यह पश्चिमी राजस्थान में कही जाने वाली एक स्थानीय कहावत है, जिसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूरी तरह से चरितार्थ कर दिया है।
पहले तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए अपनी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों को विधानसभा चुनाव में हरवाया। फिर लोकसभा टिकटों का वितरण स्वयं के सियासी नफा नुकसान और बेटे को सांसद बनाने के फार्मूले से करवा कर, उन्होंने पूरी कांग्रेस की घोड़ी को धूप में बांध दिया!
पश्चिमी राजस्थान में एक कहावत कही जाती है, जहाँ के स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रहने वाले है। अपनी घोड़ी को छाया में बांधना !
इस कहावत को इसी धरती के लाडले और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूरी तरह से चरितार्थ कर दिया है। पहले खुद को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरी पार्टी को दांव पर लगवा दिया और अब स्वयं के पुत्र को सांसद बनाने के लिए कांग्रेस की घोड़ी को धूप में बांध दिया।
अशोक गहलोत का उनके समर्थक करिश्माई नेता, सियासी जादूगर और राजस्थान का गांधी आदि शब्दों से गुणगान करते हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। उनके बारे में दो बातें राजस्थान के सियासी हल्के में आम हैं। एक यह कि अपनी सत्ता को पुख्ता करने के लिए वो किसी को भी दांव पर लगा देते हैं।
दूसरी वो सबको सियासी लाॅलीपोप देकर वेटिंग में रखते हैं। जो लोग उनको बारीकी से जानते हैं, वे उनके दिए आश्वासन पर कभी भरोसा नहीं करते, क्योंकि उनके शब्द और आश्वासन कभी स्पष्ट नहीं होते !
बात करें राजस्थान विधानसभा चुनावों की, जो पांच महीने पहले हुए हैं। इस चुनाव में हर राजनीतिक पण्डित कांग्रेस को 125 से ऊपर सीट दे रहा था। लेकिन अशोक गहलोत को बारीकी से समझने वाले कहते थे कि सीट सौ से कम आएंगी, ताकि गहलोत आसानी से तीसरी बार मुख्यमंत्री बन जाएं।
हुआ भी यही कांग्रेस को बहुमत से एक कम यानी 99 सीटें मिली। एक सीट बाद में जीतकर 100 हो गई। कांग्रेस की गाड़ी को 99 के फेर में उलझाने के लिए गहलोत ने अप्रत्यक्ष तौर पर कई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतार दिए। जिनमें से करीब एक दर्जन जीत गए, जो गहलोत के खासमखास हैं तथा गत दिनों इन सभी ने राहुल गांधी की उपस्थिति में कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा कर दी है।
इन सभी ने कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशियों को हरवाया। अगर गहलोत इनको डांट देते, तो किसी की मज़ाल नहीं थी कि वो बाग़ी होकर चुनाव लड़ लेते।
सियासी जानकार यह बताते हैं कि यह गहलोत की एक सोची समझी रणनीति थी, ताकि एक तो कांग्रेस की सीटें घट जाएं तथा दूसरा निर्दलीयों के समर्थन की बात आए, तो वे कह दें कि हम गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने के लिए ही कांग्रेस को समर्थन देंगे। गहलोत इस खेल में सफल हो गए और वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बन गए!
अब उन्होंने अपने बेटे वैभव गहलोत को सांसद बनाने के लिए एक बार फिर खुद की घोड़ी को छाया में बांध दिया और कांग्रेस की घोड़ी को धूप में बांध दिया है।
उन्होंने ऐसा सियासी तिकड़म लगाया कि करीब आधा दर्जन टिकटें तो ऐसे नेताओं को दे दी, जिनको अभी से लोग हारा हुआ मान रहे हैं। साथ ही जोधपुर जहाँ से उनके पुत्र चुनाव लड़ रहे हैं, उनके आस पास की सीटों पर जातीय समीकरण बैठाकर ऐसे टिकट दिए हैं, ताकि उनका फायदा उनके पुत्र को मिल जाए। पड़ौस वाले जीतें या हारें उनकी किस्मत !
जयपुर शहर, जयपुर ग्रामीण, चूरू, झुन्झुनूं, पाली, जालोर, राजसमन्द, भीलवाड़ा, अजमेर, बारां झालावाड़, भरतपुर आदि सीटों को लेकर सियासी गलियारों में विचित्र बातें हो रही हैं।
खबर है कि इनमें से कुछ सीटों को तो कांग्रेस नेतृत्व भी हारी हुई मान रहा है। इसके लिए टिकट बदलने तक की चर्चा हुई और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने बाकायदा सीएम गहलोत, पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट और प्रभारी महासचिव अविनाश पाण्डेय को बुलाकर दिल्ली में खिंचाई की और नाराजगी का इज़हार किया।
बारां झालावाड़ संसदीय सीट को लेकर जो बात सियासी गलियारों में घूम रही है, वो तो और भी खतरनाक है। इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत भाजपा की टिकट पर चुनावी रण में हैं, वे वर्तमान में भी यहाँ से सांसद हैं।
यहाँ से कांग्रेस ने बेहद कमजोर नेता को मैदान में उतारा है, जो चन्द महीनों पहले ही भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए हैं। जबकि इस सीट से कुछ मजबूत नेता भी दावेदार थे, लेकिन उनको नजरअंदाज कर दिया गया।
चर्चा है कि इस टिकट को लेकर वसुंधरा राजे और गहलोत में एक अघोषित समझौता हो चुका है। वसुंधरा राजे जोधपुर में गहलोत के पुत्र को जीतवाने में अन्दरखाने मदद करेंगी और गहलोत झालावाड़ में वसुंधरा के पुत्र की!
-एम फारूक़ ख़ान
(सम्पादक इकरा पत्रिका)