जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने केंद्रीय बजट और सांप्रदायिक सद्भाव पर दिए सुझाव

दिल्ली। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद (JIH) ने गुरुवार, 02 जनवरी 2025 को नई दिल्ली स्थित अपने मुख्यालय में एक प्रेस वार्ता आयोजित की। इस प्रेस वार्ता में जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद सादतुल्लाह हुसैनी, उपाध्यक्ष सलीम इंजीनियर और अन्य पदाधिकारियों ने मीडियाकर्मियों को तीन महत्वपूर्ण विषयों पर संबोधित किया। प्रेस वार्ता में पहला विषय केंद्रीय बजट 2025-26 के लिए जमात-ए-इस्लामी हिंद के सुझाव रहे। दूसरा विषय – 2025 को सांप्रदायिक सद्भाव, विश्वास और आपसी समझ का वर्ष बनाने का आह्वान किया गया। तीसरा विषय – संभल में अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध हो रही कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए इसको रोकने की मांग की गई।

केंद्रीय बजट 2025-26 गंभीर आजीविका संकट के बीच प्रस्तुत होने वाला है। युवा बेरोजगारी 45.4% के चौंका देने वाले स्तर पर है। लगभग 20% आबादी गरीबी में है और सीएमआईई डेटा अनुसार कृषि जीडीपी वृद्धि 2.8% तक गिर गई है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने असमानता, बेरोजगारी और उपेक्षा की समस्या को दूर करने एवं पुनर्वितरणीय न्याय, समान विकास और प्रभावी शासन को प्राथमिकता देने के लिए भावी बजट में आमूलचूल नीतिगत बदलाव का आह्वान किया है। हम व्यवसाय वृद्धि और कर प्रोत्साहन पर केन्द्रित आपूर्ति की रणनीति से हटकर मांग के दृष्टिकोण की वकालत करते हैं, जिसका उद्देश्य नागरिकों की क्रय शक्ति को बढ़ाना, उपभोग को प्रोत्साहित करना और कल्याणकारी कार्यक्रमों को बढ़ाना है। प्रमुख सुझावों में आर्थिक न्याय की आवश्यकता और जारी संकट के मूल कारणों को  ध्यान में रखकर शासन में विश्वास बहाल करने पर बल दिया गया है।

व्यय सम्बन्धी:

1) मनरेगा का विस्तार: शहरी बेरोजगारी से निपटने के लिए मनरेगा के बजट में की गई 33% कटौती को वापस लिया जाए तथा शहरी समकक्ष योजना लागू की जाए।

2) ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि प्रसंस्करण और जैविक खेती के लिए “ग्रामीण रोजगार केन्द्र” स्थापित की जाए; शहरी स्तर की सुविधाओं के साथ उच्च गुणवत्ता वाले ग्रामीण टाउनशिप विकसित की जाए।

3) एमएसएमई समर्थन: एमएसएमई को पुनर्जीवित करने और रोजगार सृजन को बढ़ाने के लिए सब्सिडी वाले ऋण, तकनीकी उन्नयन, कर प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे के समर्थन के लिए संसाधन आवंटित किये जाएं।

4) रोजगार सृजन के लिए पीएलआई: प्रोत्साहन को केवल उत्पादन (पीएलआई) के बजाय रोजगार सृजन से जोड़ा जाए, युवाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, मुसलमानों और अविकसित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। 

5) स्वास्थ्य देखभाल व्यय: स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 4% तक बढ़ाया जाए, आयुष्मान भारत को सार्वभौमिक कवरेज तक विस्तारित किया जाए, मध्यम वर्ग को कवरेज प्रदान किया जाए तथा इसमें बाह्य रोगी देखभाल, दवाएं और निदान शामिल किया जाए।

6) शिक्षा व्यय: शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 6% आवंटन के साथ “मिशन शिक्षा भारत”की शुरुआत हो, आरटीई के अंतर्गत माध्यमिक शिक्षा को शामिल किया जाए, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में सुधार हो तथा राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए वित्त पोषण में वृद्धि किया जाए।

7) अल्पसंख्यक उत्थान: मुस्लिम छात्रवृत्ति को पुनर्जीवित की जाए, छात्रों और उद्यमियों के लिए ब्याज मुक्त ऋण निधि की स्थापना हो तथा अल्पसंख्यक बहुल जिलों में कौशल क्षेत्र स्थापित किया जाए।

8) एससी/एसटी सशक्तिकरण: एससी/एसटी समुदायों के लिए “भूमि सशक्तिकरण कार्यक्रम” शुरू किया जाए, एससी/एसटी उद्यमों से सार्वजनिक खरीद को प्राथमिकता दी जाए और नौकरियों के लिए कर प्रोत्साहन प्रदान किया जाए।

