सचिन पायलट एक बार दौसा से और एक बार अजमेर से सांसद रह चुके हैं। पायलट केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे हैं लेकिन सचिन पायलट पहली बार राजस्थान के टोंक से विधायक बने है।प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए उन्होंने राजस्थान में कांग्रेस की वापसी करवाने में एड़ी चोटी का जोर लगाया है,इसलिए आलाकमान उन्हें नकार नही सकते थे। प्रदेश के युवा और गूर्जर समाज उनको मुख्यमंत्री बनवाना चाहता था।लेकिन प्रदेश की जातिगत राजनीति और उनके कम अनुभव को देखते हुए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाना संभव नही था। इसलिए उन्हें अभी प्रशिक्षु मुख्यमंत्री यानि कि उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। अभी उनकी लोकसभा चुनाव होने तक अशोक गहलोत के अंडर में ट्रेनिंग चलेगी।अगर 2019 में केंद्र में भी कांग्रेस वापसी करती है तो अशोक गहलोत को केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। तब तक के लिए गूर्जर सचिन पायलट को गूर्जर नेता बनाने की जगह प्रदेश का नेता बने रहने दे, अगर ज्यादा उत्पात मचाया गया तो ये सचिन के लिए भी सही नहीं होगा। गूर्जर समाज के उग्र होने पर मीणा समाज भी खुलकर पायलट के विरोध में आ सकता है जो कि अब तक दबी ज़बान में ही विरोध कर रहें हैं।