-अवधेश पारीक
राजस्थान चुनावों का बिगुल बजने के साथ ही जहां एक तरफ प्रचार-प्रसार का दौर चल रहा है वहीं दूसरी तरफ लोगों के बीच मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर चर्चाएं तेज हैं। बीजेपी के पास जहां वसुंधरा राजे का एकमात्र चेहरा है वहीं कांग्रेस मुख्यमंत्री पद के लिए बड़े ही असमंजस के दौर से गुजर रही है। मुख्यमंत्री पद के लिए प्रदेश के तीनों बड़े नेताओं की अपनी-अपनी जंग है। कांग्रेस के प्रदेश मुखिया सचिन पायलट के लिए यह चुनाव सबसे चुनौतीपूर्ण साबित होंगे इसमें कोई दो राय नहीं है।
हाल ही में हुए एक सर्वे में 36 फीसदी लोग सचिन पायलट को राजस्थान के नए मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं लेकिन इन कुछ वजहों पर अगर हम गौर करें तो पता चलता है कि कांग्रेस के चुनाव जीतने के बाद भी मुख्यमंत्री की राह में कई कांटे हैं।.
गहलोत का राजनीतिक रसूख पड़ सकता है भारी-
राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत का राजनीतिक रसूख किसी से छुपा नहीं है ऐसे में सचिन पायलट के लिए गहलोत एक बड़ी चुनौती बनकर खड़े हैं। आलाकमान के सामने खुद को गहलोत की तुलना में बेहतर साबित करना पायलट के लिए चुनाव जीतने से कहीं ज्यादा मुश्किल है। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से पायलट की नजदीकियां होना उनके लिए एक सकारात्मक पहलू जरूर हो सकता है।
जातिगत पहचान बनेगी राह का रोड़ा-
राजस्थान की राजनीति में हर जाति का क्षेत्र के हिसाब से अपना वर्चस्व है। जैसा कि हम जानते हैं सचिन पायलट गुर्जर समुदाय से आते हैं, जाट-राजपूत और गुर्जर-मीणाओं के बीच तनाव जगज़ाहिर है, हर समुदाय से सालों में कई राजनीतिक सूरमा निकले पर मुख्यमंत्री पद पर भैरोसिंह शेखावत ही पहुंच सकें। ऐसे में राजपूत, जाट, मीणा समुदायों में अपने वर्चस्व को लेकर होने वाली आपसी खींचतान भी पायलट के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है।
राजनैतिक अपरिपक्वता बढ़ाएगी कुर्सी से दूरी-
पिछले कुछ समय से विपक्ष का मुखिया होने के नाते पायलट की छवि दलित और अल्पसंख्यकों के बीच एक कमजोर नेता की रही है। अलवर जिले के दलित युवक नीरज जाटव हत्याकांड जिसके आरोप गुर्जर समुदाय के लोगों पर लगे थे उस पर पायलट की चुप्पी या फिर डांगावास नरसंहार पर कांग्रेस मुखिया का ना बोलना दलित में आक्रोश को बढ़ाता हुआ दिखाई दे रहा है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है,विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनके लेख छपते रहते हैं, आवाज़ न्यूज़ पोर्टल से भी जुड़े हुए हैं)