9) कृषि संकट समाधान: ऋण राहत, ब्याज मुक्त ऋण, गारंटीकृत एमएसपी, विस्तारित फसल बीमा, सिंचाई परियोजनाएं और डिजिटल भूमि रिकॉर्ड का प्रस्ताव शामिल हो।

10) सार्वभौमिक बुनियादी आय: कमजोर समूहों के न्यूनतम आय और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डीबीटी और आधार द्वारा समर्थित चरणबद्ध यूबीआई योजना शुरू किया जाए।  

राजस्व सम्बन्धी: 

1) आवश्यक वस्तु जीएसटी (ईजीएसटी): आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी की अधिकतम सीमा 5% रखी जाए तथा आम लोगों पर बोझ डाले बिना राजस्व हानि की भरपाई के लिए “विलासिता और गैर-आवश्यक वस्तु कर” (एलएनजीटी) लागू किया जाए।

2) अप्रत्याशित लाभ और कॉर्पोरेट टैक्स: 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की विशुद्ध संपत्ति पर “अप्रत्याशित लाभ कर” लगाया जाए और बड़े निगमों के लिए 30% न्यूनतम कॉर्पोरेट टैक्स बहाल किया जाए ।

3) राज्यों की हिस्सेदारी: स्थानीय कल्याण और विकास कार्यक्रमों को सशक्त बनाने के लिए केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 41% से बढ़ाकर 50% सुनिश्चित की जाए।

4) डिजिटल कर: भारतीय उपभोक्ताओं और डेटा से लाभ प्राप्त करने वाली विदेशी तकनीकी फर्मों और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर डिजिटल कर लगाया जाए।

5) बुनियादी ढांचा बांड: नाज़ुक परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए कर-मुक्त बुनियादी ढांचा बांड शुरू किया जाए तथा समृद्ध नागरिकों से निवेश को प्रोत्साहित किया जाए। 

6) सीएसआर की मज़बूती: सीएसआर मानदंडों को कठोर बनाएं, रिपोर्टिंग को सरल बनाएं, तथा शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में वित्त पोषण को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी मानकों को लागू करें।

“2025- सांप्रदायिक सद्भाव, विश्वास और समझ का वर्ष “

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद भारतवासियों से अपील करती है कि वे 2025 को सांप्रदायिक सद्भाव, विश्वास और समझ का वर्ष बनाएं। हमारे देश के लोग अति धार्मिक हैं। परन्तु, धर्म नफरत नहीं सिखाता। धर्म शांति का संदेश देता है। हजारों वर्षों से हमारे धर्मगुरुओं और संस्थाओं ने इस विरासत को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने हमेशा अपने अनुयायियों को आपसी प्रेम से रहने और एक-दूसरे के दुख-सुख बांटने की शिक्षा दी है। दुर्भाग्यवश, कुछ लोग अपने निहित स्वार्थों के लिए इस दीर्घकालिक विरासत को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। सांप्रदायिकता और असामंजस्य ने हमारे राष्ट्र को गंभीर नैतिक, आध्यात्मिक और भौतिक क्षति पहुंचाई है, तथा सदियों से हमारी ताकत रही एकता के ताने-बाने को नष्ट कर दिया है। अब समय आ गया है कि हम इस चुनौती को पहचानें और इससे निपटने के लिए सामूहिक रूप से काम करें। सांप्रदायिक सद्भाव पर आधारित समाज के निर्माण के लिए आपसी आस्था और विश्वास आवश्यक है। इसे प्राप्त करने के लिए हमें हर स्तर पर – व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक – आत्मीय संवाद और संबंधों को सक्षम और बढ़ावा देना होगा। विभिन्न विचारधाराओं और धर्मों के लोगों को न केवल आम चुनौतियों से निपटने के लिए बल्कि आपसी प्रेम और सम्मान बढ़ाने के लिए भी एकजुट होना चाहिए। सहिष्णुता सद्भाव की आधारशिला है। विभिन्न दृष्टिकोणों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति बढ़ाकर तथा गलत कार्यों (यहां तक कि अपने समुदाय द्वारा भी किए गए गलत कार्यों) को अस्वीकार कर हम एक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं। केवल सामूहिक जवाबदेही और सहानुभूति के माध्यम से ही हम पूर्वाग्रहों को समाप्त करने और समावेशिता को बढ़ावा देने की आशा कर सकते हैं। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद विभिन्न अंतर-धार्मिक और शांति पहलों जैसे धार्मिक जन मोर्चा और सद्भावना मंच के माध्यम से इस दृष्टिकोण की दिशा में अथक प्रयास कर रही है। ये मंच लोगों को एक साथ लाकर संवाद करने, एक-दूसरे को समझने और एकता के पुल बनाने में सहायक रहे हैं।यह धार्मिक और सामाजिक नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे आगे आएं और देश में शांति और सद्भाव स्थापित करने में अपनी भूमिका निभाएं। हम प्रत्येक नागरिक से इस प्रयास में शामिल होने का आह्वान करते हैं।आइए हम 2025 को एक निर्णायक वर्ष बनाएं, जहां हम सांप्रदायिक सद्भाव के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करें, न्याय और भाईचारे के मूल्यों को बहाल रखें, तथा विश्वास और आपसी समझ के भविष्य की नींव डालें। हम सब मिलकर ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं जो विविधता में एकता पर आधारित हो।

