-जयेश पण्डया
प्रधानमंत्री कार्यालय ने कार्मिक विभाग को पत्र लिखकर यह पूछा की क्यों ना सिविल सेवाओं ने काडर आवंटन फाउंडेशन कोर्स के बाद प्राप्त होने वाले अंको पर तय किया जाये ,
केंद्र सरकार के मंत्रालय ने अपने पत्र में पूछा ‘कि क्या सिविल सेवा परीक्षा के आधार पर चयनित प्रशिक्षु अफसरों को सेवा आवंटन/कैडर आवंटन फाउंडेशन कोर्स के बाद किया जा सकता है? फाउंडेशन कोर्स में प्रदर्शन को उचित महत्व किस तरह से दिया जा सकता है? इस बात की गुंजाइश की भी जांच की जाए कि क्या अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों को सेवा और कैडर आवंटन सिविल सेवा परीक्षा और फाउंडेशन कोर्स दोनों के सम्मिलित अंकों के आधार पर किया जा सकता है?’
यह ठीक है नए बदलावों को लागू करने के बाद ही प्रशासनिक सुधारो की चर्चाएं व्यापक स्तर पर शुरू की जानी चाहिए। कार्मिक विभाग ने इसके जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय को क्या लिखा इस बारे में कोई खास जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी लेकिन मीडिया ट्रायल एवं सिविल सेवा से जुड़े अधिकारियो के व्हाट्सअप ग्रुप में चर्चाओं का दौर अवश्य शुरू हो गया है ।
वर्तमान में जिस प्रणाली और परीक्षा पद्धति के आधार पर अधिकारियो का चयन किया जा रहा है वास्तव में वह सिविल सेवाओं की मुलभुत आवश्यकताओं से काफी परे है और इस बात का अंदाज़ा स्वंय अधिकारी को ही कुछ वर्षों में होने लगता है। लेकिन जब भी सिविल सेवाओं की परीक्षा पद्धति में बदलाव या सुधार की चर्चाएं की जाती है तो इसे घुमा फिरा कर आरक्षण से जोड़कर देखा जाता है। और इस प्रकार की चर्चाओं को शामिल किया जाता है कि इससे दलितों एवं अल्पसंख्यको को चयन से बाहर रखने वाली विचारधारों को ताकत मिलेगी या आरक्षण के प्रावधानों को कमजोर किया जा रहा है। इस तरह के सभी कयास केवल और केवल सुधारात्मक प्रकिया से परे हटने हेतु लगाए जाते है। कुछ मामलो में हो सकता है कि क्षेत्र एवं भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर अधिकारी की कार्यक्षमता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो , यह भी हो सकता है कि समय एवं दौर के आधार पर एवं निदेशकों के विवेक के आधार पर कई प्रशिक्षु अधिकारियो का एलबीएसएनएए और दूसरी अकादमियों में कड़वा अनुभव रहा हो लेकिन इसका ये मतलब नहीं की इस आधार पर पूरी प्रक्रिया को ही दरकिनार कर दिया जाए। इस पर सभी पक्षो से चर्चा होने के बाद कोई रास्ता जरूर निकाला जा सकता है।
सबसे खास बात है कि जो सच्ची निष्ठा से इस पेशे में आकर देश सेवा करना चाहते है ऐसे भविष्य के अधिकारियों से भी चर्चा की जानी चाहिए कि यह सुधार कैसे हो सकते है। सिर्फ पूर्व एवं वर्तमान में कार्य कर रहे अधिकारियो की रायशुमारी पूर्वाग्रह से ग्रसित भी हो सकती है।
सिविल सेवा द्वारा चयनित अधिकारी के कंधों पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती है और वास्तव में सरकार एवं जनता के बीच की जो खाई है उसे पाटने का कार्य भी करते है लेकिन वर्तमान प्रणाली ने उन्हें सिर्फ सरकारों की योजनाओं को जमीन पर लागू करने वाला नोकरशाह बनाकर छोड़ दिया है। लोकतंत्र में जनता सिर्फ चुनी हुई सरकारों पर आँख मूंदकर अपने भविष्य को नहीं सौंप सकती। जिस प्रकार शिक्षा नीति हेतु देशभर के लोगों के सुझाव मांगे गए उसी प्रकार एक गाइडलाइन जारी कर सिविल सेवा परीक्षा में भी सुधारो के सुझाव मांगे जा सकते है।
आरक्षण या अन्य किसी पूर्वाग्रह की आड़ में सुधारो की चर्चाओं पर विराम लगाना पुरे देश की जनता के साथ अन्याय है। यह आप ऐसे समझ सकते है कि सिविल सेवा द्वारा चयनित अधिकारी प्रारंभिक दौर में एक जिले का कार्यभार संभालता है वही मुख्य सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी अपनी सेवाएं देता है। ऐसे में यह एक गंभीर विषय है जिस पर सभी राजनैतिक दलों , बुद्धिजीविओं को भी सकारात्मक रवैये से सोचना होगा वो भी नए सिरे से।
(लेखक मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी उदयपुर में पत्रकारिता के छात्र हैं)