-माजिद मजाज़
क्या बहुसंख्यक आस्था से ही देश चलेगा? अल्पसंख्यकों के लिए इसमें कोई भी जगह नहीं?
इस देश में हर दिन सार्वजनिक स्थलों पर संघ की शाखा लगती है जो शुद्धरूप से राजनीतिक रहती है, क्या इसकी अनुमति कभी ली जाती है? हर महीने बहुसंख्यक समाज का कोई न कोई त्यौहार आता है जिसमें सार्वजनिक स्थलों पर खूब कार्यक्रम होते हैं पर आजतक किसी ने उसपर आपत्ति नहीं उठाई बल्कि लोग इसमें मिलजुल कर शामिल होते हैं।
बनारस से लेकर इलाहाबाद, मथुरा तक हर जगह प्रतिदिन सार्वजनिक स्थलों पर बहुसंख्यक समाज के लोग अपनी आस्था एवं धार्मिक आज़ादी का जश्न मनाते हैं। पर कहीं कोई विवाद नहीं होता है। प्रत्येक वर्ष लगभग एक महीने तक कांवड़ यात्रा के दौर देश के कई सारे हाईवे बंद रहते हैं, सार्वजनिक स्थल पूरी तरह से कांवड़ियों का टेंट लगा रहता है एवं इनका जत्था आता जाता है। पर यहाँ किसी को कोई परेशानी नहीं होती, यहाँ सार्वजनिक स्थल की याद किसी को नहीं आती बल्कि उलटा प्रशासन हेलीकाप्टर से फूल माला फेंक कर स्वागत करता है।
अभी इलाहाबाद में कुम्भ होने वाला है, लगभग महीनों तक पूरा इलाहाबाद जाम में फंसा रहेगा, हर चीज ठप्प रहेगी। वहाँ लोग सार्वजनिक स्थलों पर अपनी धार्मिक-सांस्कृतिक रीतरिवाज के तहत अपनी मान्यताओं का उत्सव मनाएँगे। पर कहीं कोई ये नहीं कहेगा कि ये सब सार्वजनिक स्थल है, यहाँ धार्मिक कार्य नहीं कर सकते। हर कोई इसका स्वागत करेगा, और करना भी चाहिए। यही तो खूबसूरती है इस मुल्क की, हर कोई एक दूसरे की आस्था का सम्मान करता है।
पर ऐसा क्या हो गया है कि हफ़्ते के एकदिन मात्र आधे घंटे पार्क में नमाज़ पढ़ने से प्रशासन को दिक्कत आ गई? क्या कुछ सार्वजनिक जगहों पर हफ़्ते में एकदिन मात्र आधा घंटा जुमे की नमाज़ अदा करना भी गुनाह है? अल्पसंख्यकों के लिए अगर सार्वजनिक स्थल पर रोक है तो वहीं बहुसंख्यकों का स्वागत क्यों?
इसे क्यों न शुद्ध रूप से स्टेट का अल्पसंख्यकों के प्रति अत्याचार एवं गांधीवादी मूल्यों वाली धर्मनिरपेक्षता के ख़िलाफ़ माना जाए। मुसलमानों को हफ़्ते में एक दिन आधा घंटे नमाज़ पढ़ने से रोककर स्टेट पूरी दुनिया में क्या संदेश देना चाहता है? क्या सियासत की सोच इतनी छोटी हो गई है?
सियासत की नफरत फैलाने की तमाम नापाक कोशिशों के बावजूद आख़िरकार नोएडा में नफ़रत हार गई और मोहब्बत जीत गई। लोगो का आपसी प्रेम और भाईचारा कायम रहा। नोएडा प्रशासन ने पार्क में पानी छोड़ दिया ताकि लोग शुक्रवार को पार्क में नमाज़ नहीं पढ़ पाएं लेकिन नोएडा के फैक्ट्री मालिकों ने जो कि मुस्लिम नहीं है उन्होंने अपनी फैक्टरी की छतों को साफ करवाया और वहाँ नमाज़ की व्यवस्था करवाई। बड़ी फैक्टरी मालिकों का कहना है कि जल्दी ही हम परमानेंट इमाम की व्यवस्था करेंगे और किसी भी मुस्लिम भाई को नमाज़ के लिए परेशान नही होने देंगे।
शायद भारत देश की इसी विशेषता के लिए मशहूर शायर इक़बाल ने ये पंक्तियां कही थी
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।।
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।।
इलाहबाद नही प्रयागराज बोलिये