बिना कोई अपराध, दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतन्त्र में सरकारी प्रताड़ना का शिकार डॉक्टर कफ़ील !


गोरखपुर के BRD अस्पताल में इंसेफेलाइटिस के 60 बच्चों की ऑक्सीजन की कमीं के चलते हुई मौत के कारण डॉ. कफील पर 4 आरोप लगाए गए थे…

1. डॉ. कफील प्राइवेट प्रैक्टिस करते थे उनका अपना प्राइवेट अस्पताल था। सरकारी अस्पताल का सारा ऑक्सिजन वे अपने प्राइवेट अस्पताल ले गए। जिस कारण BRD अस्पताल में ऑक्सिजन की कमीं पड़ गई।

2. डॉ. कफील ने अपने सीनियरों को ऑक्सीजन की कमीं के बारे में पहले ही क्यों नहीं बताया था। इस मामले में उनपर भ्रष्टाचार का आरोप भी लगे थे।

3. डॉ. कफील वार्ड सुपरिंटेंडेंट थे, घटना वाली रात उन्होंने अपने सीनियर्स को इन्फॉर्म नहीं किया।

4. मेडिकल नेग्लीजिएन्स, यानी इलाज के दौरान लापरवाही

सच ——
उत्तरप्रदेश सरकार ने ही इस मामले की विभागीय जांच करवाई। विभागीय जांच ने अपनी रिपोर्ट में कहा-

1. डॉ. कफील सरकारी नौकरी जॉइन करने से पहले प्राइवेट डॉक्टरी करते थे। न कि सरकारी नौकरी लगने के बाद करते थे। यानी अगस्त 2016 के बाद से वे केवल और केवल सरकारी डॉक्टर के रूप में ही काम कर रहे थे। इसलिए प्रायवेट अस्पताल वाली बात झूठी और जानबूझकर साजिशन भ्रामक रूप से फैलाई गई।

2. ऑक्सीजन से सम्बंधित वित्तीय मामले डॉ. कफील के अंडर नहीं आते थे ये बड़े लेवल का मामला था, जबकि डॉक्टर कफील जूनियर मोस्ट डॉक्टर थे, जो दो साल के प्रोबेशन पर थे यानी वे इतने जूनियर थे कि उनकी जॉब भी परमामेन्ट नहीं हुई थी। इसलिए भ्रष्टाचार वाली बात एकदम झूठी साबित हुई। दूसरी बात कि ऑक्सिजन सप्लाई करने वाली जिस एजेंसी से BRD अस्पताल में ऑक्सिजन आता था। उस एजेंसी ने अस्पताल को 14 बार भुगतान के बारे में लिखा था कि अगर भुगतान नहीं किया जाएगा तो एजेंसी ऑक्सीजन की सप्लाई रोक लेगी। इस एजेंसी ने उत्तरप्रदेश के सीएम को भी इस बाबत लिखा था। लेकिन सीएम ने कोई जबाव नहीं दिया। इस तरह देखा जाए तो ऑक्सिजन की कमीं के लिए डॉ. कफील नहीं बल्कि मेडिकल अस्पताल के प्रिंसिपल, सीएमओ और उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ जिम्मेदार हैं।

3. डॉक्टर कफील वार्ड सुपरिंटेंडेंट नहीं थे बल्कि जूनियर मोस्ट डॉक्टर थे, और जिस दिन घटना हुई उस दिन वे ड्यूटी पर थे ही नहीं, बल्कि छुट्टी पर थे। बावजूद इसके जब उन्हें पता चला कि अस्पताल में ऑक्सीजन की कमीं पड़ गई है और बच्चे मारे जा रहे हैं तो वे तुरंत अस्पताल पहुंचे और उन्होंने न केवल अपने सीनियर्स को ही सूचित किया बल्कि सीएमओ और डीएम तक को फोन लगाकर मदद के लिए गुहार लगाई।

4. विभागीय जांच में न केवल मेडिकल नेगलीजिएन्स का आरोप झूठा पाया गया बल्कि रिपोर्ट में बताया गया कि डॉ. कफील ने 500 करीब ऑक्सिजन सिलेंडरों को अस्पताल तक पहुंचवाया। डॉ. कफील के अनुसार जब उन्हें कहीं उम्मीद नहीं दिखी। तब उन्होंने शहर के बाकी प्राइवेट अस्पतालों और अपने दोस्त के क्लीनिक से ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम किया ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे बचाएं जा सकते हैं।
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डॉ. कफील पर लगाए गए चारो आरोप झूठे पाए गए। 9 महीने जेल में रहने के बाद अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया।

एक बार फिर 6 महीने की सजा काटने के बाद डॉ. कफील रिहा हुए हैं। उनपर आरोप था कि उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया था जबकि अदालत ने उन्हें रिहा करते हुए कहा है कि उनका भाषण राष्ट्रीय एकता, अखंडता का संदेश देता है….

समाचार समाप्त!

श्याम मीरा सिंह

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