हमारे प्रिय प्रधानमंत्री जी और उनकी पार्टी के कई बड़े नेता जिनमें सबसे आगे हैं अजय सिंह बिष्ट ऊर्फ योगी आदित्यनाथ आए दिन आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए निर्वाचन आयोग जैसी संस्था का मजा़क बनाते हैं, लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हैं!
जाति या धर्म के आधार पर वोट मांगना आचार संहिता का उल्लंघन है, लेकिन बी.जे.पी. और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को इससे क्यों फर्क पड़ना चाहिए!
वे आए दिन धर्म के नाम पर सीधे-सीधे वोट मांगते हैं, भारत की सेना को मोदी की सेना बोलते हैं। वहीं दूसरी तरफ हैं प्रधानमंत्री जिन्हें अपने पद की गरिमा का भी कोई ख़याल नहीं है!
जिस दिन बी.जे.पी. का चुनावी घोषणा पत्र जारी होता है, उसी दिन रैली में मोदी जी कहते हैं कि आपका पहला वोट बालाकोट स्ट्राईक करने वाली वायुसेना की टीम को, पुलवामा में शहीद हुए जवानों को!
देशवासियों को तो पता था कि चुनाव में बी.जे.पी. के नेता खड़े हो रहे हैं, लेकिन मोदी जी ने तो भारतीय वायु सेना और आर्मी को भी चुनावी धमासान में उतार दिया। क्या यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं!
विपक्ष के गठबंधन को पाकिस्तान की साजिश करार देना, भाषणों में धर्मोन्मादी बातें करना, झूठ फैलाना, शहीदों के नाम पर वोट मांगना, आचार संहिता का उल्लंघन कर जगह जगह टेलीविजन सीरियलों और फिल्मों के ज़रिए प्रचार करना और इतना सबकुछ होने के बाद भी निर्वाचन आयोग का चुप रहना, आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर किसी भी तरह की कोई कार्रवाई ना करना, यह सब इस देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बीमार होने के लक्षण है!
पिछले सत्तर सालों में सरकारें आईं, गईं भी, बीच-बीच में पार्टियों ने, नेताओं ने अपनी तानाशाही की परिचय भी दिया लेकिन लोकतांत्रिक संस्थाओं ने उस मार को हिम्मत से झेला। अब सारी संस्थाऐं लगभग ध्वस्त हो चुकी हैं, रिजर्व बैंक से लेकर सी.बी.आई. सब त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।
भारत की जनता को अपने वोट से प्यार है, इसके साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से), भारत की संवैधानिक और लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का विश्वास कमजो़र करते हैं।
जब लोकतंत्र की नींव रखने वाली संस्थाओं में ही विश्वास नहीं रहेगा तो उन्हें जड़ से नष्ट करना और भी आसान हो जाएगा और इसी प्रक्रिया से जन्म लेता है तानाशाह और उसकी निर्मम तानाशाही!