“कैसी मोहब्बत”
काजल सा कलंकित कर दिया,
काजल तेरी मोहब्बत ने।
काल लिखने बैठा हूँ,कलम के कौशल पर
कलयुग के कटघरे में कयामत का।
कायाकल्प कर दूंगा,अपने कर्मों के कारनामों से,
यथार्थ के धरातल पर।
कवि की कोई काल्पनिक कटी-फटी कविता नहीं।
गुजरे कल का कायल हूँ,
जिंदगी के कागज पर कोई राहु-केतु नहीं।
अपनी कृति में कीर्ति, कीर्ति में ही कस्तूरी
कामवासना के क्रंदन में कुछ भी नहीं।
एहसास हुआ आज, हम से बड़ा कमबख्त कोई नहीं।
किस्मत का किस्सा किस किस्म का है,
जाना जान है कमल में ,कनक में कुछ भी नही।
जो है, जो कुछ भी है, काल के किए कर्मों से हैं।
कलंकित करने वाली कायरों की मोहब्बत में कुछ भी नहीं।
-मुकेश खारवाल
(कवि मुकेश खारवाल राजस्थान के जोधपुर से है,अभी राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर के छात्र हैं)