Rajesh Gurjar
राजस्थान वैसे तो किलो,गढ और महलो के लिए प्रसिद्ध रहा है लेकिन इन सब के बीच चित्तोडगढ का दुर्ग अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है । इस दुर्ग के बारे मे एक उक्ति काफी लोकप्रिय है- गढ तो चित्तोडगढ बाकी सब गढैया
आइए राजस्थान के इस गौरवपूर्ण और गरिमामय दुर्ग से आपको रूबरू करवा दे
इस दुर्ग का निर्माण 7 वी सदी मे राजा चित्रागंद द्वारा करवाया गया बाद मे गुहिल वंश के संस्थापक बप्पा रावल ने मान मौर्य को पराजित कर इस किले पर अधिकार किया गया । यह अरावली पर्वतमाला की मेसा पहाडी पर स्थित यह दुर्ग 16 वर्ग किमी. के क्षेत्र मे फैला हुआ है ।
इतिहास के दृष्टिकोण से यह दुर्ग वीरता और शौर्य का जीता जागता प्रमाण है , यह किला इतिहास के तीन प्रसिद्ध साका (केसरिया+जौहर) का गवाह बना ,जिनमे पहला 1303 मे सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय ,दूसरा 1534 मे गुजरात शासक बहादुरशाह के आक्रमण,1567 मे अकबर द्वारा आक्रमण के समय ,इन तीनो ही अवसर पर राजपूतो ने केसरिया और वीरांगनाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया
कई योद्धाओ के पराक्रम और बलिदान का साक्षी यह दुर्ग इतिहास मे अपना कोई सानी नही रखता ।
वीरता और बलिदान के अलावा ,स्थापत्य कला की दृष्टि से भी इसका कोई मेल नही है
सुदृढ और घुमावदार दीवारे,उन्नत और विशाल बुर्जे , सात अभेद्य प्रवेश द्वार , इन सब विशेषताओं ने इसे विकट दुर्ग का रूप दे दिया ।
दुर्ग मे किर्ति स्तम्भ ,विजय स्तम्भ,रानी पद्मनी का महल, क्षृंगार चवंरी,मीरा मंदिर,कुम्भ श्याम मंदिर,आदि स्थित है ।
इसके अलावा झाली बाव,कुम्भा सागर तालाब,हाथी कुण्ड, यहां दुर्ग मे स्थित महत्वपूर्ण जल स्त्रोत है ।