ष पहाड़ी”
राजस्थान के सीकर जिले मे स्थित हर्ष पहाड़ी यह पोराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक व पुरातत्व की दृष्टि से प्रसिद्ध व प्राकृतिक स्थल है।
हर्ष पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 3100 फीट है जो राजस्थान के सर्वोच्च स्थान आबू पर्वत से कुछ कम है।
उल्लेखनीय है कि दुर्दान्त राक्षसों ने स्वर्ग से इन्द्र व अन्य देवताओं का बाहर निकाल दिया था।कहा जाता है राक्षसों का संहार किया था। इससे देवताओं में अपार हर्ष हुआ और उन्होंने शंकर की आराधना व स्तुति की।
इस प्रकार इस पहाड़ को हर्ष पर्वत एवं भगवान शंकर को हर्षनाथ कहा जाने लगा। इस पहाड़ी की खास बात यह भी है की सीकर मे यह एकमात्र भ्रमण का स्थान है, वर्षा ऋतू मे सैकड़ो लोग यहाँ आनंद लेने के लिए चले आते है।
इन मंदिरों के अवशेषों पर मिला एक शिलालेख बताता है कि यहां कुल 84 मंदिर थे। यहां स्थित सभी मंदिर खंडहर अवस्था में हैं, जो पहले गौरवपूर्ण रहे होंगे। हर्ष नगरी व हर्षनाथ मंदिर की स्थापना संवत् 1018 में चौहान राजा सिंहराज द्वारा की गई और मंदिर पूरा करने का कार्य संवत् 1030 में उसके उत्तराधिकारी राजा विग्रहराज द्वारा किया गया।
लोक मान्यताओं के अनुसार जीण का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ। उनके भाई का नाम हर्ष था जो बहुत खुशी से रहते थे। एक बार जीण का अपनी भाभी के साथ विवाद हो गया और इसी विवाद के चलते जीण और हर्ष में नाराजगी हो गयी। इसके बाद जीण आरावली के ‘काजल शिखर’ पर पहुँच कर तपस्या करने लगीं।
मान्यताओं के अनुसार इसी प्रभाव से वो बाद में देवी रूप में परिवर्तित हुई। देवी जीण के भाई हर्ष ने अपनी रूठी हुई बहिन से घर वापस जाने के लिए बहुत अनुनय-विनय की पर वह न मानी।
तब हर्ष ने भी घर वापस लौटने का विचार त्याग दिया तथा समीपवर्ती पर्वत शिखर पर कठोर तपस्या की। इस प्रकार जीणमाता का शक्तिपीठ और हर्षनाथ भैरव भाई-बहिन के निश्छल और अमर प्रेम बनकर जन-जन आस्था के केंद्र बन गये। हर्ष और जीण से सम्बंधित लोकगीत शेखावाटी में बहुत लोकप्रिय है।
हर्ष पर्वत पर विदेशी कम्पनी इनरकोन द्वारा पवन चक्कियां लगाई गयी हैं जिनके सैंकड़ों फीट पंख वायु वेग से घूमते हैं तथा विद्युत का उत्पादन करते हैं। दूर से इन टावरों के पंखे घूमते बड़े लुभावने लगते हैं।
मैसर्स इनरकोन इंडिया लिमिटेड ने वर्ष 2004 में 7.2 मेगावाट पवन विद्युत परियोजना प्रारम्भ की। यहां पवन को ऊर्जा में परिवर्तित करने वाले विशालकाय टावर लगे हुए हैं। यहां विधुत ऊर्जा का उत्पादन होता है।
यहां अरडूसा नामक पौधे प्रचुर मात्रा में खड़े हैं जिससे खांसी की दवा ग्लाइकाडिनटर्पवसाका बनती है। हर्ष पर्वत की सुन्दरता बसन्त ऋतू मे मोहक हो जाती है क्योंकि हरियाली की चादर इस पर्वत को अपने आँचल मे समेत लेती है।