इस बार राजस्थान में पार्टियां नहीं जातियां चुनाव लड़ रही है,उनके बीच गठबंधन भी हो रहे है,लोग सिद्धांतों का मुलम्मा चढ़ा कर खुद की जाति और अपनी जाति के नेता को प्रमोट करने में लगे है।
इस प्रकार के अवसरवादी एवं बेमेल जाति गठबंधनों से बचने की जरूरत है,विशेष तौर पर जाति के नाम पर सताये हुए तबकों को इस जातिवादी राजनीति से कुछ भी मिलने वाला नहीं है ।
हो सकता है कि अभी वोट लेने के लिए लठैत कौमें पुचकार रही हो,मतदान के बाद ठौकने लगेगी,इसलिए अपने वोट को भावनाओं में आकर देने की जरूरत नहीं है,सोच समझ कर दीजिए।
दोस्त और दुश्मन की शिनाख्त कीजिये,हो सकता है कि कुछ लोग व्यक्तिगत कारणों तथा सत्ता की इच्छा के चलते घुटने टेक रहे हो,पर सामुदायिक हित मे सामूहिक फैसला लीजिये,अपने एक एक वोट को अपने सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक,सांस्कृतिक व वैचारिक दुश्मन को परास्त करने में इस्तेमाल कीजिये ।