–अशफ़ाक ख़ान
उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले मे कासिम नाम के एक व्यक्ति की सिर्फ शक के आधार पर पीट पीटकर हत्या कर दी गई , उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होने गौहत्या कर एक विशेष धर्म की भावनाओं को आहत किया था । कानून को ठेंगा दिखाकर संगठित भीड़ द्वारा इस तरह अमानवीय कृत्य करने की ये कोई पहली घटना नहीं है बल्कि इससे पूर्व भी राजस्थान और झारखंड मे भी अफवाह के आधार पर स्वंयभू कानूनविद इंसाफ कर चुके हैं l डिजिटल व आधुनिक भारत मे आये दिन हो रहे इस प्रकार की घटनाओं पर समाज को आत्ममंथन करने के साथ-साथ ये सवाल पूछने की भी जरुरत है कि ये अत्याचार कौन करता है ? अत्याचारी ऐसे कृत्य करने मे क्यों सफल हो जाते हैं ? और संवैधानिक अवहेलना करने के लिये वे इतने स्वतंत्र क्यों है ? हापुड़ की घटना न सिर्फ लोकतांत्रिक स्वरुप का तिरस्कार करने के लिये पर्याप्त है अपितु ऐसे अपराध विश्वपटल पर भी भारत की छवि धूमिल कर रहे है l ये देश का ही दुर्भाग्य है कि आजादी के इतने वर्षों के पश्चात भी न्याय के लिये कानूनी प्रक्रिया पर भरोसा नहीं किया जाता l
हापुड़ की घटना के संदर्भ मे पुलिस अधिकारियों के अनुसार इस दौरान उपद्रवियों द्वारा पुलिस थाने मे गौहत्या का मामला दर्ज करना व सूचना देना भी उचित नहीं समझा lजो कानून के राज के खारिज करने के समान है । ऐसी घटनाओं मे ये समानता होती है कि पुलिस , प्रशासन पूरी तरह मूकदर्शक बन जाता है या फिर उपद्रवियों द्वारा पुलिस पर ही हमला कर दिया जाता है l ऐसी अराजक स्थिति मे विकास की बातें करना ही बेमेल है क्योंकि ऐसी हरकतें न शांतिपूर्ण समाज के लिये शुभ संकेत है ना हि संवैधानिक सत्ता स्थापित करने वाली संस्थाओं के लिये l आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे कार्यों मे संलिप्त लोगों के विरुद्ध न सिर्फ कानूनी रुप से कड़ी कार्यवाही की जाये बल्कि समाजिक स्तर पर भी हर उस विचारधारा का बहिष्कार किया जाये जो ऐसे कार्यों को प्रोत्साहन देती हो l सरकार को भी चाहिये ऐसे सगंठन जो राजनीतिक लाभ के लिये भीड़ को प्रयोग करते हैं उनके विरुद्ध बिना भेदभाव के कदम उठायें जायें ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो . जनतंत्र के वध करने का अधिकार किसी को नहीं है।
(लेखक इंजीनियरिंग के छात्र है)