ये नफ़रत के विचारों का वैश्वीकरण है
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श्रीलंका में ईसाइयों पर हमला निंदनीय है। किसी भी धर्मस्थल पर या उनके अनुयायियों पर आतंकी हमला एक कायरतापूर्ण क़दम है। इस हमले में मरने वालों में पाँच भारतीय भी शामिल हैं। सभी पीड़ित परिवारों के प्रति गहरी संवेदना…!
इस प्रकार के आतंकी हमले हमें ये सोचने पर मजबूर करते हैं कि आख़िर कौन सा विचार मानव हत्या के लिए प्रेरित कर रहा है। आख़िर विश्व के अलग-देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों के साथ इस प्रकार की घटनाओं में निरंतर बढ़ोत्तरी क्यों हो रही है? वो अल्पसंख्यक श्रीलंका के ईसाई हों या पाकिस्तान के हिन्दू, न्यूज़ीलैंड के मुस्लिम हों या बर्मा के रोहिंग्या, बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हों या भारत के अल्पसंख्यक…. सभी देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है।
सभी देशों ने विकास के मॉडल को अपनाकर ख़ूब तरक़्क़ी तो की है या कर रहे हैं लेकिन इस विकास के मॉडल में कुछ ऐसे विचारों का भी विकास हुआ है जो अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मानव हत्या को बुरा नहीं समझते। अब स्वार्थ चाहे सत्ता हासिल करना हो या किसी आबादी का दमन हो। अक्सर इन देशों में संगठित या असंगठित रूप से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की ख़बरें आती हैं। कहीं भीड़ किसी अल्पसंख्यक की हत्या को बुरा नहीं समझती और कहीं बम धमाके कर के सैकड़ों ईसाइयों को मार दिया जाता है। कभी हमारे देश में ईसाइयों पर हमला कर कंधमाल के रूप में कलंक इस देश के माथे पर लगाने का काम किया जाता है तो कहीं गौ मांस के आरोप में एखलाक की बहुसंख्यक आबादी द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है।
दुनिया में समानता कितनी है ये तो नहीं पता लेकिन पूरी दुनिया में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को देखकर ये तो साफ़ है कि इन सभी हमलों में नफ़रत की समानता ज़रूर है। ये तो साफ़ है कि केवल दुनिया का वैश्वीकरण (Globalisation) नहीं हुआ है बल्कि नफ़रत के विचारों का भी वैश्वीकरण हुआ है जिसका फ़ायदा जाने अनजाने में उन सरकारों को भी हुआ है जो ऐसे विचारों को पलने और पनपने देते रहने में अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार हैं।
-मसीहुज़्ज़मा अंसारी