–मोहम्मद आदिल
अटल बिहारी वाजपेयी जिनके एक-एक जुमलों और अदा पर उनके विरोधी भी दाद देने में पीछे नही रहते थे ।
उनके बारे में एक अक्सर कहा जाता था ” A right man in the wrong party ”
भारतीय राजनीति में उनको जबरदस्त भाषण देने की कला और एक ऐसे राजनेता के रूप में देखा जाएगा जो दक्षिणपंथी विचारधारा के होने के बावजूद भी कभी अतिवाद (Extremism) की राजनीति नही की ।
राजनीतिक विरोधी होते हुए भी वाजपेयी के हीरो नेहरू हुआ करते थे और नेहरू भी भारतीय मेहमानों को अटलजी का परिचय एक उभरते हुए राजनेता के रूप में कराया करते थे ।
वाजपेयी की जीवनी लिखने वाले किमसुंग नाग वर्णन करते है कि वाजपेयी नेहरू से सीखते थे उन्हें देख-देख उनसे सीखते रहते थे ।
ध्यान रहे कि लाखों लोगों की भीड़ को अपनी वाणी से बाँधे रखने की कला बहुत कम लोगों को आती थी, इस पर आडवाणी ये स्वीकार करते है कि उनकी भाषण कला से मुझे ईर्ष्या होती थी औऱ मुझे इस बात का मलाल हमेशा रहेगा कि ”मैं वाजपेयी जैसा वक्ता नही बन सका ।”
आडवाणी आगे याद करते हुए कहते है 1973 में अटलजी ने मुझसे कहा कि मैं चार साल पार्टी अध्यक्ष रहा हूँ अब आप बनिये ?
तब मैंने कहा था , ”नही मैं नही बन सकता , मुझे बोलना नही आता ।”
उन्होंने कहा संसद में तो बोलते हो ?
इस पर आडवाणी जवाब देते है कि संसद में बोलना एक अलग चीज है और जनसभा में बोलना अलग !
( हालाँकि सब लोगो के जिम्मेदारी लेने के इंकार के बाद आडवाणी पार्टी अध्यक्ष बने )
अटलजी के निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा कहते है कि- अटलजी संसद में बोलने से पहले बहुत अधिक मेहनत करते थे ।संसद की लाइब्रेरी , अखबार की कतरन आदि के नोट्स स्वयं तैयार करते थे मनन करते थे ।
लालकिले से देश को संबोधन करने में सबसे ज्यादा गंभीरता से विचार करने वाले प्रधनमंत्री में उनकी गिनती होती है क्योंकि वो कतई नही चाहते थे कि लालकिले की स्पीच एक राजनीतिक स्पीच हो जाये,कोई तथ्य गलत हो जाये कोई गलत बात कह दी जाए ।
अटलजी की पैठ विदेशी मामलों में अधिक थी लेकिन अपने प्रधानमंत्रित्व काल मे उन्होंने आर्थिक मसलो पर अधिक काम किया ।
किंगसुंग नाग उनके प्रधानमंत्री काल का विश्लेषण करते हुए कहते है कि 2002 तक तो बहुत बढ़िया था क्योंकि वो आर्थिक एजेंडे पर चुनकर आये नही थे, पर उन्होंने आर्थिक मुद्दों पर काफी काम किया दूरसंचार के क्षेत्र में निजीकरण , भारत के ग्रामीण इलाकों को सड़कों से जोड़ना औऱ highways पर तो उन्होंने बहुत काम किया है ।
परन्तु 2002 के गुजरात दंगों के बाद उनपर अंकुश लग गया ,उनके आर्थिक विकास का रथ आगे नही बढ़ पाया ।
ए .एस. दुलत अपनी पुस्तक vajpayee years में लिखते है कि वाजपेयी ने गुजरात दंगों को अपने कार्यकाल की बहुत बड़ी गलती स्वीकार किया है ।
किंगसुंग नाग भी कहते है कि गुजरात दंगों को लेकर अटलजी कभी भी सहज नही रहे , औऱ तय कर चुके थे कि गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी का इस्तीफा लेंगे लेकिन पार्टी के भारी दबाव के कारण मोदी का इस्तीफा नही हो सका था ।
उसके बाद वाजपेयी समझौतावादी हो जाते है क्योंकि पार्टी उनके खिलाफ चली गई थी।
तत्कालीन प्रशासकों ने अटलजी के खाने के शौक के बारे भी लिखा है उन्हें मिठाई खाने का बहुत शौक था दिन में कई-कई मीटिंग्स होती थी उनमे रसगुल्ला, गुलाब जामुन आदि खा ही लेते थे । चाइनीज, चिकन का भी बहुत शौक रखते थे अटलजी ।
(लेखक मोहम्मद आदिल, राजस्थान के सीकर निवासी एक स्वतंत्र पत्रकार है)