आज़म खान भारतीय राजनीति के दिलीप कुमार हैं। खान साहब सियासत की ऐसी बेदाग़ छवि वाले नेता हैं जिनके पूरे राजनीतिक कैरियर पर भ्रष्टाचार का एक भी दाग़ नहीं है।
हाँ, लहज़े में थोड़ी कड़वाहट है, लेकिन साम्प्रदायिकता ज़रा सी भी नहीं नहीं है। कड़वाहट इसलिए है क्योंकि इस व्यवस्था ने उनके और उनके लोगों के साथ हमेशा ज़ुल्म और ज़्यादती ही की है, उसी का गुस्सा कभी कभी तल्ख़ लहज़े में बाहर आ जाता है।
कैरेक्टर लिंचिंग करने वाली एवं घनघोर जातिवादी भारतीय मीडिया को अगर किसी से सही से टाइट किया है तो वो रामपुर वाले खाँ साहब ने। आज़म खान गोदी मीडिया से बच्चों की तरह खेलते हैं।
पूरे समाजवादी कुंबे में अगर संघ अपनी पैठ बनाने में नाकामयाब रही है तो इसका पूरा श्रेय आज़म खान को जाता है।
यूपी में जब योगी सरकार बनी थी, तब इन्हें जब भ्रष्टाचार के फ़र्ज़ी मामले में घसीटा जा रहा था उस वक़्त जब रिपोर्टरों ने आज़म खान को घेरना चाहा तो खान साहब बोले कि स्कूल-कालेज खोला हूँ कोई रंडीखाना थोड़े खोला हूँ जो तुम्हारे इस जाँच से डरूँ।
अखिलेश यादव को जब मीडिया ने टोंटी चोर कहकर उनका कैरिक्टर लिंच कर रही थी, पूरे देश में एक सम्मानित व्यक्ति को टोटी चोर कहा जा रहा था।
उस वक्त आज़म खान ने कहकर मुद्दा हमेशा के लिए बंद कर दिया कि “अखिलेश जी, टोंटी लेकर घूमने से कुछ नहीं होगा, जिन जिनको ऐतराज़ है टोंटियों के गुम जाने का वे मेरे पास आएं, मैं ऐतराज़ करने वालों के ख़ास जगह पर इसे फिट कर दूंगा”।
अभी कल पूर्व राज्यसभा सांसद मुनव्वर सलीम साहब के नमाज़ ए जनाज़ा में खान साहब को जब मीडिया वालों ने घेरना चाहा तो खान साहब ये कहकर सबको चुप करा दिया कि ‘आपके अब्बू के जनाज़े में आया हूँ’।
आज़म खान का अंदाज़ सबसे जुदा है। खाँ साहब लहजा-ए-इंकार के अलम्बरदार हैं, वक़्त के सियासी रहनुमाओं के दरबार में जी हुज़ूरी नहीं करते। अपने अंदाज़ से जीते हैं, इनकी सियासत और ज़ाती ज़िंदगी पर कोई ऊँगली नहीं उठा सकता।
-माजिद मजाज़