-अशफ़ाक़ कायमखानी
राजस्थान के शेखावाटी जनपद से सियासी दलो के बनने वाले प्रदेश अध्यक्षो मे से हरिशंकर भाभड़ा को छोड़कर बाकी सबको प्रदेशाध्यक्ष का पद कभी रास नही आया। अव्वल तो अध्यक्ष रहते किसी ने चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखाई नही। अगर किसी ने दिखाई भी तो उनको जनता ने पूरी तरह नकार कर सियासी दलो को आइना दिखाया। 1985-मे हरिशंकर भाभड़ा एक मात्र ऐसे प्रदेशाध्यक्ष है जो रतनगढ़ से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहते विधानसभा का चुनाव जीत पाये थे। लेकिन भाजपा के पहले अध्यक्ष जगदीश माथुर सीकर से 1980- व कांग्रेस से नारायण सिंह ने 2003 मे सीकर से लोकसभा का चुनाव अध्यक्ष रहते लड़ा ओर ओंधै मुह गिरे। जबकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहते डा. चन्द्रभान ने 2014 मे मण्डावा से व कामरेड अमरा राम ने माकपा के प्रदेश के सर्वोच्च पद सचिव पद रहते 2014 मे दांतारामगढ़ से विधानसभा का चुनाव हारे। जिनमै चंद्रभान तो जमानत तक भी नही बचा पाये थे।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनने वाले चूरु के डा. महेश, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे सरदार हरलाल सिंह व माकपा के गूरुजी माटोलिया ने पद पर रहते चुनाव ही नही लड़ा था। जबकि 2008 के विधानसभा चुनाव मे उदयपुरवाटी से जमानत गवानै वाले मदनलाल सैनी अभी अभी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने है लेकिन इनका टेस्ट भी अगले चुनावो मे चुनाव लड़ने पर होना तय है।
कुल मिलाकर यह है कि सियासी दलो की किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का अपना आंकलन या मजबूरी होती होगी।लेकिन जनता मे जाकर चुनाव लड़ने मे जनता उसका ठीक ठीक मूल्यांकन करके रिजल्ट उसके हाथो मे थमाने से कभी बाज नही आती है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है जो शेखावाटी के राजनैतिक हालात पर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लिखते रहते हैं)