-अशफ़ाक़ कायमखानी
शेखावाटी की राजनीति का भी अजब दस्तूर है कि जो पिछलग्गू बनकर घूमते रहते है। उन्हे जीवन भर दूम पकड़े ही जिल्लत के जहरीले घूंट पीते पीते घूमते रहने को मजबूर होना पड़ता है। ओर जो आंख दिखाने की ताकत रखते है,उन्हें ही मजबूरन या फिर चलाकर सर आंखो पर बैठाया जाता है। पर राजनीति मे आंखे वो ही दिखा पाते है जिनका जिगर कुदरत ने बडा व दमदार बनाया हो। जी हा, वोही कुछ कर गुजरने का मादा रखते है, तो वोही लोग कुछ पाते भी है। साथ मे उनके अलावा उनके बाद सत्ता सुख उनके बेटे-पोते भी भोगते है।
सीकर मे नेताजी के खिलाफ बगावत करके विधानसभा चुनाव लड़ने की ताकत दिखाने वाले शर्मा जी के पूत्र को नेक्स टू नेताजी बनाकर मालामाल करने को मजबूर होने के साथ साथ हमराज बनाना पड़ा। दूसरी तरफ खान साहब ने बगावत करके विधानसभा चुनाव मे नेताजी के सामने ताल ठोकी तो उनके पूत्र को शहर का पहला नागरिक बनाने पर विवश होना पड़ा। जिन लोगो को नगर परिषद वार्ड व पंचायत समिति सदस्य की टिकट नेताजी ने नही दी तो उनमे से जिन लोगो ने नेताजी को आंख दिखा कर बगावत करके चुनाव लड़ा तो उन्हीं लोगो को नेताजी को आज अपनी आंखो का तारा बनाने को मजबूर होना पड़ा है। वरना जो पिछलग्गू बने घूमते थे वो आज भी पल्लू पकड़ कर रेंगते हुये देखे जाते है।
राजनीति का उक्त दस्तूर नीचे से ऊपर व ऊपर से नीचे तक इसी तरह बहता है। कांग्रेस पार्टी मे महादेव सिंह खण्डेला का टिकट कटा तो बगावत करके खण्डेला ने चुनाव लड़ा तो अगली बार खूद टिकट चल कर उनके घर आई। नीमकाथाना मे रमेश खण्डेवाल व खण्डेला मे बंशीधर बाजीया को टिकट ना मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने का साहस दिखाने पर अगले चुनाव मे टिकट लेकर स्वयं हाईकमान उनके घर तक आई। फतेहपुर मे भीण्डा व महरिया की टिकट कटने पर बगावत करके चुनाव लड़ने पर ही उनको आज सूखद अहसास हो पाया है।
कुल मिलाकर यह है कि राजनीति मे ऊपर चढने के कुछ नए उसूल पिछले कुछ सालो से बनते नजर आ रहे है कि जिस सीढ़ी से तूम ऊपर चढे हो उस सीढ़ी को हटाते चलो ताकि कोई दूसरा उस सीढ़ी का उपयोग ना कर पाये। इसके अलावा राजनेता को ठीक समय पर अपने हक के लिये आंखे दिखाना सीख लो फिर देखो वो ही नेताजी उनको सर आंखो पर बैठाकर घूमाने को मजबूर होगा। वरना पिछलग्गु की तरह दुम पकड़े पकड़े घूमते रहो ओर भुगतते रहो।