कोविड 19 एक वायरस जनित रोग है जिसकी अभी तक कोई विशेष दवा या वैक्सीन नहीं बनी है। कुछ वायरस रोधी दवाओं पर काम चल रहा है। कुछ दवाओं के नतीजे काफी सकारात्मक भी हैं। लेकिन पक्के तौर पर अभी तक ऐसी दवा कोई नहीं है जिसके बारे में दावा किया जा सके कि यह सार्स सीओवी 2 वायरस को खत्म कर देगी।
फिर अस्पताल में डॉक्टर क्या करते हैं? जब इलाज ही नहीं है तो अस्पताल जाने की जरूरत क्या है? घर ही रहना चाहिए। अपनी इम्युनिटी ही ठीक कर देगी।
वायरस को नष्ट करने की दवा नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि इलाज नहीं है। इसमें दो चीजें समझने की जरूरत है। पहली चीज ये कि लगभग 80 फीसदी लोगों में यह रोग बिना किसी खास परेशानी के खुद ब खुद ठीक हो जाता है।
लेकिन बचे हुए 20 फीसदी लोगों में यह भयंकर रूप धारण कर लेता है। भयंकर रूप मतलब इसकी वजह से रोगी के फेफड़ों में गंभीर निमोनिया हो जाता है।
यह निमोनिया सीधे तौर पर वायरस की वजह से नहीं बल्कि रोगी के शरीर की इम्युनिटी के अनियंत्रित होने की वजह से होता है। अनियंत्रित इम्युनिटी से फेफड़ों में साइटोकाइन नामक केमिकल्स का तूफान खड़ा हो जाता है।
साइटोकाइन हमारे शरीर की इम्युनिटी का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं जो शरीर को रोगाणुओं के हमले से बचाते हैं। कोविड 19 के कई रोगियों में ये वायरस को खत्म करते करते अनियंत्रित हो जाते हैं और शरीर की कोशिकाओं पर ही हमला शुरू कर देते हैं। नतीजा होता है निमोनिया। और सांस की रुकावट। इस रुकावट पर अगर समय से ध्यान न दिया जाए तो जान पर बन आती है।
अस्पताल में वायरस जनित और अनियंत्रित इम्युनिटी जनित लक्षणों का इलाज किया जाता है। बुखार, खांसी, दस्त, उल्टी आदि लक्षणों के लिए दवाएं दी जाती हैं। सांस की रुकावट होने पर ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की व्यवस्था की जाती है ताकि साइटोकाइन तूफान के शांत होने तक शरीर में ऑक्सीजन की कमी न होने पाए और रोगी की मृत्यु न हो जाए।
साइटोकाइन तूफान को शांत करने के लिए इम्युनिटी को दबाने की दवाएं दी जाती हैं। खून का थक्का बनने से रोकने की दवाएं दी जाती हैं। बैक्टीरियल इन्फेक्शन से बचाने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का कोर्स कराया जाता है। इन सब दवाओं के अच्छे और बुरे प्रभाव को देखने के लिए लगातार जांचें की जाती हैं। किडनी, लीवर आदि अंदरूनी अंगों की कार्यप्रणाली सुचारू रूप से चल रही है या नहीं यह भी मॉनिटर किया जाता है।
ये सब चीजें इलाज ही होती हैं। इन सबके बावजूद इस बीमारी की मृत्युदर 3 फीसदी तक हो सकती है। अगर ये सब इलाज रोगी को समय पर न मिले तो मृत्यु दर बहुत अधिक हो जाएगी। यहां तक कि 15-20 प्रतिशत भी हो सकती है।
इसलिए बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए। एक छोटा सा यन्त्र “पल्स ऑक्सिमीटर” आता है। 800-900 रुपये तक का आ जाता है। अगर आपको बुखार है, खांसी है, दस्त हैं, जुकाम या गला खराब है तो आपको इसके साथ अपनी ऑक्सीजन जांचते रहना चाहिए। अगर यह किसी भी वक्त 94 से कम हो रही है।
भले ही आपको सांस में रुकावट नहीं हो रही हो, तो आपको अस्पताल जाना चाहिए। और अगर इन लक्षणों के साथ आपको सांस में रुकावट, सीने में दर्द या खिंचाव महसूस हो तो भी तुरन्त अस्पताल जाना चाहिए।
– नवमीत नव
( लेखक एनसी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, पानीपत में अस्सिटेंट प्रोफेसर हैं और यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है)