सरकारें इतनी निरंकुश क्यों हो गईं?
By:C.b Yadav
राजस्थान सरकार ने आदेश दिया है कि पुलिसकर्मियों के पारिवारिक सदस्य यदि सरकार की आलोचना या सरकार के विरुद्ध किसी गतिविधि में यदि सोशल मीडिया अथवा अन्य किसी मंच पर संलग्न होता है!
सरकार विरोधी गतिविधियों के लिए चंदा देता है तो उसे रोका जाए और यदि ऐसा करने से वह बाज नहीं आए तो सरकार को सूचना दी जाए!
जिससे उसके विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही की जा सके!
कुछ दिन पूर्व सरकार द्वारा सरकारी कर्मियों को कि सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी किसी भी प्रकार संवाद पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया था!
उससे पूर्व राजस्थान सरकार द्वारा अध्यादेश के माध्यम से लोकसेवकों, न्यायाधीशों एवं मंत्रियों के विरुद्ध किसी भी प्रकार की शिकायत को सरकार की अनुमति के बिना दर्ज करने अथवा प्रकाशित करने पर पाबंदी लगा दी थी जिसे मीडिया तथा बुद्धिजीवी वर्ग ने काला कानून की संज्ञा दी है!
सवाल यह नहीं है कि सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकार तक को सीमित क्यों कर रही है इससे भी बड़ा सवाल यह उत्पन्न होता है कि आखिर सरकारों के पास इतना गैर संवैधानिक ,अलोकतांत्रिक और निरंकुश कदम उठाने का साहस कहां से आता है?
कहीं हम ही तो इसके जिम्मेदार नहीं है?
कल भी मुझे राजस्थान पत्रिका टीवी पर काला कानून कि प्राइम डिबेट पर यह सवाल पूछा | मैं अपने व्यक्तिगत चिंतन से इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि इसके लिए नागरिक पूर्णता जिम्मेदार है क्योंकि विगत कुछ वर्षों से यह देखा गया है कि नागरिक सरकारों का और व्यक्ति विशेष को महानायक मानते हुए उनका अंध अनुगामी बन गया है जिससे सरकारे बेफिक्र हो जाती है क्योंकि इससे नागरिक की विरोध करने की क्षमता समाप्त हो जाती है!
बेरोजगारी से त्रस्त युवा को अपने भविष्य की परवाह के स्थान पर हिंदू मुस्लिम विवाद अथवा नेता विशेष अथवा सरकारों के अतार्किक व अलोकतांत्रिक निर्णयों के पक्ष में तर्क -कुतर्क करने में अधिक आनंद आने लगा है युवाओं और नागरिकों कि इसी विरोध की नपुसंकता के कारण सरकारे निरंकुश हो रही है और एक दिन यह निरंकुशता लोकतंत्र को तो समाप्त करेगी ही अपितु उन नागरिकों के जीवन को भी जब बर्बाद करेगी और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी!कुछ सबक हमें विश्व इतिहास से भी लेना चाहिए!
(लेखक पूर्व लोक प्रशासक हैं तथा वर्तमान में राजस्थान विश्वविद्यालय में लोक प्रशासन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर हैं)