–खान शाहीन
फरवरी सबसे व्यस्त और प्यारा हर साल की भाँति होता ही है कभी सफर कभी ढ़ेरो काम कभी पढ़ाई का भार….लेकिन इन सबके बावजूद भी फरवरी की ठण्डी लहरे और थोड़े लंबे दिन इन सारी व्यस्तताओं को सुखमय बना देती है….ठण्डी और लम्बी रातो मे हम अतीत का सफर करने लगते है.. करीब 12 फरवरी की रात थी मै आँगन मे बैठी कॉफी से ठण्ड के एहसास को कम करना चाहती थी..
वो अतीत हमेशा मेरे साथ होता था हाँ उसके साथ मै बहुत खुश थी और इंसान की फितरत होती है की जब कभी वो ख़ुशी के दिनों मे रहने लगता है तो गमो को अक्सर भूल जाता है,,, और उन खुशियो मे इतना खुद को भुला देते है की ना हमे वर्तमान की फ़िक़्र होती है ना ही आने वाले भविष्य की,,
हम और हमारा मन इतना विस्तृत होता है की हम सोचो के सफर मे इतना आगे निकल जाते है की खुद से कोसो दूर खड़ा पाते है खुद को,, खुद से दिनभर की बाते इतनी ज़्यादा होती है की कई बार हमारी ख़ुशी और मायूसी उन्ही खुदकलामी की वजह से होती है…असल मे इंसान का सच्चा दोस्त इंसान खुद ही होता है वो किसी से ऐसी बाते नही बताता जो खुद से करता है क्योंकि हम खुद को किसी के सामने नीचा नही दिखाने चाहते और कभी ऐसा भी होता है की हम अतीत के पन्नों को मिटा कर भविष्य लिखने लगते है।
इंसान कभी भी ऐसा नही होता की वो अतीत को भुला वर्तमान की हर खुशियो का आंनद ले सके कुछ घुटन, कुछ गलतियां, कुछ काश और कुछ गीले शिकवे हमेशा उसके दिमाग मे निहारिकाओं की तरह घूमते रहते है,,
असल मे वो अतीत कभी ना दोहराया जा सकता है ना ही कभी हम उसका नवनिर्माण कर सकते है।
हाँ लेकिन अतीत से जीना सीखता है इंसान, आने वाले हर क़दम पर इंसान एक बार ज़रूर पीछे मुड़ वहाँ देखता है की कहि ये वही जगह नही जहा से वो गुज़रा हुआ हो अगर हाँ तो वो उस क़दम को सम्भाल कर रखता है।
लेकिन अगर हम अतीत के पन्नों मे जीने लगे या दुःखो के पहाड़ हमारे ओर खड़े कर ले तो हम वर्तमान को जी नही पाएंगे न ही सुंदर भविष्य को कल्पना भी कर पाएंगे..
दुखद अतीत से निकलने के लिए जरूरी है कि हम खुद को सुनाई जाने वाली अतीत की दर्द भरी कहानी को बदल दें और आने वाले कल को खुद लिखे। पानी की कुछ बूँदे मेरी आँखों पर गिरी तो मै सोचो के सफर बाहर निकल आई कॉफी ठण्डी हो चुकी थी और रिमझिम वर्षा से ठिठुरन बढ़ने लगी थी।