संभल में मुस्लिम समुदाय का उत्पीड़न 

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद उत्तर प्रदेश के संभल में विचलित करने वाली घटनाओं पर अपनी गहरी चिंता और स्पष्ट आपत्ति व्यक्त करती है। बिजली चोरी के अनुचित आरोपों और पुलिस की कठोर कार्यवाहियों सहित राज्य प्रशासन की हालिया कार्रवाइयां मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर उत्पीड़न की एक खतरनाक प्रवृत्ति का हिस्सा प्रतीत होती हैं। यह कार्रवाई पिछले वर्ष नवंबर में हुई दुखद घटना, जिसमें शाही जामा मस्जिद के न्यायालय द्वारा आदेशित सर्वेक्षण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में निर्दोष मुस्लिम युवकों की जान चली गई थी, के बाद की गई है। यह घटना, राज्य के उत्पीड़न का एक ज्वलंत उदाहरण है, जिसने जीवन और सम्मान के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया तथा अल्पसंख्यक समुदायों के विरुद्ध प्रणालीगत भेदभाव को और उजागर किया। अब, एक चिंताजनक घटना में, प्रमुख सांसद जिया-उर-रहमान बर्क सहित दर्जनों मुसलमानों पर बिजली चोरी का झूठा आरोप लगाया गया है। जबकि अधिकारी दावा करते हैं कि ये कार्रवाइयां बिजली के उपयोग में अनियमितताओं के कारण की गई हैं, अधिकतर साक्ष्य साबित करते हैं कि यह एक राजनीति से प्रेरित अभियान है जिसका उद्देश्य समुदाय को डराना और हाशिए पर धकेलना है। मुस्लिम बहुल इलाकों में पुलिस के मार्च के वायरल वीडियो डराने वाली प्रवृत्ति को और अधिक रेखांकित करते हैं। नवंबर में हुई हिंसा से पीड़ित परिवारों सहित लोगों पर जुर्माना, बिजली कटौती और एफआईआर दर्ज करना, इन कार्रवाइयों की असंगत और प्रतिशोधात्मक प्रवृत्ति को उजागर करता है। विशेष रूप से सांसद जिया-उर-रहमान बर्क के खिलाफ बिजली चोरी के आरोप, असहमति को दबाने और विपक्षी नेताओं को बदनाम करने के स्पष्ट प्रयास को दर्शाते हैं। धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने तथा अवैध विध्वंस पर बढ़ती जांच के तुरंत बाद इन आरोपों का लगाया जाना, अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के राज्य सरकार के दृष्टिकोण में रणनीतिक बदलाव का संकेत देता है। शिव-हनुमान मंदिर को पुनः खोले जाने तथा 1978 के सांप्रदायिक दंगों के मामलों को फिर से शुरू किए जाने से तनाव और बढ़ गया है, तथा विभाजन और भय का खतरनाक माहौल पैदा हो गया है। इस तरह की कार्रवाइयां सद्भाव को बढ़ावा देने के बजाय अविश्वास को बढ़ाती हैं तथा सांप्रदायिक विद्वेष की भावना को गंभीर बनाती हैं। हम उत्तर प्रदेश सरकार से इन लक्षित कार्रवाइयों को तुरंत रोकने, कानून के शासन को बनाए रखने और संभल में प्रभावित परिवारों और व्यक्तियों के लिए न्याय सुनिश्चित करने की मांग करते हैं। हम न्यायपालिका से आग्रह करते हैं कि वह सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा में सतर्कता बरते। हम नागरिक समाज और मीडिया से इन अन्यायों के विरुद्ध आवाज उठाने की अपील करते हैं।

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