बिखरती संवरती मालाणी की माटी……
आज सुबह से स्वर्गीय चौधरी रामदान जी को मारवाड़ के लोग श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे है। शिक्षा के क्षेत्र में रियासतकालीन मारवाड़ में जिन महान शख्सियतों को किसान कौम युगों-युगों तक नमन करेगी उनमें बाड़मेर से रामदान जी चौधरी, जोधपुर से गुल्लाराम जी चौधरी व नागौर से बलदेव राम जी चौधरी का नाम प्रमुख है। आज ही के दिन अर्थात 15 मार्च 1855 को धोरों की धरती बाड़मेर में रामदान जी का जन्म हुआ था। अपने पुरखों को नमन करना भावी पीढ़ी का कर्तव्य होता है। किसान बोर्डिंग/किसान होस्टल की मारवाड़ क्षेत्र में श्रृंखला स्थापित करने में अपना जीवन न्यौछावर करने वाली महान शख्सियत को मैं उनके जन्मदिन पर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
आज सुबह एक सुखद खबर बाड़मेर से आई कि एक आठवीं पास किसान व अनपढ़ माँ के बेटे का इसरो में चयन हुआ है तो लगा कि एकदिवसीय श्रध्दांजलि कार्यक्रम करने के अलावे भी आज किसान कौमों में ऐसे युवा है जो चिमनी (लैम्प) की रोशनी में चार किलोमीटर पैदल चलते हुए प्राथमिक शिक्षा अर्जित करते है और किसान परिवार की तमाम समस्याओं को दरकिनार करते हुए चौधरी रामदान जी के सपनो को साकार कर रहे है। अभावों का रोना रोते हुए युवा हर घर मे मिल जाएंगे लेकिन अपनी बुद्धि द्वारा, कड़े संघर्ष द्वारा सामाजिक-आर्थिक अभावों पर जीत दर्ज करने वाले युवा ही मानवता के वाहक बनकर दूसरों को प्रेरित करते रहते है। बुद्धि का अभाव ही दुनियां का सबसे बड़ा अभाव माना जाता है।
पिछले दिनों हत्याओं/आत्महत्यों से मालाणी की धरा शर्मसार हुई थी।नशे के आदि व नशे में लिप्त युवाओं की करतूतों के ख़ौफ़नाक मंजर मालाणी की धरती ने देखे तो मुझे भी निराशा हुई थी कि चौधरी रामदान जी के सपनों की हत्या जल्द ही हो जाएगी! लेकिन कहते है कि घनघोर छाये अंधेरों में छोटा सा चिराग अपनी रोशनी से दूर तक राह दिखा जाता है। आज रोज कलंकित होती मालाणी की धरती को एक गरीब किसान के बेटे ने उज्ज्वलित कर डाला। एक तरफ बाड़मेर से तमाम अभावों के बीच युवा कड़े संघर्ष के माध्यम से अपना भविष्य बना रहे है व अपने पूर्वजों के साथ-साथ अपने किसान माँ-बाप के सपनों को साकार कर रहे है तो दूसरी तरफ तमाम सुख सुविधाओं के बीच कुछ युवा मालाणी की धरा को कलंकित कर रहे है। काले सोने के ऊपर बैठे थार के किसान कौम के युवाओं में नशे की प्रवृति क्षुब्ध करने वाली है तो चुनाराम जैसे लाल का कमाल उम्मीदें जिंदा रखने की नसीहत देने वाला है।
विकास की डगर साथ मे कुछ साइड इफ़ेक्ट लेकर आती है लेकिन संचार के साधनों के माध्यम से सावचेती का संचार भी करती रहती है। बलदेवराम जी मिर्धा का नागौर व चौधरी गुल्लाराम जी का जोधपुर नशे का दंश झेलकर संभलने की कोशिश कर रहा है। जमीनी संसाधनों व सिंचाई की उपलब्धता ने जोधपुर-नागौर को बाड़मेर की तुलना में आगे कर दिया था इसलिए यह रोग यहां पहले पहुंचा तो तेल की खुदाई व कंपनियों के आवागमन से बाड़मेर में यह अब पहुंचा है। पहले हिंदुस्तान के किसी भी कोने में जाते तो अपना व्यवसाय करते बाड़मेर के लोग जरूर मिल जाते थे। एक भाई गुजरात मे व्यवसाय करता तो छोटा भाई जोधपुर, जयपुर या दिल्ली के मुखर्जीनगर में पढ़ता मिलता। आज भी ऐसे उदाहरण बहुतायत में मिलते है लेकिन जमीनों की ऊंची कीमतों से आया पैसा अशिक्षित किसान कौमों के लिए कहर बनकर उभरने लगा है।
आज मालाणी की माटी के युवाओं को अपने कदमों का विश्लेषण करना चाहिए। सस्ती लोकप्रियता, घटिया राजनीति, ऐशो-आराम के नाम पर नशे के कारोबार कहाँ तक जायज है?
सक्षम लोगों के घर-घर जाकर चंदा जुटाना व गरीब किसानों के घर-घर से बालकों को पकड़कर अपने घर मे रखकर, पडौसी के घर को किराए पर लेकर शिक्षा की अलख जगाने वाले रामदान जी के सपनो की क्या हम इस तरह हत्या कर देंगे?
क्या हम हमारे छोटे भाइयों को चुनाराम की तरह संघर्ष करने का हौंसला नहीं दे सकते?
हर कुनबे के बच्चों को किसान बोर्डिंग में एक जगह लाकर भविष्य के लिए पैगाम देने वाली महान शख्सियत को नमन करते हुए हम इतना तय नहीं कर सकते कि राजनैतिक मतभेदों को सामाजिक रिश्ते की बुनियाद में न घुसने दें?
क्या हम इतना नहीं कर सकते कि किसानों के बच्चों को नशे से दूर रखने के लिए स्कूलों में सेमिनार करे व चुनाराम जैसे युवाओं की प्रेरक जीवनियों से बच्चों को प्रेरित करे?
हमारी महान शख्सियतों को नमन जरूर करे लेकिन इसे एकदिवसीय कार्यक्रम समझकर इतिश्री करने की भूल कतई न करे। अपने ऐतिहासिक महापुरुषों की याद में इतिहास को याद जरूर करे लेकिन वर्तमान हालातों पर चुपी साधकर भविष्य को बर्बादी के मंजर में जाने से हर हाल में रोकना होगा। जो अपना इतिहास भूल जाते है, भविष्य उनको भुला देता है! जो अपना आज नजरअंदाज करता है व कल और परसों घुट-घुटकर मरता है।
कल महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का देहांत हो गया जिसने ईश्वर की सत्ता को नकार दिया था और कहा था जीवन यही है, हर पल जिओ। पूरी दुनियां उनको नमन कर रही है। इसलिए अंत मे इतना ही कहना चाहता हूँ कि अपनी गाढ़ी कमाई पाखंड व अंधविश्वास के अड्डों पर उड़ाने के बजाय गरीबों/मजलूमों के बच्चों की शिक्षा पर खर्च करो और चौधरी रामदान जी डऊकिया को सच्ची श्रद्धांजलि !