” मेरी प्यारी माँ ”
रुक जाता हूँ किसी मोड़ पर यूँ ही चलते-चलते …
जो वादा किया था माँ से , आज फिर याद आता है ।।
दिलों की हसरतें पूरी करना , कहीं आसां था मेरे लिए…
मगर उनकी नफरतों का शिकार बनना , आज भी गवारा नहीं ।।
उँगली पकड़कर , डाँट-डपटकर जो सिखाया था कभी …
कामयाबी का वोह सबब बनेगी , ऐसी उम्मीद हरगिज़ न थी कभी ।।
थककर गोद में तेरी सोया था जब भी …
ऐसी महफूज़ जगह शायद ही होगी कहीं ।।
खुशी दिखकर , ग़मों को छुपाकर जब भी रोई हो तुम …
ऐसी सूरत-ए-हाल पर , “काश ! मेरा बस होता ” ।।
बुढ़ापे में लाठी तेरा सहारा हरग़िज़ न बनेगी “ऐ माँ !”
इस नालायक बेटे का कंधा, फिर किस दिन काम आएगा ।।
–Umar Salim
(Student, SKIT,Jaipur)
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